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पढें किन संसोधनों के साथ भूमि संशोधन विधेयक लोकसभा में हुआ पारित

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नयी दिल्ली : विवादास्पद भूमि संशोधन विधेयक को मंगलवार को लोकसभा की मंजूरी मिल गयी जिसे पारित कराने के लिए सरकार ने इसमें नौ संशोधन शामिल किये. इस कवायद के बाद ही सरकार के सहयोगी दल साथ देने को राजी हुए. हालांकि, शिवसेना ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. विरोध के बीच सरकार ने बीच […]

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नयी दिल्ली : विवादास्पद भूमि संशोधन विधेयक को मंगलवार को लोकसभा की मंजूरी मिल गयी जिसे पारित कराने के लिए सरकार ने इसमें नौ संशोधन शामिल किये. इस कवायद के बाद ही सरकार के सहयोगी दल साथ देने को राजी हुए. हालांकि, शिवसेना ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. विरोध के बीच सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए जहां विपक्ष व सहयोगी दलों के कुछ सुझावों को नये संशोधनों के जरिये विधेयक का हिस्सा बनाया और उसमें दो नये उपबंध जोड़े. वहीं, विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार ने उसकी ओर से रखे गये संशोधनों में से किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया. न ही इस विधेयक को स्थायी समिति में भेजने की उसकी मांग को माना गया. बाद में सदन ने विपक्ष की ओर से रखे गये संशोधनों को अस्वीकार करते हुए और सरकारी संशोधनों को मंजूर करके ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्रव्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार संशोधन विधेयक 2015’ पर अपनी मुहर लगा दी. यह विधेयक इस संबंध में जारी अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाया गया है.

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल, सपा, राजद ने विधेयक के पारित होने के समय सदन से वाकआउट किया जबकि बीजद के सदस्य विधेयक पर खंडवार चर्चा के दौरान ही वाकआउट कर गये थे. सत्तारूढ़ एनडीए के अन्य दल स्वाभिमानी पक्ष ने एक संशोधन पेश किया जिसे अस्वीकार कर दिया गया. लोकसभा में पूर्ण बहुमत रखने वाली एनडीए सरकार को अब इस विधेयक को राज्य सभा में पारित कराने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी जहां वह अल्पमत में है और विपक्ष एकजुट है. वैसे विपक्ष का साथ पाने के प्रयास के तहत ग्रामीण विकास मंत्री वीरेंद्र सिंह ने सदन को आश्वस्त किया कि सरकार ने पहले ही कुछ नये संशोधनों को लाकर विपक्ष और अन्य दलों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है. उसने पुराने कानून में ‘आत्मा’ डालकर इसे ग्रामीण विकास और किसानों के उत्थान का महत्वपूर्ण माध्यम बनाया है.

विपक्ष के साथ तकरार

विधेयक पर चर्चा के दौरान मंत्री बीरेंद्र सिंह की कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और दीपेंदर हुड्डा के साथ तकरार हुई और अध्यक्ष सुमित्र महाजन को हस्तक्षेप करना पड़ा. राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, एम वेंकैया नायडू समेत कई मंत्रियों को ग्रामीण विकास मंत्री से आसन को संबोधित करने को कहते सुना गया. बीरेन्द्र सिंह ने कहा कि हमारी सरकार नया कानून इसलिए लाई है क्योंकि किसान समृद्ध बने और उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं सुविधाएं मिले.

संशोधन की जरूरत क्यों

मंत्री वीरेंद्र सिंह ने कहा कि भूमि कानून में संशोधन लाने की जरूरत इसलिए भी पड़ी क्योंकि अभी तक केवल छह राज्यों ने भूमि अधिग्रहण के संबंध में मुआवजे का निर्धारण व जमीन के आकार की माप के लिए नियम बनाये हैं. अनेक राज्यों में ये नियम नहीं बने हैं जिससे यह साफ है कि वे 2013 के कानून से सहमत नहीं थे. 32 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, मुख्य सचिवों और राजस्व मंत्रियों की बैठक में विभिन्न राज्यों ने मूल कानून में कुछ सुधार की जरूरत बतायी.

कांग्रेस पर सरकार का वार

मंत्री वीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जो पार्टी इस विधेयक के बारे में सबसे अधिक हंगामा कर रही है, उसने आजादी के 65 साल में से 50 वर्ष से अधिक शासन किया है लेकिन किसानों की कोई सुध नहीं ली. उलटे कंपनी अधिनियम में कॉरपोरेट क्षेत्र के देनदारी सुरक्षित रखने का काम किया. आज 70 प्रतिशत किसान के पास एक से सवा एकड़ जमीन है और किसान अपने बेटे को ड्राइवर, चपरासी, गार्ड आदि की नौकरी दिलाने के लिए मारा मारा फिर रहा है. किसानों को इस गर्त से निकालने की जरूरत है. किसान भी बेहतर जीवन का हकदार है.

बदलाव के बाद यह होगा स्वरूप

ग्रामीण विकास मंत्री के मुताबिक सरकारी संशोधनों में मूल कानून में औद्योगिक गलियारे को परिभाषित किया गया है. यह स्पष्ट किया गया है कि अधिग्रहण सरकार की ओर से या उसके किसी बोर्ड की ओर से किये जायेंगे. औद्योगिक गलियारा का दायरा राजमार्ग व रेलवे लाइन के एक किमी तक होगा. किसी निजी इकाई के लिए अधिग्रहण नहीं होगा.

विधेयक से ‘सामाजिक आधारभूत संरचना’ शब्द को निकाल दिया गया है ताकि यह बात नहीं चली जाये कि अधिग्रहण के बाद कोई व्यक्ति कॉलेज व अस्पताल जैसे निजी संस्थाओं को खोल सकता है जो कारोबारी मॉडल है.

धारा 24 में संशोधन किया गया है. इस धारा में है कि पांच साल में जमीन पर काम नहीं होता है तब उसे लौटा दिया जाये. अब संशोधन किया गया है कि यदि अदालत में मामला लंबित रहने के कारण काम इस अवधि में नहीं होता है तब वाद की अवधि को घटा दिया जायेगा.

एक नयी धारा 6 (ए) जोड़ा गया है. धारा 101 में प्रावधान किया गया है कि परियोजना पूर्ण होने की अवधि को पांच वर्ष की बजाय पांच वर्ष या परियोजना पूरी की अवधि की जाये. हालांकि परियोजना पूरा होने की अवधि का निर्धारण प्राधिकार करेगी क्योंकि कुछ परियोजनाओं को पांच वर्ष में खत्म करना संभव नहीं है.

धारा 105 में संशोधन करते हुए उन सभी 13 केंद्रीय कानूनों को जोड़ा गया है जिन्हें 2013 के कानून में छोड़ दिया गया था. इसके माध्यम से किसानों को उचित मुआवजा देने के साथ पुनर्वास सुनिश्चित करने का काम किया गया है.

ये हुए संशोधन

सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की मंजूरी अनिवार्य

इंडस्ट्रियल कॉरिडॉर के लिए रेलवे ट्रैक और हाइवे की दोनों ओर 1-1 किमी जमीन का ही अधिग्रहण

बहुफसली जमीन नहीं ली जायेगी

किसानों को अपील का अधिकार

बंजर भूमि का अलग से होगा रेकॉर्ड

परिवार के एक सदस्य को नौकरी

मुआवजे के लिए अलग से खाते का प्रावधान

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