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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) बुधवार को इतिहास बनाने के लिए पूरी तरह तैयार है.
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो सुबह 9.28 बजे एक साथ 104 उपग्रहों को लाँच करने जा रहा है.
एक अंतरिक्ष अभियान में इससे पहले इतने उपग्रह एक साथ नहीं छोड़े गए हैं. इसरो का अपना रिकॉर्ड एक अभियान में 20 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का है. इसरो ने ये कारनामा 2016 में किया था.
वैसे अब तक किसी एक अभियान में सबसे ज़्यादा उपग्रह भेजने का विश्व रिकॉर्ड रूस के नाम है, जिसने 2014 में एक अभियान में 37 उपग्रहों को भेजने का काम किया था.
भारत को अंतरिक्ष में भेजने वाली महिलाएं
ज़ाहिर है, इसरो इन सब रिकॉर्ड को बहुत पीछे छोड़ देगा. इस अभियान में 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा जा रहा है, जिनमें तीन तो भारत के हैं. जबकि बाक़ी के 101 सैटेलाइट्स इसराइल, कज़ाख़्स्तान, नीदरलैंड, स्विटज़रलैंड और अमरीका के हैं.
इस अभियान के बारे में जानकारी देते हुए इसरो के चेयरमैन एएस किरण कुमार ने मीडिया से कहा, "हम जिन सैटेलाइट को लाँच कर रहे हैं, उसमें एक 730 किग्रा का है, जब बाक़ी के दो का वजन 19-19 किग्रा है. इनके अलावा हमारे पास 600 किग्रा और वजन भेजने की क्षमता थी, इसलिए हमने 101 दूसरे सैटेलाइटों को भी लाँच करने का फ़ैसला लिया."
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रिकॉर्ड के अलावा ये भी होगा
किरण कुमार ने इस पूरे अभियान पर होने वाले खर्च का ब्यौरा तो नहीं बताया लेकिन ये स्पष्ट किया कि मिशन का आधा खर्च विदेशी सैटेलाइटों को भेजने से आ रहा है. हालांकि अनुमान है कि इसरो को विदेशी सैटेलाइटों से 100 करोड़ रूपये से ज़्यादा की आमदनी होगी.
वरिष्ठ विज्ञान पत्रकार पल्लव बागला ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "ये महज रिकॉर्ड बनाने के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि ये भारतीय अंतरिक्ष अभियान के साथ इसरो का कामर्शियल पहल भी है. मुश्किल काम है इसलिए दुनिया भर की नज़र इस पर टिकी है."
सैटेलाइट लॉँच- भारत की मोटी कमाई का ज़रिया
जिन देशों के सैटेलाइट्स को इसरो लाँच करने जा रहा है, उसमें अमरीका और इसराइली सैटेलाइट भी शामिल हैं, जो ये बता रहे हैं कि सैटेलाइट प्रक्षेपण के बाज़ार में भारत बड़ी तेजी से अपनी जगह बना रहा है.
दरअसल पिछले कुछ सालों में भारत अंतरिक्ष प्रक्षेपण के बाज़ार में भरोसेमंद प्लेयर बनकर उभरा है. बीते कुछ सालों में भारत ने दुनिया के 21 देशों के 79 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है, जिसमें गूगल और एयरबस जैसी बड़ी कंपनियों के सैटेलाइट शामिल रहे हैं.
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ऐसे में बुधवार को एक साथ ही 104 सैटेलाइट को भेजने के बाद इस बाज़ार में भारत की जगह और मज़बूत होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि अमरीका की तुलना में भारत से किसी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने का खर्चा करीब 60-65 फ़ीसदी कम होता है, मोटे तौर पर महज एक तिहाई खर्च में भारत किसी का सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज सकता है.
चीन से भारत की होड़
भारत में उपलब्ध सस्ता श्रम के अलावा कम लागत की वजह इसरो का सरकारी तंत्र होना भी है. हालांकि भारत को इस सस्ते बाज़ार में भी चीन से होड़ लेनी पड़ रही है, क्योंकि चीन भी सस्ते दर पर अंतरिक्ष में उपग्रहों को भेजने के लिए बड़ा बाज़ार है.
पल्लव बागला के मुताबिक भारत इस बाज़ार में चीन को तभी चुनौती दे पाएगा जब वह बड़े बड़े सैटेलाइटों को प्रक्षेपित करेगा.
बागला कहते हैं, "अंतरिक्ष के कार्मिशयल लांचर का जो बाज़ार है उसमें छोटे सैटेलाइट का हिस्सा बहुत कम है, बड़े सैटेलाइट को भेजने से ज़्यादा पैसा आता है."
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इसके अलावा चीन अपने अंतरिक्ष अभियान पर भारत की तुलना में ढाई गुना ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है और उसके पास सैटेलाइटों को लाँच करने की क्षमता भी चार गुना ज़्यादा है.
मौजूदा स्थिति में भारत में हर साल में पांच सैटेलाइट अभियान लाँच कर सकता है जबकि चीन की क्षमता 20 अभियान लाँच करने की है. बावजूद इस अंतर के अंतरिक्ष बाज़ार में भारत और चीन की होड़ को जानकर उसी तरह से देख रहें जिस तरह की होड़ कभी अमरीका और सोवियत रूस में हुआ करती थी.
बहरहाल, भारत जिस तरह से 104 उपग्रहों को एक साथ भेजने की कोशिश कर रहा है उससे प्राइवेट प्लेयरों में भी उम्मीद पैदा की है. बेंगलुरू स्थित टीम इंडस को भरोसा है कि मौजूदा वातावरण का उसे फ़ायदा मिलेगा. टीम इंड्स चंद्रमा पर सैटेलाइट भेजने वाली पहली निजी कंपनी बनने के लिए प्रयास कर रही है.
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