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शिवसेना की मांग : संविधान से ”धर्मनिरपेक्ष” शब्द स्थायी रूप से हटा दिया जाए

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मुम्बई : गणतंत्र दिवस पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन पर उठे विवाद के बीच शिवसेना ने आज संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को स्थायी तौर पर हटाने की मांग की. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञापन के मुद्दे पर कल राजनीतिक दलों में कटुतापूर्ण वाकयुद्ध शुरु हो गया था. […]

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मुम्बई : गणतंत्र दिवस पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के विज्ञापन पर उठे विवाद के बीच शिवसेना ने आज संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को स्थायी तौर पर हटाने की मांग की.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञापन के मुद्दे पर कल राजनीतिक दलों में कटुतापूर्ण वाकयुद्ध शुरु हो गया था. दरअसल, इस विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना के चित्र पेश किये गए थे जो 42वें संशोधन से पहले के थे और जिसमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द नहीं था.
शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, हम गणतंत्र दिवस से जुड़े विज्ञापन के शब्दों (धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी) हटाने का स्वागत करते हैं. यह अनजाने में किया गया होगा लेकिन यह भारत के लोगों की भावना का सम्मान करने जैसा है. अगर इन शब्दों को इस बार गलती से हटाया गया है, तब इन शब्दों को संविधान से स्थायी तौर पर हटाया जाए.
उन्होंने कहा, जब से इन्हें (शब्दों को) संविधान में शामिल किया गया, यह कहा जा रहा है कि यह देश कभी धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता. बाला साहब ठाकरे और उनसे पहले वीर सावरकर ने कहा था कि भारत को धर्म के आधार पर बांटा गया. पाकिस्तान मुसलमानों के लिए बनाया गया और जो बचा वह हिन्दू राष्ट्र है.
राउत ने आरोप लगाया कि अल्पसंख्यक समुदाय का इस्तेमाल हमेशा से राजनीतिक फायदे के लिए किया जाता रहा है जबकि हिन्दुओं का लगातार निरादर किया जाता रहा है.
उन्होंने कहा, संविधान में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि हिन्दुओं के साथ इस तरह का व्यवहार हो और मुसलमानों को वोट के लिए इस्तेमाल हो. शिवसेना नेता ने कहा, सरकार की ओर से यह गलती इसलिए हुई क्योंकि नियति ऐसा चाहती थी. मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं और हिन्दुत्व पर उनके विचार मजबूत हैं.
कल कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस मुद्दे पर केंद्र पर निशाना साधते हुए दावा किया था कि सरकार के विज्ञापन में दो शब्दों को हटाना उनका ‘साम्प्रदायिक’ और ‘कॉरपोरेट’ रूप है.
हालांकि, इस विवाद पर सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री ने, इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि इसमें केवल प्रस्तावना के मूल चित्रों को लिया गया जो संशोधन से पूर्व के थे और यह पहली प्रस्तावना का सम्मान है. केंद्रीय मंत्री ने यह भी दावा किया कि सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अप्रैल 2014 के एक विज्ञापन में इसी चित्र का उपयोग किया था.

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