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आपातकाल के 40 साल : आरके धवन ने इंदिरा गांधी को बख्शा, बाकी सबको लपेटा

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डिजीटलटीम नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद भरोसेमंद रहे उनके निजी सचिव आरके धवन ने चौंकाने वाला बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि इलहाबाद हाइकोर्ट द्वारा उनका चुनाव रद्द करने के तुरंत बाद उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था. धवन का कहना है कि उन्होंने इस्तीफा पत्र भी टाइप […]

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डिजीटलटीम
नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद भरोसेमंद रहे उनके निजी सचिव आरके धवन ने चौंकाने वाला बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि इलहाबाद हाइकोर्ट द्वारा उनका चुनाव रद्द करने के तुरंत बाद उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था. धवन का कहना है कि उन्होंने इस्तीफा पत्र भी टाइप करवा लिया था, लेकिन अपने कैबिनेट सहयोगियों के विरोध के कारण वे इसे आगे नहीं बढा सकीं. धवन की यह पंक्ति चौंकाने वाली है, जो उन्होंने गुरुवार को आपातकाल का 40 साल पूरा होने से ठीक एक दो दिन पहले मंगलवार को कही है.
इमरजेंसी को लेकर उन्होंने इंदिरा गांधी का बचाव करते हुए कहा है कि इतिहास उनके साथ न्याय नहीं कर रहा है. आरके धवन ने भले ही इस मामले में इंदिरा गांधी को बेकसूर करार दिया हो, लेकिन उन्होंने नेहरू गांधी परिवार को लपेट दिया है. उन्होंने कहा है कि संयज गांधी ने आपातकाल के दौरान क्या किया है, इससे मेनका गांधी वाकिफ थीं. उन्होंने कहा है कि आज वे बीजेपी में हैं और यह दावा नहीं कर सकती हैं कि उन्हें इसके बारे में पता नहीं हैं.
धवन का यह बयान यह संकेत देता है कि इंदिरा गांधी इमरजेंसी के लिए दोषी नहीं हैं, बल्कि इसमें उनके कैबिनेट सहयोगियों की भी भूमिका है. आपातकाल के समय आरके धवन भारतीय राजनीति की एक मजबूत धुरी होते थे. उन्होंने कहा है कि आपातकाल लगाने की घोषणा पूर्व प्रधानमंत्री के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए नहीं की गयी थी. उन्होंने कहा है कि इसको लेकर राजीव गांधी व सोनिया गांधी को कोई आपत्ति नहीं थी. तीन-चार सालों में ऐसे हालात बन रहे थे, जिससे देश में आपातकाल लगाना जरूरी हो गया था.
धवन ने आपातकाल के लिए बताये कारक
आरके धवन ने कहा कि तब देश में परिस्थितियां आपातकाल लगाने की बन रही थीं. इस संदर्भ में उन्होंने रेल हडताल, एनएन मिश्रा हत्यांकांड और इसके साथ जयप्रकाश नारायण द्वारा सेना और पुलिस से अवैध आदेशों का पालन नहीं करने का आहवान का जिक्र किया है. धवन ने कहा है कि पश्चिम बंगाल के तब के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे आपातकाल के सूत्रधार थे. आठ जनवरी 1975 को रे ने ही इंदिरा गांधी को पत्र लिख कर आपातकाल लगाने का सुझाव दिया था. फिर चुनाव रद्द होने के बाद भी उन्होंने आपातकाल की वकालत की थी. धवन के अनुसार, इंदिरा गांधी को अपना त्यागपत्र देना चाहती थीं.
तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी जतायी थी सहमति!
आरके धवन ने कहा है कि इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से भेंट कर उन्हें कहा था कि वे आपातकाल की घोषणा करना चाहते हैं. धवन का दावा है कि तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी इस पर अपनी सहमति जतायी थी. उन्होंने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्रियों ने संजय गांधी को यह विश्वास दिला दिया था कि वे देश में अपनी मां से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं. उन्होंने बताया है कि कैसे 21 से लोगों को गिरफ्तार करने की योजना बनायी जा रही थी.

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