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ब्याज दरों में कटौती का अनंत इंतजार

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राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन आरबीआइ को ही महंगाई दर के मामले में थोड़ा लचीला रवैया दिखाना होगा. उसे खुदरा महंगाई दर में कमी का इंतजार करने के बजाय थोक महंगाई में कमी को ही आधार बनाते हुए ब्याज दरों में कटौती शुरू करनी चाहिए. हाल में सुनने में आया था कि महंगाई घट […]

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राजीव रंजन झा

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संपादक, शेयर मंथन

आरबीआइ को ही महंगाई दर के मामले में थोड़ा लचीला रवैया दिखाना होगा. उसे खुदरा महंगाई दर में कमी का इंतजार करने के बजाय थोक महंगाई में कमी को ही आधार बनाते हुए ब्याज दरों में कटौती शुरू करनी चाहिए.

हाल में सुनने में आया था कि महंगाई घट गयी है. यह सुन कर आपको अच्छा लगा होगा कि महंगाई दर घट कर पांच वर्षो के सबसे निचले स्तर पर आ गयी है. लेकिन भरोसा नहीं हुआ होगा, तुरंत आपने खुद को चिकोटी काटी होगी, यह देखने के लिए कि आप जगे हुए हैं या सपना देख रहे हैं. शायद उसी तर्ज पर रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को भी इन आंकड़ों पर अभी भरोसा नहीं हुआ है. इसीलिए उन्होंने मौद्रिक नीति की द्वैमासिक समीक्षा में आरबीआइ की ब्याज दरों को जस-का-तस बनाये रखा है, घटाया नहीं है.

लोग ऐसी उम्मीद भी नहीं कर रहे थे कि ब्याज दरें घटनेवाली हैं. दरअसल, हाल ही में मुंबई में रघुराम राजन ऐसी मांग को साफ नकार चुके थे. तो फिर महंगाई घटने, लेकिन आम लोगों को राहत नहीं मिलने और आरबीआइ द्वारा ब्याज दरें नहीं घटाने की यह पहेली क्या है?

दरअसल, जो महंगाई दर पांच वर्षो के निचले स्तर पर आयी है, वह थोक महंगाई दर (डब्लूपीआइ) है. यह थोक महंगाई दर अगस्त, 2014 में घट कर 3.74 फीसदी पर आ गयी है, जो वाकई करीब पांच वर्षो का सबसे निचला स्तर है. जुलाई में यह दर 5.19 फीसदी थी. लेकिन, हम जिस महंगाई को खुद भुगतते हैं, वह खुदरा महंगाई दर में दिखती है. वह जुलाई के 7.96 फीसदी से घट कर अगस्त में 7.8 फीसदी पर आ गयी. यानी उसमें कमी तो आयी, पर उतनी नहीं, जितनी थोक महंगाई दर में.

यहां दो बातें समझनेवाली हैं. सबसे पहले तो यह कि महंगाई दर घटने का मतलब चीजों के दाम घटना नहीं होता. बल्कि यह कि चीजों के दाम बढ़ने की रफ्तार पहले से कम हो गयी है. इसलिए जब आप सुनते हैं कि महंगाई दर नीचे आ गयी है, तो उसका अर्थ यह है कि 100 रुपये की जिस चीज का दाम बढ़ कर 110 रुपये हो सकता था, वह केवल 105 रुपये हुआ है. अब यह उम्मीद तो कोई भूले-भटके भी नहीं करता कि 100 रुपये की चीज के दाम घट कर कभी 95 या 90 रुपये हो जायेंगे! यह केवल कुछ असामान्य स्थितियों में ही होता है, जैसे टमाटर के भाव 80 रुपये तक जाने के बाद फिर से 40 रुपये पर लौट आता है.

दूसरी बात जो थोक और खुदरा महंगाई दर में अंतर से दिखती है, वह यह है कि महंगाई को घटाने के सरकारी उपाय खुदरा स्तर पर ज्यादा नाकाम हो रहे हैं. सरकार एक थोक व्यापारी के गोदाम पर तो छापे मार सकती है, लेकिन ठेले पर सब्जियां बेचनेवाला मंडी से किस भाव पर खरीद कर किस खुदरा भाव पर बेचेगा, इस पर नियंत्रण का कोई उपाय सरकार के पास नहीं है. खुदरा व्यापारी इस मानसिकता का फायदा उठाते हैं कि एक बार जो दाम बढ़ गये, वे फिर से नीचे थोड़े ही आते हैं! पिछले साल अगस्त में प्याज के थोक भाव 273 फीसदी बढ़े थे. इस साल अगस्त में प्याज के थोक भाव 45 फीसदी घटे हैं. लेकिन क्या प्याज की कीमतों में कोई भारी कमी आपको अपने खुदरा बाजार में दिखी है?

पिछले साल अगस्त में खाद्य वस्तुओं की थोक महंगाई दर 19.17 फीसदी थी, जो इस साल अगस्त में घट कर 5.15 फीसदी पर आ गयी. लेकिन खुदरा बाजार में खाद्य महंगाई दर 9.42 फीसदी पर रही, पिछले महीने यानी जुलाई के 9.36 फीसदी से बढ़ कर. यानी थोक में महंगाई शांत पड़ रही है, पर खुदरा में अब भी फुफकार रही है. इसलिए थोक महंगाई दर घटने से आपको कोई राहत नहीं मिलनेवाली, न ही इससे रघुराम राजन की चिंताएं कम होनेवाली हैं. पहले आरबीआइ की नजर मुख्य रूप से थोक महंगाई दर पर होती थी और उसी के हिसाब से इसकी नीतियां तय होती थीं. लेकिन पिछले कुछ समय से इसने खुदरा महंगाई दर को भी तवज्जो देना शुरू कर दिया है, जो उचित ही है.

इसलिए जब तक खुदरा महंगाई दर में पर्याप्त कमी आती नहीं दिखे, तब तक आरबीआइ अपनी ब्याज दरों में कमी नहीं करेगा. आरबीआइ जब अपनी ब्याज दरों को घटाता है, तभी बैंक हमारे-आपके लिए और छोटी-बड़ी कंपनियों के लिए ब्याज दरें घटाते हैं. ब्याज दरें घटने से निवेश और खपत दोनों में इजाफा होता है और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है. इसीलिए आर्थिक जानकारों के एक बड़े तबके और उद्योग जगत की अरसे से मांग रही है कि आरबीआइ ब्याज दरें घटाने का चक्र शुरू करे. मगर ऊंची महंगाई दर का हवाला देकर आरबीआइ ने इस मांग को लगातार नकारा है.

रघुराम राजन कह चुके हैं कि उन्हें खुदरा महंगाई दर जनवरी, 2015 तक 8 प्रतिशत और उसके अगले 12 महीनों में घट कर 6 प्रतिशत पर आने का इंतजार है. इसलिए आरबीआइ को डर है कि इस समय ब्याज दरों में कटौती करने पर कहीं महंगाई दर फिर से न उछल जाये. लेकिन नयी सरकार के आने के बाद से जिस तरह लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ी हैं, उसके मद्देनजर यह स्वाभाविक है कि अब आरबीआइ पर ब्याज दरें घटाने का दबाव बनेगा. ऐसे में सरकार और आरबीआइ के बीच फिर से खींचतान शुरू होने का अंदेशा रहेगा. सरकार ब्याज दरें घटाने के लिए आरबीआइ को इशारे करती रहेगी और आरबीआइ कहता रहेगा कि हुजूर पहले महंगाई तो घटाइए.

सरकार को यह देखना होगा कि थोक महंगाई में आयी कमी कैसे खुदरा बाजार पर भी असर दिखाये. वहीं आरबीआइ को भी एक हद तक यह समझना होगा कि भारत में महंगाई दर की उठापटक पर उसकी ब्याज दरें ऊंची रखने से कोई नियंत्रण नहीं हो पाता है. उसने वर्षो से अपनी ब्याज दरें ऊंची रख कर देख लिया, क्या फर्क पड़ा महंगाई पर? अगर थोक महंगाई दर घटी है, तो इसका कारण आरबीआइ की ऊंची ब्याज दरें नहीं हैं. इसके पीछे दो मुख्य कारण हैं- खाद्य महंगाई में कमी और ईंधन की कीमत में कमी. इन दोनों पर आरबीआइ की ब्याज दरों का कोई असर नहीं होता. खाद्य महंगाई के पीछे मुख्य समस्या आपूर्ति पक्ष से जुड़ी है. यह समझा जा सकता है कि जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के लिए थोक व्यापारियों पर सरकार ने हाल में जो सख्ती की, उसका कुछ असर दिखा है. वहीं ईंधन, खास कर पेट्रोल की कीमत में कमी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम घटने से आयी है.

अब आरबीआइ को ही महंगाई दर के मामले में थोड़ा लचीला रवैया दिखाना होगा. उसे खुदरा महंगाई दर में कमी का इंतजार करने के बजाय थोक महंगाई में कमी को ही आधार बनाते हुए ब्याज दरों में कटौती शुरू करनी चाहिए. लेकिन राजन का मानना है कि अभी ब्याज दरों में कटौती करने का कोई तुक नहीं है, क्योंकि इससे फिर महंगाई बढ़ने लगेगी. वे उल्टे उद्योग जगत से कह रहे हैं कि आप दाम घटा दीजिए, तो हम ब्याज दरें घटा देंगे. लेकिन राजन साहब, खाद्य महंगाई न तो बिड़ला साहब घटा सकते हैं, न टाटा, न अंबानी साहब और न आप. तो क्या दैवीय कृपा से महंगाई घटने का अनंत इंतजार करते रहेंगे?

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