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यातायात सुरक्षा जरूरी

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सड़क दुर्घटनाएं मानवीय त्रसदी हैं और उन्हें सरकार और समाज के साझा प्रयासों से रोका जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में इस समस्या पर चिंता जताते हुए सरकार की कोशिशों की चर्चा की है. उनका यह निवेदन भी बहुत महत्वपूर्ण है कि लोग अपनी संतानों में सुरक्षा-संबंधी […]

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सड़क दुर्घटनाएं मानवीय त्रसदी हैं और उन्हें सरकार और समाज के साझा प्रयासों से रोका जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में इस समस्या पर चिंता जताते हुए सरकार की कोशिशों की चर्चा की है. उनका यह निवेदन भी बहुत महत्वपूर्ण है कि लोग अपनी संतानों में सुरक्षा-संबंधी जागरूकता पैदा करें. जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा, इन दुर्घटनाओं के आंकड़े दिल दहलानेवाले हैं.

वर्ष 2013 में ही सड़क दुर्घटनाओं में 1.37 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी. यह संख्या हमारे देश द्वारा लड़े गये तमाम युद्धों में हुई मौतों से कहीं अधिक है. प्रतिदिन 20 बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं. हर घंटे मरनेवालों की संख्या 16 है यानी हर रोज 377 लोग काल-कवलित हो जाते हैं. देशभर में रोजाना 1214 दुर्घटनाएं होती हैं. दुर्भाग्य से सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाओं में मौतें दिल्ली, चेन्नई, जयपुर, बंेगलुरु , मुंबई, कानपुर, लखनऊ, आगरा, हैदराबाद और पुणो जैसे शहरों में होती हैं. अगर बेहतर सड़कों, ट्रैफिक प्रबंधन और चिकित्सा सुविधा से संपन्न राजधानियों और महानगरों की यह दशा है, तो देश के अन्य हिस्सों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है. इस त्रसदी का मुख्य कारण यातायात के नियमों की अवहेलना तथा त्वरित उपचार उपलब्ध नहीं होना हैं. सड़क की गुणवत्ता तथा प्रबंधन का लचर होना भी उल्लेखनीय कारक हैं. यह संतोष की बात है कि सरकार अपने प्रस्तावित सड़क यातायात एवं सुरक्षा विधेयक तथा अन्य पहलों के द्वारा खामियों में सुधार की कोशिश कर रही है.

इस संबंध में दुर्घटना के पहले 50 घंटे में बिना नगदी उपचार तथा एंबुलेंसों की व्यवस्था का प्रस्ताव विशेष रूप से सराहनीय है. रिपोटरें के मुताबिक, दुर्घटनाओं में मरनेवाले 15 से 44 वर्ष उम्र के लोगों में अधिकतर गरीब पृष्ठभूमि से होते हैं. सड़क दुर्घटनाएं देश के आर्थिक विकास में भी रोड़ा हैं. इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के आकलन के मुताबिक 2012 में दुर्घटनाओं के कारण 20 अरब डॉलर यानी एक खरब रु पये का नुकसान हुआ था.

यह त्रसदी युवाओं की मौत का सबसे बड़ा कारण भी बन गयी है और इससे हमारे सकल घरेलू उत्पादन में लगभग 2.5 फीसदी का नुकसान होता है. पूरी दुनिया के वाहनों का करीब एक फीसदी हिस्सा ही भारत में है, पर दुर्घटनाओं में यह हिस्सेदारी 20 फीसदी से कुछ ही कम है. उम्मीद है कि सरकार कारगर उपाय करने के साथ लापरवाहियों के लिए समुचित और कठोर दंडों की भी व्यवस्था करेगी जो सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों.

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