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जी-20 सार्वभौमिक एकात्मकता का अवसर

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भारत की परंपरागत सोच यह रही है कि सभी जीव पांच तत्वों- भूमि, जल, अग्नि, वायु व आकाश- से मिलकर बने हैं और सभी जीवों में समन्वय और समरसता हमारे भौतिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय कुशल क्षेम के लिए जरूरी है.

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भारत एक दिसंबर, 2022 से दुनिया के सबसे शक्तिशाली एवं प्रभावशाली राष्ट्रों के समूह जी-20 की अध्यक्षता संभाल रहा है. दुनिया की 85 प्रतिशत जीडीपी जी-20 देशों से आती है और विश्व की कुल जनसंख्या का दो-तिहाई इन देशों में निवास करता है. विश्व के कुल व्यापार का 75 प्रतिशत हिस्सा भी जी-20 देशों के पास है.

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आज पूरी दुनिया कोरोना के बाद की चुनौतियों से तो जूझ ही रही है, फरवरी, 2022 से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आवश्यक खाद्य सामग्री की कमी कई देशों में महसूस की जा रही है और पिछले 30 वर्षों से चल रहे अंधाधुंध भूमंडलीकरण के प्रति भी देशों का मोह भंग होता हुआ दिख रहा है. विभिन्न देश आज आत्मनिर्भरता की बात करने लगे हैं और ‘ग्लोबल वैल्यू चेन’ जैसी अवधारणाएं भी अब महत्व खोती जा रही हैं.

विश्व आज मंदी, जीडीपी में संकुचन और बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है. यह चुनौती जितनी बड़ी है, उसकी तुलना में इससे निपटने के लिए प्रयास अनमने और आधे-अधूरे दिखते हैं. यूं तो जी-20 के अंतर्गत तमाम प्रकार के मुद्दे चर्चा में आ सकते हैं, लेकिन यदि भारत कुछ ऐसे मुद्दों, जो वैश्विक चुनौतियों और भारत समेत विकासशील देशों के मद्देनजर अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, पर वैश्विक ध्यान आकर्षित कराने में सफल होता है, तो यह बड़ी उपलब्धि होगी.

एक अहम मुद्दा वैश्विक संस्थाओं की पुनर्रचना का है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अस्तित्व में आये विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, जिनमें विकसित देशों का वर्चस्व है, में बदलाव की जरूरत है. साथ ही, आज जब वैश्विक मंचों पर ग्लोबल वार्मिंग के सर्वाधिक दोषी अमेरिका और यूरोपीय देश जलवायु परिवर्तन के समाधान हेतु वित्तीय सहयोग से मुंह मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं,

इस मुद्दे को अंतिम परिणति तक पहुंचाना मानवता के अस्तित्व के लिए बड़ा कदम होगा और इसके लिए इस वर्ष जी-20 के अंतर्गत किये जाने वाले प्रयासों की बड़ी भूमिका होगी. भारत की अध्यक्षता के बाद अगले दो वर्षों में क्रमशः ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जी-20 की अध्यक्षता संभालेंगे.

ऐसे में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की तिकड़ी के लिए विकासशील देशों से संबद्ध समस्याओं और उनके समाधान की ओर बढ़ने का अभूतपूर्व अवसर है. इसके द्वारा भारत को न केवल विकासशील देशों की सशक्त आवाज बनना होगा, बल्कि विकासशील देशों के बीच अपनी भूमिका को पुनः परिभाषित करने का भी यह सुअवसर होगा.

हाल में जी-20 के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक महान अवसर बताते हुए कहा है कि हम इसका उपयोग विश्व कल्याण के लिए करना चाहते हैं. विश्व शांति, एकता, पर्यावरण के प्रति जागरूकता और सतत विकास जैसी चुनौतियों का सामना करने और इनका हल निकालने हेतु भारत के पास विचार भी है और क्षमता भी.

विश्व की अधिकांश समस्याओं का समाधान संभव है, लेकिन उसके लिए सोच में बदलाव की जरूरत है. इतिहास गवाह है कि विभिन्न देशों के बीच परस्पर वैमनस्य, दूसरे मुल्कों से आगे बढ़ने की होड़, विस्तारवादी सोच टकराव का कारण बनती रही हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध का भी लगभग यही कारण है. अमेरिका और यूरोप के देशों द्वारा यूक्रेन को ‘नाटो’ के नजदीक आने के लिए उकसाना रूस-यूक्रेन युद्ध का शुरूआती कारण बना.

उसके बाद रूस पर प्रतिबंध लगाकर उसे कमजोर करने के प्रयास भी हुए. यह भी सही है कि रूस की आक्रामक नीति ने आग में घी डालने का काम किया. बाद में रूस ने अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों को न केवल धता दिखाया, बल्कि ग्लोबल वैल्यू चेन में अवरोधों को भी हवा दी. इस उथल-पुथल के चलते आवश्यक वस्तुओं का अभाव और कीमतों में वृद्धि और अर्थव्यवस्थाओं में संकुचन आज दुनिया के लिए सिरदर्द बने हुए हैं.

ऐसे में भारत ने दुनिया को एक संदेश दिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि इतिहास में संसाधनों पर कब्जा जमाने हेतु संघर्ष और प्रतिस्पर्द्धा की रणनीति ही अपनायी गयी. हमने देखा है कि विभिन्न देश अभी भी दूसरे देशों की जमीन और संसाधन हथियाने की मानसिकता से ग्रस्त हैं. उन्होंने उदाहरण दिया है कि कोरोना काल में हमने देखा कि कैसे कुछ लोगों ने वैक्सीन पर कब्जा जमाकर रखा, जबकि अरबों लोग वैक्सीन से वंचित रह गये.

प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि जो यह समझते हैं कि संघर्ष और लालच ही मानव स्वभाव है, वे गलत हैं क्योंकि यदि यह सही होता, तो ‘सभी जन एक हैं’ की हमारी आध्यात्मिक परंपरा इतने लंबे समय तक नहीं चलती. भारत की परंपरागत सोच यह रही है कि सभी जीव पांच तत्वों- भूमि, जल, अग्नि, वायु व आकाश- से मिलकर बने हैं और सभी जीवों में समन्वय और समरसता हमारे भौतिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय कुशल क्षेम के लिए जरूरी है.

भारत जी-20 की अध्यक्षता के दौरान इसी सार्वभौमिक एकात्मकता के लिए कार्य करेगा. ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य‘ का हमारा ध्येय वाक्य यही इंगित करता है. यह मात्र नारा नहीं है, यह पिछले कुछ समय से मानवीय परिस्थितियों में आये हुए परिवर्तनों के संदर्भ में जरूरी बात है, जिसे हमें समझना होगा.

इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारियों जैसी चुनौतियों से आपस में लड़कर नहीं, बल्कि आपस में मिलकर निपटा जा सकता है. सौभाग्य से आज प्रौद्योगिकी समस्त मानवता की समस्याओं के निराकरण हेतु समाधान देने में सक्षम है.

उन्होंने कहा है कि हमारी भाषाइ, धार्मिक, धारणात्मक एवं रीति-रिवाजों की विविधता भारत को मानवता के सूक्ष्म रूप में प्रस्तुत करती है. हमारा देश दुनिया में सामूहिक निर्णय प्रक्रिया की परंपरा का सबसे पुराना उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो प्रजातंत्र की नींव है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हमारी प्राथमिकताएं ‘एक पृथ्वी’ के उपचार, परिवार में समरसता के निर्माण और एक भविष्य हेतु आशा के निर्माण पर केंद्रित होंगी. पृथ्वी के उपचार हेतु भारत की प्रकृति के प्रति ट्रस्टीशिप की परंपरा पर आधारित स्थायी एवं पर्यावरण समर्थक जीवनशैली को हम प्रोत्साहित करेंगे.

वैश्विक समाज के बीच समरसता को बढ़ाने के लिए हमारा प्रयास होगा कि खाद्य पदार्थों, उर्वरकों और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति को राजनीति को अलग रखा जाए, ताकि वैश्विक राजनीति के तनावों से मानवता पर संकट न आए. जी-20 का एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्य-उन्मुख और निर्णयात्मक होगा. इसके लिए हम सबको मिलकर एक नये आदर्श-मानव केंद्रित भूमंडलीकरण के निर्माण हेतु काम करना होगा.

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