इनसान को अंतरिक्ष में भेजने के भारतीय लक्ष्य की में आज भारत को एक अहम सफलता मिली. भारत की यह उपलब्धि दुनिया भर के मीडिया में सुर्खी बन गया है. अमेरिकी न्यूज वेबसाइट हाफिंगटन पोस्ट ने इसे सबसे बड़ी खबर बनाया है. बीबीसी ने भी इस प्रमुखता से जगह दी है. बीबीसी ने अपनी खबर में कहा है कि भारत ने सफलतापूर्वक अपना सबसे भारी रॉकेट लांच कर लिया है. खबर में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की सफलता का उल्लेख करते हुए सितंबर में भारत के सफल मंगल अभियान की चर्चा की गयी है.
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विश्व मीडिया में भी छाया एलवीएम MK – 111, अंतरिक्ष की ओर बढ़े भारत के नन्हें कदम
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भारत ने अंतरिक्ष की ओर नन्हें कदम बढाते हुए आज इसरो ने अपने सबसे भारी प्रक्षेपण वाहन जीएसएलवी एमके-3 के प्रक्षेपण के साथ ही चालक दल मॉड्यूल को वातावरण में पुन: प्रवेश कराने का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया.
आज सुबह नौ बजकर 30 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की दूसरी प्रक्षेपण पट्टी (लॉन्च पैड) से इसके प्रक्षेपण के ठीक 5.4 मिनट बाद मॉड्यूल 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाकर रॉकेट से अलग हो गया और फिर समुद्र तल से लगभग 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश कर गया.
यह बहुत तेज गति से नीचे की ओर उतरा और फिर इंदिरा प्वाइंट से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में उतर गया. इंदिरा प्वाइंट अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का दक्षिणतम बिंदु है.
एलवीएम3-एक्स की इस उड़ान के तहत इसमें सक्रिय एस 200 और एल 110 के प्रणोदक चरण हैं. इसके अलावा एक प्रतिरूपी इंजन के साथ एक निष्क्रिय सी 25 चरण है, जिसमें सीएआरइ (क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री एंटरी एक्सपेरीमेंट) इसके पेलोड के रूप में साथ गया है.
तीन टन से ज्यादा वजन और 2.7 मीटर लंबाई वाले कप-केक के आकार के इस चालक दल मॉड्यूल को आगरा स्थित डीआरडीओ की प्रयोगशाला एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेबलिशमेंट में विशेष तौर पर तैयार किए गए पैराशूटों की मदद से समुद्र में उतारा जाना था.
3.1 मीटर के व्यास वाले इस चालक दल माड्यूल की आंतरिक सतह पर एल्यूमीनियम की मिश्र धातु लगी है और इसमें विभिन्न पैनल एवं तापमान के कारण क्षरण से सुरक्षा करने वाले तंत्र हैं.
इस परीक्षण के तहत देश में बने अब तक के सबसे बड़े पैराशूट का भी इस्तेमाल किया गया. 31 मीटर के व्यास वाले इस मुख्य पैराशूट की मदद से ही चालक दल मॉड्यूल ने जल की सतह को सात मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार के साथ छुआ.
सफल प्रायोगिक परीक्षण के कुछ ही समय बाद इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने आनंदित स्वर में कहा, ‘‘चार टन वजन की श्रेणी के तहत आने वाले संचार उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने में समर्थ, आधुनिक प्रक्षेपण वाहन के विकास के कारण भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में यह बहुत महत्वपूर्ण दिन है.’’
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