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श्री कृष्ण और शिव का आशीर्वाद है करवाचौथ का व्रत

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पौराणिक समय से ही करवाचौथ व्रत रखने की प्रथा चली आ रही है जिसकी शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने अपने पतियों के लिए व्रत रख की थी. ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी के करवाचौथ व्रत रखने से ही पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी. कार्तिक मास के कृष्ण […]

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पौराणिक समय से ही करवाचौथ व्रत रखने की प्रथा चली आ रही है जिसकी शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने अपने पतियों के लिए व्रत रख की थी.

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ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी के करवाचौथ व्रत रखने से ही पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी.

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को दिन भर निर्जल व्रत रखने के बाद, शाम को चाँद निकले के बाद, चाँद को जल का अर्घ्य देने के साथ ही करवाचौथ का व्रत संपन्न होता है.


माना जाता है कि चाँद शिव भगवान का गहना है इसलिए करवाचौथ के दिन शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है.
यह भी मान्यता है कि शैलपुत्री पार्वती ने भी शिव भगवान को इसी प्रकार के कठिन व्रत से पाया था इसलिए यह व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए भी उपयोगी माना जाता है. इस दिन गौरी पूजन से जहां महिलायें अखंड सुहाग की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित कन्या , सुयोग्य वर पाने की प्रार्थना करती हैं.


इस दिन को खास श्री कृष्ण का आशीर्वाद माना जाता है. इसके लिए एक घटना प्रचलित है द्वापर युग में एक बार अर्जुन, वनवास के दौरान नीलगिरी पर्वत पर जब तपस्या करने गये थे. तब कई दिनों तक अर्जुन वापस नहीं आये, तो द्रौपदी को चिंता हुई.


अपनी चिंता द्रौपदी ने जब कृष्ण को बताई तो उन्होंने द्रौपदी से न सिर्फ करवाचौथ व्रत रखने को कहा बल्कि शिव द्वारा पार्वती जी को जो करवाचौथ व्रत की कथा सुनाई गई थी, उसे स्वयं द्रौपदी को सुनाने को कहा. मान्यता है कि जिन दंपत्तियों के बीच छोटी छोटी बात को लेकर अनबन रहती है वह यदि करवाचौथ व्रत रखें तो उनका आपसी मनमुटाव दूर हो जाता है.

करवाचौथ में चंद्रमा की पूजा इसलिए भी की जाती है क्योंकि चाँद को मन का स्वामी माना जाता है जो दिल से जुड़े रिश्तों को बांधे रखने का कारक होता है.

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