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सबसे बड़ा आयातक!

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यह तथ्य आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब संजो रहे देश भारत की विफलता का ही परिचायक है कि यह 2015 में लगातार तीसरे साल हथियारों के आयात में दुनिया में पहले स्थान पर रहा है. थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि दुनियाभर में आयात किये जा […]

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यह तथ्य आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब संजो रहे देश भारत की विफलता का ही परिचायक है कि यह 2015 में लगातार तीसरे साल हथियारों के आयात में दुनिया में पहले स्थान पर रहा है.
थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि दुनियाभर में आयात किये जा रहे कुल हथियारों का 14 प्रतिशत अकेले भारत में आता है. 2006 से 2010 के पांच वर्षों की तुलना में 2011 से 2015 के बीच भारत में हथियारों का आयात 90 फीसदी बढ़ा है. रिपोर्ट में इसका कारण भी बताया गया है कि भारत अपनी आर्म्स इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धी स्वदेशी हथियार डिजाइन कर पाने में विफल रहा है.
दूसरी ओर विश्व के कुल हथियार आयात में करीब 4.7 फीसदी हिस्सेदारी वाला चीन अपनी जरूरतें खुद पूरी करने की ओर अग्रसर है. चीन द्वारा हथियारों के आयात में 2006-11 के मुकाबले 2011-15 में 25 फीसदी की कमी आयी है. चीन 21वीं सदी के शुरू में सबसे बड़ा हथियार आयातक था, लेकिन अब तीसरे स्थान पर है.
विडंबना यह है कि भारत को अंतरिक्ष में कामयाबियों के नये मुकाम हासिल हैं, लेकिन स्वचालित बंदूक व रिवॉल्वर जैसे छोटे आधुनिक हथियार हम खुद डिजाइन नहीं कर सके हैं. विदेशी कंपनियां हमें हथियार बेचने में तो रुचि दिखाती हैं, परंतु तकनीक के हस्तांतरण या निर्माण इकाइयां स्थापित करने के मामले में उन्हें अपनी सरकारों के रुख पर निर्भर रहना पड़ता है.
ऐसे में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़े बदलाव का वाहक तभी बन सकता है, जब हम अपनी जरूरतों के मुताबिक हथियारों के निर्माण की स्वदेशी तकनीक विकसित करें. अगर इसरो के वैज्ञानिकों की उपलब्धियां गर्व करने लायक हो सकती है, तो डीआरडीओ के वैज्ञानिक भी ऐसा कर सकते हैं.
जरूरत है दूरदर्शिता के साथ नीतिगत फैसले लेने और पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदान करने की. विडंबना यह भी है कि संसद में रक्षा जरूरतों और आवंटन पर शायद ही कभी गंभीर बहस होती है. उम्मीद करनी चाहिए कि आगामी आम बजट में इस पर ध्यान दिया जायेगा.

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