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झारखंड के इस पेशे से जुड़े लोगों के घर नहीं चाहता कोई बेटी ब्याहना, कारण जानकार आप भी हो जाएंगे हैरान

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लोहरदगा के सेहरा व्यवसाय से जुड़े लोग एक साथ कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. एक तो इस पेशे से जुड़े लोगों के घर कोई बेटी ब्याहना नहीं चाहता है, वहीं आधुनिकता की दौड़ में यह व्यवसाय दम तोड़ रहा है. यही कारण है अब नई पीढ़ी इस पेशे को अपनाने से कोसो दूर भाग रहे हैं.

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Jharkhand News: मांगलिक वैवाहिक कार्यक्रमों तथा अन्य उत्सवों के मौके पर परंपराओं का विशेष महत्व होता है. लेकिन, आधुनिकता तथा फैशन की दौड़ में अब कई परंपराएं विलुप्त होती जा रही है. लोहरदगा जिले की कभी पहचान रही लाह चुड़िया बनाने की कला अब गुम हो चुकी है. इस व्यवसाय से जुड़े कारीगरों ने या तो दूसरा व्यवसाय अपना लिया है या फिर मजदूर बन गये हैं. अब शादियों में दूल्हा के सिर पर सजने वाला मौर (सेहरा) बनाने का व्यवसाय भी लोहरदगा जिले में अंतिम सांसें गिन रहा है.

नई पीढ़ी का इस व्यवसाय से हो रहा मोहभंग

परंपराओं के निर्वहन के नाम पर जिले में मात्र तीन लहेरी परिवार मौर बनाने के व्यवसाय में लगे हैं. लेकिन, इस व्यवसाय के सहारे इन परिवारों का गुजारा नहीं हो पा रहा है. अपने परिवार का भरण पोषण करने में नाकामयाब हो रहे हैं. नतीजन इनमें से दो परिवार की नई पीढ़ियां अपनी परंपरागत पुश्तैनी पेशा से धीरे-धीरे दूरियां बढ़ाने शुरू कर दी है. शहर के राणा चौक लहेरी मुहल्ला में कृष्णा लहेरी, रामदास लहेरी तथा नरसिंह लहेरी का परिवार परंपरागत मौर बनाने के व्यवसाय में लगा है. लेकिन, रामदास लहेरी और नरसिंह लहेरी का परिवार की नई पीढ़ी पिछले दो वर्षों से इस व्यवसाय से दूरी बना ली है. वहीं, कृष्णा लहेरी का परिवार विरासत में मिली अपनी पुश्तैनी पेशा को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटे हैं.

इस व्यवसाय से गुजरा करना हुआ कठिन : मीरा देवी

सामान्यता: मौर में कलाकारी का कार्य घर की महिलाएं करती हैं जबकि पुरुष मौर का ढांचा तैयार करने में उनकी मदद करते हैं. मौर बनाने में लगी मीरा देवी का कहना है कि 20 वर्ष पहले तक यह व्यवसाय काफी लाभप्रद था. तब कई शौकिन परिवार शादी के आर्डर देकर मनपसंद मौर बनवाते थे, लेकिन अब मौर की खरीद सिर्फ रस्म अदायगी के लिए हो रही है. बढ़ती महंगाई के साथ हर चीज की मूल्यों में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन मौर की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. डेढ़-दो दशक पूर्व जिस मौर की कीमत सौ से डेढ़ रुपये के बीच मिलती थी. कमोबेश आज भी लगभग उतनी ही में मिलती है. ऐसे में इस व्यवसाय के बलबूते परिवार का गुजारा करना कठिन हो गया है.

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इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के घरों में नहीं चाहता कोई बेअी ब्याहना : द्राैपदी देवी

इस व्यवसाय से जुड़ी द्रौपदी देवी का कहना है कि अब कोई भी परिवार ऐसे घर में बेटी ब्याहना पसंद नहीं करता जिस घर के लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं. भले ही हम दूसरों के घरों में शादी-विवाह की शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन इस व्यवसाय पर निर्भर रहकर अपने बेटों का सेहरा सजवाना मुश्किल है. अब शादियों में दुल्हों द्वारा पगड़ी का अधिक प्रयोग किया जा रहा है. जिससे मौर की मांग घट गई है.

कारीगरों को प्रत्येक घर की परंपराओं से है रिश्ता

मौर बनाने वाले परिवार का जिले के प्रत्येक घर की परपराओं से गहरा रिश्ता है. इस व्यवसाय से जुड़े कृष्णा लहेरी ने बताया कि परिवार एवं गोत्र के अनुसार लोग शादी ब्याह में अलग-अलग मौर का प्रयोग करते हैं. कुछ परिवारों में रामचंद्री मौर प्रयोग किया जाता है. वहीं कुछ जाति के लोग कुड़ तथा पटनिया मौर का प्रयोग करते हैं. इस धंधे के पुश्तैनी होने के कारण सिर्फ नाम और पता देने भर से वे उस परिवार के लिए विशेष मौर तैयार कर देते हैं, परंतु अब लोगों की परंपराओं से अधिक फैशन की परवाह रहती है. जिससे यह परंपरागत व्यवसाय अब दम तोड़ रहा है.

मकर संक्रांति से शुरू होगा वैवाहिक लग्न

एक माह तक चलने वाली खरमास की समाप्ति होने के बाद 15 जनवरी से शादी विवाह का लग्न शुरू हो जाएगा. आमतौर पर सनातन धर्मावलंबियों में खरमास के समय शादी विवाह जैसे वैवाहिक कार्यक्रम तथा नए किसी भी शुभ कार्यों का शुभारंभ इस दौरान नहीं करते हैं. इधर, सेहरा व्यवसाय से जुड़े लहेरी परिवार विवाहित लग्न शुरू होने पूर्व सेहरा निर्माण के कार्य में जुट गए हैं.

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रिपोर्ट : संजय कुमार, लोहरदगा.

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