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देशभक्तों के काम!

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– हरिवंश – राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ खिलवाड़ अक्षम्य अपराध है. देश के साथ द्रोह भी. मामला चाहे अशोक स्तंभ का हो या मुंबई में ‘अमर जवान ज्योति’ तोड़ने का. इस कसौटी पर कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी भी गलत हैं. पर आज सार्वजनिक रूप से यह कहना कि ‘सत्यमेव जयते’ की जगह ‘भ्रष्टमेव जयते’ के युग […]

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– हरिवंश –
राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ खिलवाड़ अक्षम्य अपराध है. देश के साथ द्रोह भी. मामला चाहे अशोक स्तंभ का हो या मुंबई में ‘अमर जवान ज्योति’ तोड़ने का. इस कसौटी पर कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी भी गलत हैं. पर आज सार्वजनिक रूप से यह कहना कि ‘सत्यमेव जयते’ की जगह ‘भ्रष्टमेव जयते’ के युग में देश है, कहां का अपराध है? या राष्ट्रद्रोह है? यह तो मौजूदा हालत का नग्न सच है. देश की कुल आबादी लगभग 120 करोड़ में से शायद ही 0.1 फीसदी शासकवर्ग (वह भी सभी नहीं) या इससे लाभुक ही इस नग्न सच से असहमत होंगे. फिर सजा सिर्फ असीम त्रिवेदी को ही क्यों?
केंद्र सरकार चलानेवाले या राज्य सरकारों के कर्ता-धर्ता या संवैधानिक पदों पर बैठे लोग या संसद या विधानमंडल में बैठनेवाले तो बाकायदा संविधान की शपथ लेते हैं. शपथ के बावजूद इन लोगों के कार्यकाल में हाल के वर्षों में (पुराने घोटाले, तो इन बड़े महाघोटालों के सामने, होटल के बैरों को दिये जानेवाले टिप भी नहीं लगते) जो बड़े घोटाले हुए या हो रहे हैं, उनके लिए कितने लोगों पर देशद्रोह का मामला चला है? या उन्हें कठोर दंड मिला है?
ताजा प्रकरण है, देश के पूर्व कोयला राज्यमंत्री संतोष बागरोडिया (अप्रैल 2008 से मई 2009 तक) से जुड़ा. वह यूपीए, फेज-वन में मनमोहन सिंह की सरकार में कोयला राज्यमंत्री थे.
2006-10 के बीच. सार्वजनिक क्षेत्र का रत्न, नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम यानी एनटीपीसी) ने 23,000 करोड़ की एक कोल खदान का ठेका, एक संयुक्त निवेश की कंपनी को दिया, जिसमें 10 फीसदी हिस्सा (शेयर) पूर्व कोयला राज्यमंत्री संतोष बागरोडिया के परिवार के पास है. इसका उल्लेखनीय पक्ष यह है कि झारखंड स्थित, पकरी-बरवाडीह कोल ब्लाक के इस टेंडर के कुछ हिस्सों पर जब फैसला हुआ, तब बागरोडिया इस विभाग के मंत्री थे. जिस कंपनी को यह ठेका या करार या कांट्रेक्ट नहीं मिला, वह सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है, सिंगरेनी कोयलरी, जो श्री बागरोडिया के मातहत थी.
इस खबर के प्रकाश में आने के बाद संतोष बागरोडिया ने कहा है कि उनसे, उनके भाई के परिवार का कोई लेना-देना नहीं, जिन्हें यह कांट्रेक्ट मिला था. आरोप तो यह भी है कि एनटीपीसी के तब के सलाहकार, मेकान लिमिटेड (रांची स्थित भारत सरकार की कंपनी) ने प्रति टन कोयले के लिए जो करार राशि तय की थी, उससे प्रति टन 200 रुपये अधिक दर पर एनटीपीसी ने यह काम थिसिस माइंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया, जिसमें बागरोडिया परिवार का हिस्सा है.
2009 में भी सरकारी क्षेत्र की कंपनी साउथ इस्टर्न कोलफील्ड ने कोयला खदान के एक काम का ठेका कुपरूम बागरोडिया को दिया. कंपनी के शेयर होल्डरों की 27 वीं वार्षिक बैठक में यह सूचना दी गयी कि 626 करोड़ का यह टेंडर कंपनी को मिला है और प्रोजेक्ट पर आरंभिक काम चल रहा है.
कहां पहुंच गये हैं हम? जिस विभाग के मंत्री, उसी विभाग द्वारा उनके परिवार से जुड़े लोगों को ठेका. वह ठेका भी जिस कंपनी का कटा, उसके विभाग के वही मंत्री थे. आज के दस वर्ष पहले तक ऐसी बातें अनहोनी लगती थीं. मामूली स्तर पर यह परंपरा चली आ रही है कि एक परीक्षक भी अगर प्रश्नपत्र बनाता है, और अगर उसका सगा परीक्षार्थी है, तो वह पहले से सूचित कर देता है. खुद को इस काम से अलग कर लेता है. गवर्नेस के छोटे-छोटे स्तर पर ऐसे अनेक कानूनी या नैतिक बंधन हैं. पहले से ही. फिर भी ऐसे काम हो रहे हैं.
वह भी किन लोगों के द्वारा, जो शपथ लेकर संवैधानिक पदों पर बैठते हैं. कोयला खदान आवंटन के भंडाफोड़ में जो आरंभिक सूचनाएं आयीं, उनके अनुसार यूपीए, फेज-वन से जुड़े छह मंत्री या पूर्वमंत्री ऐसे हैं, जिन पर किसी-न-किसी कंपनी के पक्ष में अनुशंसा पत्र लिखने के आरोप हैं. पक्ष-विपक्ष दोनों के 18 सांसद हैं, जिन्होंने इधर या उधर खदान आवंटन की पत्र द्वारा पैरवी की है. कई राज्यों के मुख्यमंत्री हैं, जिनमें भाजपाई व गैर-भाजपाई भी हैं, वे भी पक्षपाती दिखायी देते हैं.
सूचना के अनुसार सीबीआई, बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार द्वारा 2005-08 के बीच नौ कंपनियों के पक्ष में कोयला खदान अनुशंसा की भी छानबीन या जांच कर रही है. हालांकि राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अनुशंसा पत्र भेजने का ही हक है. खदान आवंटन का अंतिम निर्णय तो केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा ही होना है. राज्यों के अपने अलग-अलग घोटाले, महाघोटाले हैं.
आंध्र में पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री, वाइएसआर राजशेखर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी से जुड़ी कंपनियों के भ्रष्टाचार की जांच सामने आ रही है. अनुमान के अनुसार यह 25-30 हजार करोड़ से अधिक का भ्रष्टाचार है. तमिलनाडु में करुणानिधि के प्रपौत्र, ग्रेनाइट खनन के आरोपों से घिरे हैं. यह भी कई हजार करोड़ का मामला है. वे फरार हैं और पुलिस उनकी तलाश कर रही है.
किन-किन राज्यों की चर्चा की जाये? हजार, दो हजार करोड़ के घोटाले तो मामूली बात हैं. यह सब चीज करनेवाले कौन लोग हैं, जिन्होंने संवैधानिक शपथ ली है? क्या आजाद भारत के 65 वर्षों में एक भी भ्रष्ट व्यक्ति को मुकम्मल और गंभीर सजा हुई है? क्या भ्रष्टाचार के काम देशद्रोह के अंदर नहीं माने जाने चाहिए? संसद या विधानमंडलों में काम नहीं होते, हंगामा या बहिष्कार होते हैं, ऐसे काम क्या देशहित में हैं?
महज चार दिनों पहले खबर आयी कि अब राजनीतिक दलों को चंदे में कई हजार करोड़ की राशि मिलती है. कांग्रेस और भाजपा समेत 23 राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में 4662 करोड़ रुपये मिले हैं.
2004 से 11 के बीच. यह अध्ययन किया है एडीआर (एसोशिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स) ने. कांग्रेस को 2008 करोड़ मिले, तो भाजपा को 995 करोड़. राज्यस्तरीय दलों को भी कई-कई सौ करोड़ मिले हैं. लेकिन सभी दलों के दान-दाताओं में से लगभग 80 फीसदी के पते नहीं है. यानी यह गुप्त दान है. हाल के वर्षों में राजनीतिक दलों को इस बड़े पैमाने पर मिल रहे चंदे और सरकारी नीतियों में हुए घोटालों (जो अब सामने आ रहे हैं) के बीच क्या कोई संबंध हैं? क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए? यह काम क्या देश हित की श्रेणी में आता है?
अभी हाल में दुनिया के 21 देशों में एक सर्वेक्षण हुआ (पीयू ग्लोबल एटिट्यूड सर्वे), जिसके अनुसार दुनिया के अन्य देशों के लोगों ने भारत की अर्थव्यवस्था में जितना भरोसा या विश्वास खोया है, उससे अधिक भारतीय खुद अपनी अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर उम्मीद खो चुके हैं.
भारतीयों की आस्था अपने प्रति ही टूटी है या कम हुई है. देश में ही देश के लोगों का भरोसा खत्म करने की जिम्मेवारी उन लोगों पर है, जो देश चला रहे हैं. अब यह काम गांधीयुग के नेताओं की तरह देश सेवा के तहत आज के शासक नहीं करते, बल्कि कीमत के रूप में इस व्यवस्था की सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं और सुरक्षा लेते हैं. क्या वे दोषी नहीं हैं?
कर्नाटक के राज्यपाल का सुझाव
अलग-अलग कारणों से कर्नाटक के राज्यपाल, एचआर भारद्वाज (कांग्रेसी) चर्चा में रहते हैं. पर हाल में उन्होंने कर्नाटक के नेताओं को एक नेक सलाह दी है, जो हर नेता के लिए उपयोगी है. उन्होंने कहा है कि नेता शराब पीना बंद कर दें, तो उनकी राजनीति बेहतर हो जायेगी. इससे पूरी राजनीति बेहतर होगी. देखना है, कर्नाटक के राज्यपाल का यह नेक सुझाव कितने नेता मानते हैं?
सही हैं सिब्बल
देश के मानव संसाधन विकास मंत्री, कपिल सिब्बल भी अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं. पर, इस बार उनका इंटरनेट के बारे में एक अत्यंत चेतावनी भरा और सही बयान आया है. उन्होंने कहा है कि अधिकतर छोटे बच्चे या किशोर इंटरनेट पर अश्‍लील साहित्य (पोर्न साइट) देखते हैं. इंटरनेट का इस्तेमाल भ्रम फैलाने, गलत सूचनाएं देने, नशीली दवाएं बेचने और आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी हो रहा है. यह अत्यंत उपयोगी चीज है, पर इसका दुरुपयोग हो रहा है.
पूरे समाज के लिए यह एक गंभीर खतरा है. आमतौर से कोई साहस के साथ यह सच कहना नहीं चाहता, पर यह यथार्थ है. इसका समाज पर बहुत गहरा और गंभीर असर पड़ रहा है.
किशोरों की जिंदगी तबाह हो रही है. दरअसल, यह ऐसी चीज है, जिस पर सरकार अब कुछ नहीं कर सकती. इसके लिए समाज को ही जगना होगा. समाज में भी बड़ा आंदोलन चाहिए. इन प्रवृत्तियों और कुसंस्कारों के खिलाफ. इन चीजों से मुक्ति के लिए एक नये पुनर्जागरण की जरूरत है और यह काम किसी राजनीतिक दल के भरोसे संभव नहीं है.
दिनांक 16.09.2012

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