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सावन की दूसरी सोमवारी : अमोघ फलदायी हैं द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन

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हिंदू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां स्वयं प्रगट हुए, उन 12 स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योति रूप में पूजा जाता है. ये कुल बारह ज्योतिर्लिंग हैं.

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हिंदू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां स्वयं प्रगट हुए, उन 12 स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योति रूप में पूजा जाता है. ये कुल बारह ज्योतिर्लिंग हैं. मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपता है, उसे शीघ्र ही मनोवांच्छि फल की प्राप्ति हो जाती है. कहा जाता है कि इन बारह ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करने वाला प्राणी सबसे भाग्यशाली होता है. इनके दर्शन मात्र से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है, यही भगवान शिव की उपासना का माहात्म्य है.

सोमनाथ : सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं, अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है. यह मंदिर गुजरात के काठियावाड़ में समुद्र के किनारे स्थित है. पहले यह प्रभासक्षेत्र के नाम से जाना जाता था. शिवपुराण के अनुसार जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पायी थी. ऐसा कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बतायी गयी है. चूंकि चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी, अत: इस ज्योतिर्लिंग को ‘सोमनाथ’ कहा जाता है. इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं. वे भगवान शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं. मोक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है.

मल्लिकार्जुन : मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है. इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है. अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं. कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है और दैहिक, दैविक और भौतिक ताप नष्ट हो जाते हैं. इनकी अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका-पुष्पों से की गयी थी, अत: इनका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा.

महाकालेश्वर : मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी में स्थित महाकालेश्वर एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है. क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित यह भारत की परम पवित्र सप्तपुरियों में से एक है. मान्यता है कि यहां भोलेनाथ ने स्वयं प्रकट होकर एक हुंकार मात्र से अत्याचारी दानव दूषण को जलाकर भस्म कर दिया था, इसलिए इनका नाम महाकाल पड़ा. यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्वभर में प्रसिद्ध है.

ओंकारेश्वर : यह मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है. नर्मदा के दो धाराओं में विभक्त हो जाने से बीच में बने टापू को मान्धाता-पर्वत या शिवपुरी कहते हैं. नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है. दक्षिण वाली धारा ही मुख्य धारा मानी जाती है. इसी मान्धाता-पर्वत पर श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग का मंदिर स्थित है. पूर्वकाल में महाराज मान्धाता ने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था. पहाड़ी के चारों ओर नर्मदा नदी के बहने से यहां ‘ऊं’ का आकार बनता है, इसलिए ओंकारेश्वर नाम पड़ा.

घृष्णेश्वर : शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के दौलताबाद से 12 मील दूर वेरुल गांव के पास है. यह घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध है. दूर-दूर से लोग यहां आत्मिक शांति प्राप्त करने आते हैं. एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के समीप स्थित हैं. यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व श्री जनार्दन महाराज की समाधि भी है. घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा पुराणों में बहुत विस्तार से वर्णित की गयी है. इनका दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदायी है.

रामेश्वरम् : तमिलनाडु के रामनाथपुरं में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से भी एक है. मान्यता है कि लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान श्रीरामंद्रजी ने यहां बालू से शिवलिंग बनाकर पूजन किया था. इसी कारण यह ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम् नाम से विख्यात हुआ. स्कंदपुराण में इसकी महिमा वर्णित है.

नागेश्वर : गुजरात में द्वारकापुरी से 17 मील दूर है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग. धर्मशास्त्रों में शिव नागों के देवता बताये गये हैं और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है. कथानुसार, शिव ने अपने अनन्य भक्त सुप्रिय को पाशुपत-अस्त्र प्रदान कर दारुक नामक राक्षस का अंत करवाया था. भक्त की प्रार्थना सुन भगवान कारागार में चमकते सिंहासन पर ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे. फिर सुप्रिय शिवधाम को चले गये.

बैद्यनाथ : झारखंड के देवघर जिला में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ही है, जहां शिव व शक्ति दोनों विराजमान हैं. श्री शिव महापुराण के उपर्युक्त द्वादश ज्योतिर्लिंग की गणना के क्रम में श्री बैद्यनाथ को नौवां ज्योतिर्लिंग बताया गया है. स्थान का संकेत करते हुए लिखा गया है – ‘चिताभूमौ प्रतिष्ठित:’. अन्य स्थानों पर भी ‘बैद्यनाथं चिताभूमौ’ लिखा गया है. कथानुसार, जब भगवान शंकर सती के शव को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर घूम रहे थे, उसी समय इस स्थान पर भगवान विष्णु द्वारा सती के शव को 51 भागों में विभक्त किया गया था.

ये 51 भाग विभिन्न स्थानों पर गिरे, जिसे शक्तिपीठ कहा गया. माता सती का हृदय बैद्यनाथधाम में गिरा था, इसलिए इसे हृदयपीठ या शक्तिपीठ भी कहा गया है. माता सती का अंतिम संस्कार भी यहीं किया गया था. इसलिए इसे चिताभूमि भी कहते हैं. बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मनुष्य को उसकी इच्छा के अनुकूल फल देने वाले हैं, इसलिए इसे कामनालिंग भी कहा गया है.

भीमाशंकर : यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से सौ किमी दूर सह्याद्रि पर्वत पर है. इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रृद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं. पौराणिक कथानुसार, भगवान शंकर ने यहां कुंभकर्ण के पुत्र व दुष्ट राक्षस भीम का अंत किया था. तब से ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करने लगे. 3,250 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह शिवलिंग काफी मोटा है, इसलिए ‘मोटेश्वर महादेव’ नाम से भी जाना जाता है. शिवपुराण में कथा विस्तार से दी गयी है. इस ज्योतिर्लिंग की महिमा अमोघ है.

काशी विश्वेश्वर : हजारों साल पूर्व वाराणसी में स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है. मान्यता है कि भगवान शिव ने इस ‘ज्योतिर्लिंग’ को स्वयं के निवास से प्रकाशपूर्ण किया है. भगवान शिव मंदर पर्वत से काशी आये तभी से उत्तम देवस्थान नदियों, वनों, पर्वतों, तीर्थों तथा द्वीपों आदि सहित काशी पहुंच गये. मान्यता यह भी है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान सुरक्षित बना रहेगा. इसकी रक्षा भगवान भोलेनाथ करते हैं. सभी लिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना केवल एक ही बार श्रद्धापूर्वक किये गये ‘विश्वनाथ’ के दर्शन-पूजन से मिल जाता है.

Post by : Pritish Sahay

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