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लौटा सकते हैं उनका बचपन

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सभी मिल कर कोशिश करें, तो बच्चों को एक सज्जन ने लिखा है- “आज के बदलते परिवेश में बच्चों को देखकर काफी व्यथित हूं, क्योंकि वे सही मायनों में बचपन नहीं जी रहे हैं. छोटी उम्र में बच्चों को गलत राह पर देखकर बहुत दुख होता है. शहरों में एक तो खेल के मैदान कम […]

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सभी मिल कर कोशिश करें, तो बच्चों को
एक सज्जन ने लिखा है- “आज के बदलते परिवेश में बच्चों को देखकर काफी व्यथित हूं, क्योंकि वे सही मायनों में बचपन नहीं जी रहे हैं. छोटी उम्र में बच्चों को गलत राह पर देखकर बहुत दुख होता है. शहरों में एक तो खेल के मैदान कम हो रहे हैं, दूसरी तरफ बच्चों में खेल के प्रति रूचि भी घट रही है.
किशोरवय बच्चे मोबाइल में व्यस्त हैं. मैदान में खेले जानेवाले खेल जैसे- गिल्ली डंडा, लुका-छिपी, कंचे, लट्टू, ताला-चाबी, पिट्ठू गरम, चोर-सिपाही तो यादें बनकर रह गये हैं. वो खेल बच्चों को सहनशील बनाने के साथ उनमें जूझने और सामूहिकता की भावना पैदा करते थे. उन खेलों से शारीरिक वर्जिश भी होती थी. आज के फास्ट फूड कल्चर में बच्चों का कोमल मन भी जल्दी विकसित हो रहा है.
बच्चों की मनोविकृति की एक बड़ी वजह है टीवी-सिनेमा, विज्ञापन या सीरियल सभी में अश्लीलता का बोलबाला है. विज्ञापनों में खासकर बच्चों को निशाना बनाया जाता है, क्योंकि बच्चे विज्ञापन कंपनियों का बहुत बड़ा मार्केट है. यहां तक कि कार्टून और हास्य कार्यक्रमों में भी वयस्कों की सामग्री परोसी जाती है. छोटी उम्र में ही उन्हें वीडियो गेम, मोबाइल और इंटरनेट की लत लग जाती है. छात्र नशे के शिकार हो रहे हैं. सोशल मीडिया पर आइडी बदलकर मौज-मस्ती के लिए लड़के-लड़कियां एक-दूसरे को खोजते हैं. पहले भी स्कूलों में प्रेम-प्रसंग होते थे, किंतु वे बहुत कम थे क्योंकि बच्चों को सामाजिक मर्यादाओं का ख्याल रहता था, पर अब स्थिति बिलकुल उलट है.
आज लोग गंभीर अपराधों में किशोर अपराधी को वयस्कों जैसी सजा दिलाने के लिए जुवेनाइल कानून में बदलाव चाहते हैं, लेकिन क्या ऐसे अपराधों को सिर्फ कानून के भरोसे रोका जा सकता है? पड़ोस में रहनेवाले बुजुर्ग भी बच्चों को अधिकारपूर्वक नहीं डांट सकते. सबसे ज्यादा दुख तब होता है जब लड़के स्कूल की छोटी लड़कियों को मंहगा गिफ्ट देकर, बहला-फुलसाकर अपना निशाना बनाते हैं. लड़कियां भी सोचती हैं कि वे अपनी जिंदगी एनज्वॉय कर रही हैं.
उन्हें जो अच्छा लगेगा, वे करेंगी. इन प्रेम-प्रसंगों में गहराई नहीं, उतावलापन है. सारे नियमों-वर्जनाओं को तोड़ डालने की जिद है. इस सबके बीच इन छात्रों की जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण समय बरबाद हो जाता है. इन बातों का बुरा प्रभाव उन बच्चों पर ज्यादा पड़ता है, जिन्हें पढ़ाई के दम पर नौकरी करनी है, भविष्य बनाना है.
हमें स्वस्थ समाज के लिए सुसंस्कृत नागरिक तैयार करने होंगे और इसमें अभिभावकों व शिक्षकों की महती भूमिका है. इसके लिए जरूरी है कि समाज का प्रबुद्ध वर्ग लेखक, प्रोफेसर, खिलाड़ी, वैज्ञानिक, अभिनेता, डॉक्टर आदि आवाज उठाएं. अगर हम साथ मिल कर कोशिश करें, तो बच्चों को उनका बचपन लौटा सकते हैं.”
उनकी बातों में फिक्र है. वे ही क्यों, पूरा समाज फिक्रमंद है. सभी को बच्चों की सुरक्षा और भविष्य की चिंता है. सभी चाहते हैं कि उनके बच्चे राह से न भटकें और अपना बेहतर भविष्य गढ़ें. यह सच है कि पहले जैसा माहौल अब नहीं है. खाने से लेकर पढ़ाई तक के आयाम बदल गये हैं. इसकी चर्चा फिर कभी…
एक मेल है बीटेक सेकेंड इयर की छात्रा का. उसने लिखा है कि वह एक शादीशुदा पुरुष से प्यार करती है. जैसा कि उसने लिखा है कि उसे इस बात का एहसास है कि वह पुरुष शादीशुदा है. उसका दिमाग उसे उसके साथ रिश्ता कायम रखने से रोकता है, मगर उसने यह भी लिखा है कि वह सारी हदें पार कर चुकी है.
वह बहुत प्यार करती है और पुरुष भी उसे चाहता है, लेकिन वह यह नहीं जानती कि वह उससे विवाह करेगा या नहीं ?मैं उस बेटी से यही कहूंगी कि शादीशुदा व्यक्ति से प्यार करके पहले ही एक गलती हो चुकी है, अब संबंधों को आगे बढ़ाकर दूसरी गलती मत कीजिए. दूसरे के परिवार में खलल डालना और बिना यह विश्वास हुए कि कोई व्यक्ति आपका साथ कहां तक देगा, आप खुद को उसे सौंप दे, यह कहीं से भी उचित नहीं है.
उसकी तरह कई और लड़कियां होंगी जिन्हें शादीशुदा पुरुषों से प्यार होगा. उन सभी से आग्रह है एक बार ऐसे सोचिए कि आप शादीशुदा हैं. आपका एक हंसता-खेलता परिवार है. बच्चे हैं. आप अपने पति को बहुत चाहती हैं. एक दिन आपको पता चलता है कि आपके पति के जीवन में कोई और महिला है.
वह उससे शादी करना चाहते हैं, तो आप पर क्या बीतेगी? आप उस महिला को कितनी बद्दुआएं देंगी जिसने आपसे आपका पति छीन लिया? अगर आपका पति उससे शादी कर ले, तो क्या आप उस लड़की को माफ कर सकेंगी ? क्या आपका दिल उसे बद्दुआ नहीं देगा? क्या आपके बच्चे पिता के प्यार से महरूम नहीं हो जायेंगे? क्या बच्चों के दिल से उस महिला के लिए बद्दुआ नहीं निकलेगी? क्या आप चाहेंगी कि आपका घर-संसार किसी पत्नी और उसके बच्चों की बद्दुआओं पर बने! इसलिए बेहतर है कि आप वह रास्ता छोड़ दें. वैसे भी किसी परिवार की आहों पर आप सपनों का महल बनायेंगी तो सुख आपको भी नहीं मिलेगा.
यह नींव बहुत कमजोर होगी. कोई भी शुभ कार्य आशीषों और दुआओं के साथ होना चाहिए. आप खुद सोचिए कि आपको क्या करना चाहिए ? उत्तर स्वयं मिल जायेगा. जब हम समझ जाएं कि हमसे गलती हुई, तभी सुधारना चाहिए. उसे छुपाने या सही ठहराने के लिए एक और गलती नहीं करनी चाहिए. किसी के हंसते-खेलते परिवार को मत बिखेरिए. लड़कियां एक बार सोचकर ही कदम उठाएं. एक महिला होने के नाते महिला का दर्द समझिए.
आप सब बच्चे नये वर्ष में खुद से वादा करिए कि अब कोई गलती नहीं करेंगे. मम्मा-पापा का कहना मानेंगे. ईश्वर आपको सफलता दे, सुनहरा भविष्य दे. आप अपने मम्मा-पापा के साथ अपने शहर, राज्य और देश का नाम रोशन करें. यही मेरी शुभ कामनाएं हैं.
(क्रमश:)

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