अध्यात्म कायरों और निकम्मों के लिए नहीं है. आप अपने जीवन में कुछ और नहीं कर सकते और सोचते हैं कि मैं आध्यात्मिक हो सकता हूं, तो यह संभव नहीं है. अगर आपके पास इस संसार के किसी भी काम को बेहतर ढंग से करने की शक्ति और साहस है, तभी शायद आप आध्यात्मिक हो सकते हैं.
आजकल पूरे समाज के मन में यही धारणा है कि सिर्फ निकम्मे और नालायक लोग ही अध्यात्म की तरफ जाते हैं. इसकी वजह है कि आज समाज में तथाकथित आध्यात्मिक लोग ऐसे ही हैं. ये लोग कुछ भी करने लायक नहीं हैं और ये बस एक गेरुआ वस्त्र पहन कर किसी भी मंदिर के सामने बैठ जाते हैं और उनका जीवन संवर जाता है. यह अध्यात्म नहीं है. यह वर्दी पहन कर भीख मांगना है. अगर आपको अपनी चेतना पर विजय पानी है, चेतना के शिखर पर पहुंचना है, तो वहां एक भिखारी कभी नहीं पहुंच सकता.
आध्यात्मिक होने का अर्थ है अपने भीतर का सम्राट होना. होने या जीने का यही एकमात्र तरीका है. क्या होने या जीने का कोई दूसरा तरीका भी है? कोई व्यक्ति अपनी पूरी चेतना में क्या किसी ऐसे जीवन का चुनाव करेगा, जहां उसे कोई चीज किसी और से मांगनी पड़े? हो सकता है कि लाचारी में उसे कुछ मांगना पड़े. क्या हर आदमी उस तरह से नहीं होना चाहेगा, जहां वह पूरी तरह सक्षम हो? इसका यह कतई मतलब नहीं कि आपको पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनना है. पारस्परिक-निर्भरता हमेशा होती है, लेकिन आपके भीतर जो चीजें मौजूद हैं, उन्हें बाहर नहीं खोजना है.
सद्गुरु जग्गी वासुदेव