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महाराष्ट्र में दोनों धड़ों के गंठबंधन की गांठ पड़ गयी है ढीली

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मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति के दो प्रमुख धड़े भाजपा-शिवसेना व कांग्रेस-एनसीपी के गंठबंधन की गांठ ढीली पड़ गयी है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है, लेकिन अबतक भाजपा-शिवसेना व कांग्रेस-एनसीपी में सीटों का बंटवारा नहीं हो सका है. दोनों गंठबंधन के नेता यह संकेत भी दे रहे हैं […]

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मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति के दो प्रमुख धड़े भाजपा-शिवसेना व कांग्रेस-एनसीपी के गंठबंधन की गांठ ढीली पड़ गयी है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है, लेकिन अबतक भाजपा-शिवसेना व कांग्रेस-एनसीपी में सीटों का बंटवारा नहीं हो सका है. दोनों गंठबंधन के नेता यह संकेत भी दे रहे हैं कि अगर मामला नहीं सुलझा तो वे अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं.
भाजपा-शिवसेना गंठबंधन
भाजपा व शिवसेना के बीच गंठबंधन की पटरी से उतरी बातचीत शुक्रवार को फिर संभलती दिखी जब, शुक्रवार को महाराष्ट्र से ही आने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट कर पूरे मामले से उन्हें अवगत कराया. इस मुलाकात के बाद दोनों दलों के नेताओं के एक-दूसरे के प्रति कड़े हो रहे स्वर भी मुलायम हुए. पर, शनिवार को फिर मामला खटाई में पड़ गया.
इधर, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से स्पष्ट कर दिया है कि वह भाजपा को 119 सीटें देने को तैयार हैं, इसमें नौ सीटें खुद भाजपा की जीत को ध्यान में रखते हुए शिवसेना प्रमुख तय करेंगे. शिवसेना की इस शर्त को भाजपा अपमानजनक मान रही है. उधर, शिवसेना नेता प्रेम शुक्ला ने कहा है कि हर कोई गंठबंधन के पक्ष में है. उन्होंने कहा है कि हिंदुत्व, राष्ट्र व महाराष्ट्र के हित में भाजपा को शिवसेना प्रमुख के प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए. वहीं, भाजपा की महाराष्ट्र इकाई के नेता शिवसेना प्रमुख के प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. राज्य इकाई के नेता विनोद तावड़े ने कहा है कि उनकी पार्टी इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती. शिवसेना के फामरूले के अनुसार, 288 सदस्यीय विधानसभा में 169 सीटों पर वह खुद लड़ना चाहती है, जबकि 119 सीटें भाजपा को व 18 सीटें अपने चार छोटे सहयोगियों को देना चाहती है.
पूर्व में कैसे बांटी थी सीटें
पूर्व में शिवसेना महाराष्ट्र में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती रही है. पहले के चुनाव में शिवसेना 169 व 171 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है. लेकिन भाजपा का मानना है कि बाला साहब ठाकरे की मौत व राज ठाकरे के अलग होने के बाद शिवसेना में पुरानी ताकत नहीं है, जबकि उसकी ताकत बढ़ी है. इस बार लोकसभा में भी महाराष्ट्र में भाजपा जहां 22 सीटें जीत गयी, वहीं शिवसेना 18 सीटें ही जीत सकी. भाजपा नेता कहते हैं कि शिवसेना को इतनी अधिक सीटें मोदी लहर में ही मिल सकी.
कांग्रेस-एनसीपी के बीच भी तनातनी
बदले राजनीतिक हालात में शिवसेना को जहां उसकी सहयोगी भाजपा कमजोर मान रही है, वहीं कांग्रेस को उसकी सहयोगी एनसीपी कमजोर मानने लगी है. एनसीपी का मानना है कि कांग्रेस की इस बार लोकसभा चुनाव में करारी हार हुई है. पार्टी या उसके नेताओं की लोकप्रियता पहले जैसी नहीं है. उसके बड़े नेताओं पर भी गंभीर आरोप लगे हैं. ऐसे मे एनसीपी को कांग्रेस और अधिक सीटें देने को राजी हो लेकिन वहीं कांग्रेस ने 125 सीटें देने का प्रस्ताव दिया है और कहा है कि इस फार्मूले पर तैयार नहीं होने पर अकेले लड़ेगी.
दोनों गंठबंधन के टूटने पर क्या होगा
अगर सीटों की जिद पर अड़े महाराष्ट्र की राजनीति के इन ताकतवर दलों का गंठबंधन टूट जाता है, तो राज्य में बिल्कुल नया राजनीतिक समीकरण उभर सकता है. राकांपा व शिवसेना के एक साथ आने का विकल्प बचता है. शिवसेना व कांग्रेस मौजूदा परिस्थितियों में कभी एक साथ्ज्ञ खड़े नहीं हो सकते. वहीं, भाजपा राज ठाकरे की पार्टी मनसे से गंठजोड़ कर सकती है.

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