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भगवान भरोसे राज्य की खेती

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।। मनोज सिंह ।। रांची : 23-24 अगस्त को विधानसभा की एक विशेष समिति पलामू व गढ़वा जिले के दौरे पर गयी थी. सुखाड़ की स्थिति का जायजा लेने के लिए. टीम के सदस्य चैनपुर प्रखंड के सेमरा और कुदागा गांव गये. कहीं धान की रोपाई नहीं हुई थी. जो बिचड़ा लगाया गया था, वह […]

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।। मनोज सिंह ।।

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रांची : 23-24 अगस्त को विधानसभा की एक विशेष समिति पलामू व गढ़वा जिले के दौरे पर गयी थी. सुखाड़ की स्थिति का जायजा लेने के लिए. टीम के सदस्य चैनपुर प्रखंड के सेमरा और कुदागा गांव गये. कहीं धान की रोपाई नहीं हुई थी. जो बिचड़ा लगाया गया था, वह पानी के अभाव में सूख रहा था. समिति ने ग्रामीणों से बात की थी. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खेतों में दूर-दूर तक रेगिस्तान जैसा दिख रहा था.

ग्रामीणों के पास पशुओं के लिए चारा की भी व्यवस्था नहीं थी. यह तो एक गांव की कहानी है, जो सरकारी पन्नों में दर्ज है. लेकिन, झारखंड के अधिकांश इलाके का यही हाल है. राज्य में आज भी खेती पूरी तरह भगवान (मॉनसून) पर निर्भर है. जब-जब मॉनसून अच्छा रहा, खेती ठीक हुई है. बारिश के पानी के संचय का उपाय राज्य में नहीं है. कृषि विभाग पिछले 12 सालों में 1140.27 करोड़ रुपये खर्च कर चुका है. पर इससे कोई खास बुनियादी ढांचा नहीं खड़ा हो पाया है.

कई जिलों में कृषि भवन तो बने, लेकिन राज्य का बीज फॉर्म जस का तस है. राज्य सरकार के पास बीज तैयार करने की अपनी कोई योजना नहीं है. सरकार किसानों को सीड एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत बीज उपलब्ध कराती है. कई बीज ग्राम स्थापित किये गये हैं. इससे राज्य को कुछ बीज मिल जा रहे हैं, लेकिन बड़ी मात्रा में बीज के लिए हमें अन्य एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

आज भी हमारे यहां एक-फसली (खरीफ की) खेती हो रही है. राज्य गठन के समय 32.72 लाख मीट्रिक टन अनाज का उत्पादन होता था. बारिश नहीं होने की स्थिति में हम इसी आंकड़े के आसपास अटके रहते हैं. जबकि हमारी जरूरत 60 लाख मीट्रिक टन के करीब है. 14 साल के शासन काल में मात्र एक बार (2012-13) जरूरत भर उत्पादन हुआ. 14 सालों में सात बार 30 लाख टन ही उत्पादन रहा.

* दो बार मिला कृषि कर्मन पुरस्कार

राज्य को दो बार दलहन के क्षेत्र में बेहतर उत्पादन के लिए कृषि कर्मन पुरस्कार भी मिल चुका है. एक बार सत्यानंद झा बाटुल तथा दूसरी बार योगेंद्र साव के मंत्रित्व-काल में. इसके बावजूद राज्य में दहलन उत्पादन के लिए कोई नया प्रयोग नहीं किया जा रहा है. कुछ छोटे-छोटे इलाके हैं, जहां दलहन उत्पादन हो रहा है. पूरे राज्य में इसके लिए कोई योजना नहीं है.

* आठ-आठ मंत्री देख चुके हैं विभाग

राज्य गठन के बाद से अब तक आठ कृषि मंत्री विभाग देख चुके हैं. यानी औसत कार्यकाल दो साल भी नहीं रहा. बार-बार मंत्री और अधिकारी बदलने का असर विभाग पर पड़ता है. अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में कृषि के विकास पर सुझाव देने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी बनी थी. इसके अध्यक्ष जाने-माने कृषि वैज्ञानिक एस स्वामीनाथन को बनाया गया था. कमेटी की बैठक सिर्फ एक बार हुई. हालांकि कमेटी ने एक रिपोर्ट सरकार को दी, लेकिन इस पर काम नहीं हुआ. बाद में कमेटी भंग कर दी गयी. पूर्व कृषि मंत्री सत्यानंद झा ने प्रत्येक जिले में जाकर किसानों से बात कर कृषि नीति तैयार करने की बात कही थी, पर यह भी नहीं हो पाया.

* दो मंत्री जा चुके हैं जेल

राज्य के दो कृषि मंत्री जेल भी जा चुके हैं. राज्य में खाद एवं बीज घोटाले का आरोप इन पर है. इसकी जांच निगरानी विभाग कर रही है. इसमें एक मंत्री झामुमो तथा एक भाजपा के हैं. खाद-बीज वितरण में गड़बड़ी करने के आरोप में विभाग के दो निदेशक भी जेल की हवा खा चुके हैं. ये सभी अधिकारी और मंत्री अभी जमानत पर हैं.

* कृषि विवि की भूमिका पर शक

राज्य में सिर्फ एक कृषि विश्वविद्यालय है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से कृषि, वानिकी और पशु चिकित्सा में स्नातक और स्नाकोत्तर की डिग्री दी जाती है. पढ़ाई के बाद यहां के छात्रों को नौकरी नहीं मिल रही है. अनुसंधान की स्थिति भी अच्छी नहीं है. यहां राज्य की जरूरत के अनुरूप संकर बीज या संकर पशु भी तैयार नहीं होते. विश्वविद्यालय और सरकार में तालमेल की भारी कमी है. यही कारण है कि पिछले कई कुलपतियों की शिकायत मंत्री राजभवन से करते रहे हैं. हाल ही में, कृषि मंत्री की शिकायत पर तत्कालीन कुलपति डॉ एमपी पांडेय के कामकाज पर रोक लगा दी गयी थी.

* क्या कहते हैं विशेषज्ञ

राज्य में कृषि के विकास के लिए बीज उत्पादन कार्यक्रम को बढ़ावा देने की जरूरत है. राज्य के पास अपने अच्छे बीज नहीं हैं. इसके लिए प्रत्येक जिले में एक बीज ग्राम होना चाहिए जिसमें हाइब्रिड बीज का उत्पादन हो. नयी-नयी तकनीकों से किसानों को अवगत कराना चाहिए. किसान कोनोविडर से धान लगाना चाहते हैं, लेकिन यह बाजार में उपलब्ध नहीं है. राज्य में जिला कृषि पदाधिकारी, आत्मा, प्रोग्राम डायरेक्टर के बीच तालमेल की कमी है. विभागीय स्तर पर इसके लिए ठोस प्रयास नहीं किये जाते हैं.

राज्य में सब्जी का उत्पादन अच्छा होता है. लेकिन यह काफी नहीं है. धान को बढ़ावा देने के लिए एरोबिक राइस टेक्नोलॉजी पर ध्यान दिया जाना चाहिए. सूखा प्रभावित क्षेत्र में यह काफी सफल है. यहां की जमीन में नाइट्रोजन की कमी है. किसानों को इसके लिए ज्यादा खाद उपलब्ध करायी जाये. राज्य में ज्यादा से ज्यादा जल संग्रह का प्रयास करना चाहिए.

।। डॉ बीएन सिंह ।।

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