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आप का संकट : एक संभावना की भ्रूण-हत्या!

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प्रकाश कुमार रे

नयी दिल्ली : वैकल्पिक राजनीति की स्थापना के संकल्प के साथ करीब दो साल पहले अस्तित्व में आयी आम आदमी पार्टी बिखराव के कगार पर खड़ी दिख रही है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दो विरोधी गुटों में बंट चुका है. एक ओर राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थक नेता हैं, तो दूसरी ओर योगेंद्र यादव तथा प्रशांत भूषण खड़े हैं.

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दिल्ली चुनाव में भारी जीत हासिल कर पार्टी के सत्ता में आने के तीन सप्ताह के भीतर ही आंतरिक कलह का इस हद तक बढ़ जाना अचंभित तो जरूर करता है, लेकिन पिछले कई महीनों के घटनाक्रम के मद्देनजर कहा जा सकता है कि यह अप्रत्याशित कतई नहीं है.

आज भले ही केजरीवाल के समर्थक नेता यादव और भूषण पर सीधे आरोप लगा रहे हों, लेकिन बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेने के तुरंत बाद दिये गये अपने संबोधन में केजरीवाल ने बिना किसी का नाम लिये कहा था कि उनके कुछ सहयोगी राजनीतिक ‘अहंकार’ के शिकार हो गये थे और वे देश भर में चुनाव लड़ कर सत्ता में आने की कोशिश में लग गये थे, जो कि गलत था. उन्होंने साफ कहा था कि उनकी और पार्टी की प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ ‘दिल्ली की सेवा’ है. मौजूदा संकट पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए केजरीवाल ने फिर कहा है कि उन्हें बस दिल्ली के जनादेश का पालन करना है. दरअसल, दिल्ली पर ध्यान केंद्रित करने का तर्क योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के नजरिये से अलग है, जो आप को एक देशव्यापी राजनीतिक उपस्थिति बनाना चाहते हैं.

राजनीतिक मतभेद के इसी बिंदु से इस संकट के तार खुलते हैं. अरविंद केजरीवाल के समर्थकों का आरोप है कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण उन्हें राष्ट्रीय संयोजक के पद से हटा कर पार्टी के एजेंडे को अपने हिसाब से तय करना चाहते हैं. हालांकि इन नेताओं ने इस आरोप का खंडन किया है, लेकिन शांति भूषण समेत दोनों नेता पार्टी के भीतर लोकतंत्र की कमी और व्यक्ति-केंद्रित राजनीति के प्रति अपना असंतोष जताते रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में पार्टी से अलग होनेवाले नेताओं ने भी केजरीवाल और उनके समर्थकों पर ऐसे ही आरोप लगाये थे. आप के आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास ने भी केजरीवाल पर जिम्मेवारियों के बोझ के मद्देनजर सह-संयोजकों की नियुक्ति और सांगठनिक ढांचे में बेहतरी की बात कही है. हालांकि यादव और भूषण ने इस बात से इनकार किया है कि वे अरविंद केजरीवाल को संयोजक पद से हटाना चाहते हैं. उन्होंने तो यहां तक कहा है कि वे चाहते हैं कि केजरीवाल इस पद पर बने रहें, क्योंकि वे पार्टी के ‘प्रतीक’ हैं.

शांति भूषण और एडमिरल एल रामदास के अलावा इस संकट के समाधान के लिए बनी पार्टी की तीन सदस्यीय आंतरिक समिति के सदस्य एवं पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रोफेसर आनंद कुमार के भी कहा है कि अरविंद केजरीवाल, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को मिल कर काम करना चाहिए. सोशल मीडिया साइटों पर बड़ी संख्या में आप के समर्थकों की भी ऐसी ही राय सामने आ रही है. लेकिन, अरविंद केजरीवाल के समर्थकों के तेवर को देखते हुए लगता है कि असंतुष्ट समूह के लिए पार्टी में जगह लगातार संकुचित होती जा रही है. पार्टी के दिल्ली राज्य सचिव दिलीप पांडेय, प्रवक्ता आशुतोष, आशिष खेतान और वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने यादव और भूषण पर केजरीवाल को हटाने, पार्टी को कमजोर करने और उस पर कब्जा करने और अति वामपंथ का एजेंडा आगे करने के गंभीर आरोप लगाये हैं. अब सबकी निगाहें चार मार्च को होनेवाली पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पर हैं. एडमिरल राम दास समेत पार्टी के अनेक समर्थकों की उम्मीदें अरविंद केजरीवाल पर टिकी हैं कि वे इस संकट में हस्तक्षेप कर पार्टी में स्थिरता लाने का प्रयास करेंगे.

लेकिन, राजनीतिक विश्लेषकों को ऐसा होने की अपेक्षा नहीं है और यह तय माना जा रहा है कि पार्टी के शीर्ष समितियों से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को हटा दिया जायेगा. अगर अभी ऐसा नहीं भी होता है, तब भी मतभेद की गांठें बहुत अधिक समय तक दबी नहीं रह सकेंगी. जानकारों की राय है कि इस संकट की परिणति पर यह निर्भर करेगा कि आम आदमी पार्टी तृणमूल कांग्रेस या अन्ना द्रमुक की तरह दिल्ली की एक सुप्रीमो-नियंत्रित क्षेत्रीय पार्टी बन कर रह जायेगी या अपने मूल सिद्धांतों के आधार पर राष्ट्रीय परिदृश्य में राजनीतिक हस्तक्षेप के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेगी.

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