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“आप” के तीन साल, आंदोलनकारी पार्टी से टिपिकल राजनीतिक पार्टी का सफर
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नयी दिल्ली : आम आदमी पार्टी की गठन के आज तीन साल हो गये. इन तीन सालों में पार्टी अबतक अपने सबसे बड़े सपने जिसकी अंगुली पकड़कर वह दिल्ली की गद्दी पर बैठी है उसे पूरा नहीं कर पायी. जनलोकपाल बिल जिसके पास ना होने पर पिछली पारी में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद […]
नयी दिल्ली : आम आदमी पार्टी की गठन के आज तीन साल हो गये. इन तीन सालों में पार्टी अबतक अपने सबसे बड़े सपने जिसकी अंगुली पकड़कर वह दिल्ली की गद्दी पर बैठी है उसे पूरा नहीं कर पायी. जनलोकपाल बिल जिसके पास ना होने पर पिछली पारी में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री की कुरसी को ठोकर मारकर इस्तीफा दे दिया था. लेकिन दूसरी पारी में भी अपने सपने को पूरा करने में वक्त लगा रहे हैं.
आम आदमी पार्टी का गठन कुछ उद्देश्यों के साथ हुआ था और जब पार्टी के गठन के तीन साल पूरे हो गये तो पार्टी इन तीन सालों में कहां पहुंची इसका आकलन जरूरी है. जनलोकपाल को लेकर पार्टी की इच्छाशक्ति कितनी प्रबल है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आप विधायक पंकज पुष्कर ने भी पार्टी की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि उन्हें विश्वास नहीं है कि जनलोकपाल बिल पास होगा.
"आप" के तीन साल, आंदोलनकारी पार्टी से टिपिकल राजनीतिक पार्टी का सफर 3
आप का बहुत पुराना राजनीतिक इतिहास नहीं है. पार्टी आंदोलन और सिर्फ 49 दिनों के कार्यकाल के दम पर अरविंद केजरीवाल एक बार फिर सत्ता में आये. पहली पारी में जनता के हक में मुखर होती आवाज को देखकर दिल्ली की जनता ने पार्टी पर एक बार फिर भरोसा जताया और 70 में से 67 सीट देकर संकेत दिए की बहुमत में जाओ और जनता के लिए काम करो लेकिन इन तीन सालों में आप अपने उस सपने को पूरा नहीं कर सकी जिसे लेकर उसने आंदोलन से राजनीति और फिर सरकार गठन तक का सफर तय किया.
विधायकों पर लगते रहे आरोप
आप आदमी पार्टी अपने जिन सिपाहियों के दम पर बदलाव लाना चाहती थी वही सिपाही एक-एककर आरोपों में घिरते रहे. आप सरकार अपनी पहली और दूसरी पारी में कई आरोपों में घिरी. पूर्व कानून मंत्री दोनों ही कार्यकाल में विवादों में रहे पहली बार उन पर विदेशी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगा तो दूसरी पारी में उनकी पत्नी ने ही उन पर प्रताड़ना का आरोप लगाया. सोमनाथ कई दिनों तक पुलिस से छुपते रहे और अब मामला अदालत में.
दूसरी पारी में जब जितेंद्र सिंह तोमर को कानून मंत्री बनाया गया तो उन पर फरजी डिग्री का आरोप लगा. आप सरकार मंत्री के बचाव में उतरी लेकिन बाद में सरकार बैकफुट पर आ गयी और अपने मंत्री की मंशा पर ही सवाल खड़े करने लगी. पर्यावरण और खाद्य आपूर्ति मंत्री असीम अहमद पर दिल्ली सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों को सही मानते हुए उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया और उनके खिलाफ एफआईआऱ दर्ज करायी. इस मामले को समाने लाकर दिल्ली सरकार ने अपनी पीठ खुद थपथाने की कोशिश की लेकिन विधायक असीम अहमद ने भी धमकी भरे लहजे में कहा कि मुझे फंसाया गया है और मैं इस पर से जरूर परदा हटाऊंगा.
आसिम पर एक बिल्डर से 6 लाख रुपये घूस लेने का आरोप लगा है. आप के एक और विधायक की कल गिरफ्तारी हुई अखिलेश त्रिपाठी को 2013 में हुए एक दंगे और आपराधिक तौर पर धमकाने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें दो दिन की न्यायिक रिमांड पर दे दिया. त्रिपाठी सत्तारूढ़ आप पार्टी के ऐसे पांचवें विधायक हैं, जिन्हें किसी मामले में गिरफ्तार किया गया है. हालांकि इन आरोपों पर केजरीवाल ने कभी चुप्पी साधे रखी तो कभी विरोधी पार्टियों पर आरोप लगाते रहे. कुल मिलाकर पार्टी जिस विचारधारा और छवि के दम पर जीत कर सत्ता में आयी धुंधली होती नजर आ रही है. मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस माह के शुरू में गृह मंत्री से शिकायत की थी कि दिल्ली पुलिस उसके विधायकों के पुराने मामले फिर से खोल रही है और उनके खिलाफ नए मामले दायर कर रही है.
जनतंत्र की मांग करने वाली पार्टी में ही लोकतंत्र नहीं
आम आदमी पार्टी ने सरकार गठन के तुरंत बाद ही पार्टी से दो महत्वपूर्ण नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया. संस्थापक सदस्यों में रहे प्रशांत भूषण और पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले योगेन्द्र यादव को पार्टी विरोधी कार्रवाई में लिप्त होने का आरोप लगा और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. पार्टी के आंतरिक लोकपाल के मुखिया एडमिरल रामदास समेत कई महत्वपूर्ण लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हाल में जब नेशनल काऊंसिल की बैठक में भी खूब हंगामा हुआ कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाये कि वह इसके सदस्य है इसके बावजूद उन्हें बैठक में शामिल नहीं होने दिया गया. पिछले दिनों पार्टी में भी खूब उठा पटक हुई. केजरीवाल के दो-दो पदों पर बने रहने पर सवाल खड़े हुए. आंदोलन से पैदा हुई पार्टी पर आरोप लगे कि इस पर भी अब एक व्यक्ति का राज है.
क्या अब टिपिकल राजनीतिक पार्टी बन गयी है "आप"
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पार्टी के गठन से लेकर सरकार बनाने तक आम लोगों को आम आदमीपार्टी से ढेर सारी उमीदें थी. लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को हार का स्वाद चखा दिया. जीत के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मुझे अब डर लगा रहा है. जनता के भरोसे से अरविंद केजरीवाल का डर लाजिमी था. लेकिन पार्टी उस भरोसे पर कितनी खरी उतरी इसका आकलन अलग तरीके से किया जा सकता है लेकिन दिल्ली सरकार ने जिस तरह प्रचार के लिए धन खर्च किया, विधायकों पर आरोप लगे. केजरीवाल पर पार्टी में तानाशाह बनने का आरोप लगा. राजनीति में ऐसे नेताओं से करीबी भी हो गयी जिन्हें भ्रष्टाचारी बताकर पार्टी ने अपने लिए सत्ता का रास्ता बनाया. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आम आदमी पार्टी में अब वह रौनक नहीं रही जिसकी रौशनी को देखकर भरोसे के साथ जनता ने उन्हें इतना प्यार और भरोसा जताया था. हालांकि सरकार को अभी एक साल से कुछ ज्यादा दिन ही हुए हैं पार्टी ने अपने कामकाज का ब्यौरा भी जनता के सामने रखा लेकिन उन सपनों का क्या जिससे दिखाकर पार्टी सत्ता तक पहुंची. आप का राजनीतिक भविष्य उन सपनों की बुनियाद पर खड़ा है जिसे मजबूत करके (पूरा करके) पार्टी अपने अगले दौर की राजनीतिक लड़ाई मजबूती से लड़ सकती है.