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पूंजी खेल की हकीकत

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– हरिवंश – चलते-चलते एक लेख में इस पुस्तक की चरचा की थी. आज के माहौल में इसे हर भारतीय को पढ़ना चाहिए. वह सच, जानने के लिए, जो लोगों से छुपाया जाता है. वह पद्धति-प्रक्रिया समझने के लिए, जिसके तहत भारत से पैसे-पूंजी बेधड़क स्विस या विदेशी बैंकों या टैक्स हेवेन (कर चोरी के […]

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– हरिवंश –
चलते-चलते एक लेख में इस पुस्तक की चरचा की थी. आज के माहौल में इसे हर भारतीय को पढ़ना चाहिए. वह सच, जानने के लिए, जो लोगों से छुपाया जाता है. वह पद्धति-प्रक्रिया समझने के लिए, जिसके तहत भारत से पैसे-पूंजी बेधड़क स्विस या विदेशी बैंकों या टैक्स हेवेन (कर चोरी के लिए स्वर्ग या नितांत सुरक्षित) में जा रहे हैं.
इसमें कौन लोग हैं? मीडिया का असली चेहरा भी इस पुस्तक से साफ होता है. राजनीति, शासक और कारपोरेट हाउसों के चेहरे से नकाब उतरते हैं. एक गंभीर पुस्तक, जिससे भारत के गवर्नेंस, शासन पद्धति व अंदरूनी हालात की सही और साफ तसवीर मिलती है.
पुस्तक का नाम है, ‘सेंस, सेंसेक्स एंड सेंटीमेंट्स’ (द फेलियोर ऑफ इंडियाज फाइनेंशियल सेंटिनेल्स). लेखक हैं, चार्टर्ड एकाउंटेंट एम.आर. वेंकटेश. छपी है, वर्ष 2011 में, नॉलेज वर्ल्ड, केडब्ल्यू पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, नयी दिल्ली से. अत्यंत रोचक, धारदार प्रवाह और आवेग से लिखी गयी पुस्तक. इसमें ग्लोबल इकॉनोमी (वैश्विक अर्थव्यवस्था) और इंडियन इकॉनोमी (भारतीय अर्थव्यवस्था) के उस रूप-चेहरे को समझने की कोशिश की गयी है, जिसके तहत टैक्स हेवेंस (कर बचाने के लिए स्वर्ग जगहें) फल-फूल और बढ़ रहे हैं. हमारी राष्ट्रीय अर्थनीति कैसे भ्रष्टाचार का कारण और प्रभाव (काज एंड एफेक्ट) दोनों हैं, जिससे मनी लांडरिंग (देशी पूंजी का अवैध ढंग से विदेशों में जाना) को बढ़ावा मिलता है.
मनी लांडरिंग से टैक्स हेवेंस (काला धन छुपाने का सबसे सुरक्षित देश) देशों की संपन्न अर्थव्यवस्था कैसे चलती है? फिर टैक्स हेवेंस देशों में गया यह काला धन किस तरह अर्थव्यवस्था को तबाह करता है. इस पूंजी का आतंकवाद और ड्रग से कैसे रिश्ता है, यह भी इस अध्ययन से समझ में आता है. भारतीय मीडिया कैसे इस विदेशी पूंजी-कालाधन या तंत्र बनाये रखने के लिए काम करता है? अंतत: भारत के शासक और अर्थनीति के नियामक किस तरह-कैसे इस व्यवस्था की रक्षा करते हैं, यह भी पुस्तक में साफ-साफ लिखा है.
दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश या खुले समाज में, ऐसी पुस्तक आने पर राष्ट्रव्यापी बहस-चिंता होती. सत्ताधीशों पर खतरे मंडराते और लोकतांत्रिक राजनीति के बहस का मुख्य एजेंडा यह होता. कोई भी गंभीर और सतर्क सरकार और चौकस संसदीय राजनीति, इस मुद्दे को राजनीतिक बहस का मुख्य विषय बनाती. पर भारत में कहीं भी इस पुस्तक की चरचा आपने सुनी? अगर केंद्र सरकार गंभीर होती, तो स्वत: इन विषयों पर कदम उठाती.
तब उसे बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसे लोगों से शायद नहीं उलझना या निबटना पड़ता. इस पुस्तक में भारत सरकार की ऐसी नीतियों की गहराई में पड़ताल या समीक्षा की गयी है, जिनसे विदेशों में काली भारतीय पूंजी भेजने में मदद और प्रोत्साहन मिलते हैं. इस तरह भारतीय पूंजी टैक्स हेवेंस में भेजने के असर भारत की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और घरेलू बाजार पर कितना गंभीर और गहरा है, यह चरचा भी पुस्तक में है.
भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) से रिटायर्ड अफसर अरविंदो बनर्जी ने इस पुस्तक को मास्टर पीस (श्रेष्ठकृति, उत्कृष्ट ग्रंथ) कहा है, साथ ही नौकरशाही, शासकों और भ्रष्टाचार रोकने में लगे लोगों के लिए इसे मस्ट रीड (आवश्यक पुस्तक) माना है.
इसी तरह की राय पूर्व केंद्रीय राजस्व सचिव और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व प्रबंध निदेशक एम आर शिवरमन की है. वह यह भी टिप्पणी करते हैं कि इस पुस्तक से साफ है कि इस तरह अर्जित गलत पूंजीवालों की सरकार में कैसे तूती बोलती है. ‘लॉ इनफोर्सेस'(कानून लागू करनेवालों) और लॉ ब्रेकर्स (कानून तोड़नेवाले) के बीच कैसे ‘अनइक्वल’ (विषम) स्पर्द्धा-लड़ाई चलती है और अंतत: कानून लागू कराने वाले, ऐसे कानून तोड़कों को मामूली खरोंच भी नहीं लगा पाते. पुस्तक के बारे में इस तरह की अनेक टिप्पणियां हैं, महत्वपूर्ण और व्यवस्था के अंदरूनी जानकारों द्वारा.
पढ़े लिखे लोकतंत्र, सजग संसदीय व्यवस्था व संवेदनशील राजनीतिज्ञों में यह पुस्तक ही तूफान खड़ा कर देती. पर राजनीति का दुर्भाग्य देखिए कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के उदय के बाद इन विषयों पर मामूली चरचा शुरू हुई. इसके लिए विपक्ष भी समान दोषी है. क्यों नहीं ऐसे गंभीर सवालों को उसने मुद्दा बनाया? राष्ट्रीय बहस-संवाद का विषय?
अन्ना व बाबा रामदेव प्रकरण के बाद फिर विषय से हम भटक गये हैं. अब विवाद एक दूसरे की धोती खोलने का है. गंदे और फूहड़ शब्दों-विशेषणों के प्रयोग से भारतीय राजनीति को और फूहड़ बनाने की है. विदेशों में जमा भारतीय धन का जो असल सवाल है, वह भी नेपथ्य में जा रहा है. सार्वजनिक जीवन में शासकों की पारदर्शिता और ईमानदारी का प्रसंग पीछे छूट रहा है.
रुचि हुई जानने की, कि इस पैशन (आवेग) से पुस्तक लिखने वाला कौन है? पुस्तक से ही जाना. एमआर वेंकटेश, जाने-माने चार्टर्ड एकउंटेंट तो हैं ही, पर उससे भी महत्वपूर्ण है, उनकी पृष्ठभूमि. उन्होंने यह पुस्तक समर्पित की है, बाबूराव गेनु को. बाबू राव जी कांग्रेस के चवन्नियां मेंबर थे.12 दिसंबर 1930 को गांधीजी के आवाहन पर ब्रिटेन से आयातित वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन चला रहे थे. धरना पर थे. ब्रिटेन से आयातित सामग्री से भरे ट्रक ने अत्यंत क्रूरता से उन्हें सड़क-चौराहे पर कुचल दिया.
यह पुस्तक एक संदेश के साथ उसी योद्धा को समर्पित है, जिसने राजनीतिक आजादी के साथ-साथ, आर्थिक आजादी का भी सपना देखा था.
पुस्तक लेखक मानता है कि 60 वर्षों में यह सपना हम भूल गये हैं. साफ संदेश है, कि अब फिर उस सपने को याद करने की जरूरत है, अन्यथा राजनीतिक स्वतंत्रता भी खतरे में होगी. पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है जान क्रिस्टेनसेन ने. ‘ ग्लोबल टैक्स जस्टिस नेटवर्क’ के डायरेक्टर. उनकी ‘ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रेटी रिपोर्ट’ दुनिया में चर्चित हुई. उन्होंने ही खुलासा किया कि भारत से हर साल अवैध ढ़ंग से विदेशों में 22 से 27 बिलियन डालर भारतीय पैसा बाहर जा रहा है.
अब अनुमान (50 बिलियन अनुमानत: 5000 करोड़) लगा लें कि कितना भारतीय धन बाहर गया होगा? पूरी प्रस्तावना भारतीय अर्थतंत्र की कलई खोलती है. पर क्या आपने कहीं इसकी चरचा सुनी? पुस्तक की भूमिका में एक रोचक प्रसंग है. श्रीमदभागवत से. (अध्याय 12, खंड 2) ऋषि सुकर सात दिनों तक कथा सुनाते हैं. राजा परीक्षित को. उसमें वह कलियुग पहचान की नौ बातें बताते हैं.
जीवन का एक मात्र मकसद होगा, किसी तरह धन संग्रह. जो निर्ल्लज व ढीठ होंगे, वही सत्यवादी व सच माने जायेंगे. जो आदमी मधुर, अलंकारिक और चाटुकारिता की भाषा बोलेगा, वह कवि और प्रबुद्ध माना या गिना जायेगा. किसी की ताकत (पावर) या सत्ता के अनुसार ही उसके खिलाफ कानून और न्याय लागू होंगे.
जिस आदमी के पास धन नहीं होगा, वह फिजूल और बेकार माना जायेगा. पाखंड, ढोंग, दंभ और मिथ्याचार गुण मानें जायेंगे.
पूरी दुनिया में भ्रष्ट आबादी की भीड़ होगी, जो सबसे ताकतवर होगा, सत्ता पायेगा. शासक धन लोलुप पिशाच होंगे. क्रूर, कठोर, निर्दय और निष्ठुर. सामान्य चोर की तरह इनका आचरण होगा.
अधिसंख्य चोर राजा होंगे, मनुष्य का मुख्य धंधा होगा, चोरी, झूठ बोलना और अनावश्यक हिंसा. सभी सामाजिक वर्ग अपनी निम्नतम स्थिति में होंगे. इन नौ बिंदुओं को आज के हाल में परखिए. साथ ही दूरदर्शी ऋषियों की दृष्टि भी.
दिनांक : 12.06.2011

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