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राहुल गांधी के रास्ते में चिदंबरम बने रोड़ा!

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नयी दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने एक अंगरेजी न्यूज चैनल से बातचीत के माध्यम से यह चर्चा छेड़ दी है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गैर गांधी होगा. नेहरू -गांधी परिवार के बेहद करीबी चिदंबरम ने यह चर्चा ऐसे समय छेड़ी है, जब पार्टी के मौजूदा नेतृत्व पर […]

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नयी दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने एक अंगरेजी न्यूज चैनल से बातचीत के माध्यम से यह चर्चा छेड़ दी है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गैर गांधी होगा. नेहरू -गांधी परिवार के बेहद करीबी चिदंबरम ने यह चर्चा ऐसे समय छेड़ी है, जब पार्टी के मौजूदा नेतृत्व पर लगातार सवाल उठ रहे हैं और सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है. इसी महीने पार्टी महासचिवों की बैठक होने वाली है और अगले साल पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होना है. चिदंबरम ने राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाने के फैसलों पर यह कह कर सवाल उठा दिया है कि शायद यह फैसला सही था. समझा जाता है कि चिदंबरम अपने इस बयान से सोनिया गांधी द्वारा राहुल को पार्टी अध्यक्ष बनाने की कवायद पर रोक लगाना चाहते हैं.वर्तमान में कांग्रेस का नेतृत्व पार्टी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष के रूप में उनके पुत्र राहुल गांधी संयुक्त रूप से कर रहे हैं.

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पूर्व वित्तमंत्री ने न्यूज चैनल की पत्रकार के सवाल पर कहा कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गैर गांधी भी हो सकता है.चिदंबरम ने उक्त न्यूज चैनल से यह भी कहा कि सोनिया गांधी व राहुल गांधी को अधिक मुखर होना चाहिए और ऐसा टाइमटेबल अमल में लाना चाहिए, जो पार्टी को ऐसे समय में सच्चे विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए सक्षम बनाये, जब पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी गिरा हुआ है. उन्होंने कहा है कि सरकार के सामने एक ठोस विपक्ष पेश करने का कार्य लंबित है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सोनिया-राहुल मीडिया से मिलें. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संगठन में नंबर एक हैं और राहुल को पिछले वर्ष जनवरी में उपाध्यक्ष बनाने का फैसला शायद सही था. उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी गिरा हुआ है, लेकिन ऐसा नहीं है कि उसे उठाया नहीं जा सकता है.

चिदंबरम कायह बयान कालाधन के मुद्दे पर बातचीत के दौरान आया है. चिदंबरम ने अपनी बातचीत में यह भी कहा कि अगर कालाधन वालों की सूची सार्वजनिक होती है, तो इससे कांग्रेस का वह नेता शर्मिदा होगा, जिसका नाम उस सूची में होगा. इससे पार्टी शर्मिदा नहीं होगी, क्योंकि यह व्यक्तिगत अपराध है.

हाल के सालों में कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है. पिछले साल उससे राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्य छिन गये और इस साल महाराष्ट्र व हरियाणा. केंद्र की सरकार भी कांग्रेस से छिन चुकी है. लगातार शिकस्त से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में भयंकर निराशा है. कार्यकर्ताओं का एक समूह राहुल गांधी से पार्टी का नेतृत्व छिन उनकी बहन प्रियंका गांधी को पार्टी का नेतृत्व सौंपने की मांग लगातार कर रहा है. इसके लिए इलाहाबाद में पोस्टरबाजी व दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर नारेबाजी बार-बार होती रही है.
पर, राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि प्रियंका गांधी में आकर्षण होने के बावजूद पार्टी के लिए उनका नेतृत्व सहज नहीं होगा. इसका सबसे बड़ा कारण उनके पति राबर्ट वाड्रा के जमीन खरीद-बिक्री व कारोबारी रिश्तों को लेकर लगातार उठने वाले सवाल हैं. ऐसे में यह लाजिमी है कि ऐसे सवाल उठें कि सोनिया गांधी के बाद राहुल-प्रियंका नहीं तो कौन. आजादी के बाद से यह पार्टी कुछ मौकों को छोड़ हमेशा नेहरू -गांधी परिवार की सरपरस्ती में रही है.
हालांकि जब-जब नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व को चुनौती मिली और पार्टी को गैर गांधी नेतृत्व मिला तो वह फौरी ही साबित हुआ. जगजीवन राम, सीताराम येचुरी, जितेंद्र प्रसाद, माधव राव सिंधिया व राजेश पायलट जैसे नाम इस सूची में शुमार हैं.
दिग्विजय व एंटोनी भी उठाचुकेहैं सवाल
कांग्रेस महासचिव व राहुल के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह भी गाहे-बगाहे राहुल की राजनीति पर अप्रत्यक्ष ढंग से सवाल उठाते रहे हैं. दिग्विजय ने लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद कहा था कि राहुल गांधी का टेंपारमेंट शासन करनेवाला नहीं है. वे सत्ताधारी व्यक्ति नहीं हैं. वे बाय टेंपरामेंट ऐसे व्यक्ति हैं, जो अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहते हैं. राजनीति व पत्रकारिता के गलियारे में राहुल के इस व्यक्तित्व को एनजीओ टाइप पॉलिटिक्स का नाम दिया गया.
उनसे पहले लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता एके एंटोनी ने अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस नेतृत्व पर यह कह कर सवाल उठा दिया था कि पार्टी के लिए अति धर्मनिरपेक्ष दिखना नुकसानदेह साबित हुआ. उनके कहने काप्रेक्षकोंने यह निहितार्थ निकाला कि कांग्रेस द्वारा धर्मनिरपेक्षता पर अत्यधिक जोर देने से बहुसंख्यक समुदाय में यह संकेत गया कि यह पार्टी उनके हितों के खिलाफ है. याद कीजिए अल्पभाषी प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जिन्होंने 10 सालों तक देश पर शासन किया, उनके सर्वाधिक चर्चित बयान में यह वक्तव्य था कि देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है. हालांकि बाद में एंटोनी के बयान पर केरल कांग्रेस के नेताओं ने बचाव करते हुए कहा कि उनका यह बयान केरल केंद्रित था, यह राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में नहीं दिया गया था.

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