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राहुल की जासूसी को लेकर जबरदस्त विरोध, संसद में भी गूंजा मुद्दा

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नयी दिल्ली : विपक्षी दलों ने आज संसद के भीतर और बाहर राहुल गांधी के खिलाफ कथित जासूसी के मुद्दे पर कडा विरोध किया जबकि सरकार एवं भाजपा ने इन आरोपों को बिल्कुल तवज्जो नहीं देते हुए विपक्ष पर इस मामले में राई का पहाड बनाने का आरोप लगाया. सरकार ने लोकसभा एवं राज्यसभा में […]

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नयी दिल्ली : विपक्षी दलों ने आज संसद के भीतर और बाहर राहुल गांधी के खिलाफ कथित जासूसी के मुद्दे पर कडा विरोध किया जबकि सरकार एवं भाजपा ने इन आरोपों को बिल्कुल तवज्जो नहीं देते हुए विपक्ष पर इस मामले में राई का पहाड बनाने का आरोप लगाया. सरकार ने लोकसभा एवं राज्यसभा में कहा कि हाल में दिल्ली पुलिस के कर्मी राहुल गांधी के आवास पर उनके बारे में सूचना एकत्र करने के लिए गये थे.

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यह काम पारदर्शी सुरक्षा प्रोफाइलिंग के तहत किया जा रहा है और यह काम पूर्व प्रधानमंत्री एवं सोनिया गांधी सहित 526 अन्य वीआईपी के मामले में भी किया गया. यह प्रक्रिया संप्रग शासनकाल से ही चल रही है. अपना विरोध जारी रखते हुए कांग्रेस ने सरकार के जवाब को पूरी तरह से बकवास करार दिया. पार्टी ने आरोप लगाया कि सरकार इस मुद्दे को हल्का कर रही है तथा भाजपा के नेता गुमराह करने वाले बयान दे रहे हैं.

पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इन सुझावों को नकार दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूर्व में वैसा ही प्रपत्र भरा था जैसा कि राहुल गांधी कार्यालय में दिया गया था. पार्टी ने कहा कि न तो सोनिया और न राहुल और न ही उनके निजी सचिवों ने उनकी तरफ से ऐसा कोई फार्म भरा था. राजनीतिक जासूसी के कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि राहुल के बारे में की गयी जांच एक नियमित मामला है.

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो 1947 से चल रही है तथा प्रपत्र प्रक्रिया को दिल्ली पुलिस ने 1957 में औपचारिक स्वरुप दिया था. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पूछा कि यह मुद्दा सामने आते ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फौरन जवाब क्यों नहीं दिया. उन्होंने ट्विटर पर की गयी टिप्पणी में यह सवाल उठाया. राज्यसभा में सुबह कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों ने यह मुद्दा उठाया और सरकार पर विपक्षी नेताओं की जासूसी कराने का आरोप लगाया.

वित्त मंत्री और सदन के नेता अरुण जेटली ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस 1957 से ही लुटियन दिल्ली में रहने वाले वीआईपी लोगों के संबंध में विभिन्न जानकारी एकत्र करती रही है और 1987 तथा 1999 में इस प्रक्रिया में संशोधन किया गया. जेटली ने इस मुद्दे को तिल का ताड बनाए जाने की संज्ञा दी. इस मुद्दे पर कांग्रेस तथा अन्य दलों के सदस्यों द्वारा नियम 267 के तहत दिए गए कार्य स्थगन प्रस्ताव को अस्वीकार किए जाने के बाद कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया.

उपसभापति पी जे कुरियन ने विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद इस नोटिस को नामंजूर कर दिया. इससे पूर्व जेटली ने कहा कि इस फार्म का 1999 में संशोधन किया गया था और इसके तहत एच डी देवेगौडा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के बारे में भी फार्म भरा गया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में भी यह प्रक्रिया अक्तूबर 2004, 2009, 2010, 2011 और 2012 में अपनायी गयी थी.

जेटली ने कहा कि ऐसी प्रक्रिया राष्ट्रपति बनने के पूर्व प्रणब मुखर्जी, भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, माकपा नेता सीताराम येचुरी और जदयू के शरद यादव के साथ भी अपनायी गयी है. जेटली ने कहा कि यह सुरक्षा का मुद्दा है और सुरक्षा के मामले को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. विभिन्न सदस्यों द्वारा जूते का नंबर, आंखों का रंग जैसे सवालों का जिक्र फार्म में होने की बात पर जेटली ने कहा कि सुरक्षा के मामले में कई सवाल बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

उन्होंने राजीव गांधी का नाम लिए बिना कहा कि देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के बाद उनके शव की पहचान उनके जूतों से ही हो सकी थी. उन्होंने कहा कि इस विषय को जासूसी से नहीं जोडा जाना चाहिए और नेताओं को जन सेवा में ही लगे रहना चाहिए और उन्हें सुरक्षा विशेषज्ञ नहीं बनना चाहिए. जेटली ने कहा कि यह पिछले आठ महीने में शुरू हुयी प्रक्रिया नहीं है. उन्होंने कहा कि तिल का ताड बनाया जा रहा है.

इसके पूर्व विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने यह मुद्दा उठाया और कहा कि कई सदस्यों ने इस संबंध में नियम 267 के तहत कार्य स्थगन का नोटिस दिया है. उन्होंने कहा कि अपने 35 साल के अनुभव में उन्होंने भी इस प्रकार का फार्म नहीं देखा. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को लंबे समय से एसपीजी सुरक्षा प्राप्त है और उनके बारे में अब दिल्ली पुलिस तरह तरह के सवाल कर रही है. आजाद ने आरोप लगाया कि यह विपक्षी पार्टी को दबाने, धमकाने और उन पर दबाव डालने का मुद्दा है.

उन्होंने कहा कि इस संबंध में गृह मंत्री को बयान देना चाहिए और स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि पिछले साल ऐसी खबरें थीं कि राजग सरकार के मंत्री के टेलीफोन टैप किए जा रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि जब से यह सरकार आयी है, धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता कम हो रही है. जदयू के केसी त्यागी ने भी गृह मंत्री से जवाब मांगते हुए कहा कि इस तरह की जानकारी जुटाने की बात कभी नहीं सुनी गयी. उन्होंने कहा कि उनका एक विशेषाधिकार नोटिस लंबित है.उन्होंने सदन में इस पर चर्चा कराने की मांग की.

सपा के नरेश अग्रवाल ने आरोप लगाया कि हर दिन एक लाख फोन टैप किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि लोगों की निजता के अधिकार को चुनौती नहीं दी जानी चाहिए. कांग्रेस के आनंद शर्मा ने आरोप लगाया कि सरकार नेताओं के फोन टैप कर रही है. उन्होंने इसकी जांच कराए जाने की मांग की. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने शून्यकाल में इस मामले को उठाते हुए आरोप लगाया कि राहुल गांधी की राजनीतिक जासूसी की जा रही है जो लोकतंत्र और संविधान के तहत प्रदत्त निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि अगर प्रोफाइल बनाने की बात है तो फिर राहुल गांधी के बारे में ये सवाल क्यों पूछे गए कि उनके जूते का नंबर क्या है और उनका जन्म चिन्ह (बर्थ मार्क) क्या हैं? राज्यसभा में इस मुद्दे पर सरकार के जवाब से असंतोष जताते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया.

इस बीच दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस उपाध्यक्ष की जासूसी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि शारीरिक ब्यौरों की जानकारी हासिल करना एक पुरानी एवं नियमित प्रक्रिया है. मुंबई से प्राप्त समाचार के अनुसार कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा कि सुरक्षा के नाम पर दिल्ली पुलिस सरकार की ओर से राहुल की जासूसी कर रही है, यह अपने आप में एक बडा अपराध है. सरकार तानशाह की तरह बर्ताव नहीं कर सकती.

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