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आर्थिक सर्वे : सरकार ने LED बल्ब बेचकर बचाये 45,000 करोड़ रुपये

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नयी दिल्ली : बजट से ठीक पहले जारी आर्थिक सर्वे में देश के मौजूदा आर्थिक हालात के बारे में कई तथ्य पेश किये गये. आर्थिक सर्वे में सरकार ने बताया कि 45,000 करोड़ रुपये की बचत की बात कहीं गयी, वहीं सर्वे में यह भी कहा गया कि कृषि में बड़े बदलाव की जरूरत है. […]

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नयी दिल्ली : बजट से ठीक पहले जारी आर्थिक सर्वे में देश के मौजूदा आर्थिक हालात के बारे में कई तथ्य पेश किये गये. आर्थिक सर्वे में सरकार ने बताया कि 45,000 करोड़ रुपये की बचत की बात कहीं गयी, वहीं सर्वे में यह भी कहा गया कि कृषि में बड़े बदलाव की जरूरत है. सरकार अगले वित्त वर्ष में 2.67 लाख करोड़ रुपये सड़क बनाने में लगायेगी.

सरकार के एलईडी अभियान से 45,000 करोड़ रुपये की बचत
सरकार की 77करोड़परंपरागत बल्बों तथा 3.5 करोड़परंपरागत स्ट्रीट लाइटों को एलईडी के साथ बदलने से बिजली की मांग में 21,500 मेगावाट की कमी आएगी. आर्थिक समीक्षा 2015-16 में कहा गया है कि इससे सरकार को 45,000 करोड़ रुपये की बचत होगी.
राष्ट्रीय एलईडी कार्यक्रम से भारत को लक्षित राष्ट्रीय प्रतिबद्ध योगदान (आईएनडीसी) के तहत अपनी उत्सर्जन गहनता को 2030 तक जीडीपी पर प्रति यूनिट 33 से 35 प्रतिशत की कटौती करने में मदद मिलेगी. वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में रखीगयीआर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि राष्ट्रीय एलईडी कार्यक्रम से सालाना आधार पर 109 अरब यूनिट बिजली की बचत हो सकेगी और मांग में 21,500 मेगावाट की कमी आएगी.
अप्रैल-नवंबर के दौरान एफडीआई 31 प्रतिशत बढकर 24.8 अरब डालर
अप्रैल-नवंबर के दौरान 31 प्रतिशत बढकर 24.8 अरब डालर रहा है. वित्त वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है.इससे पूर्व वित्त वर्ष 2014-15 की अप्रैल-नवंबर अवधि में यह 18.9 अरब डालर था. समीक्षा के अनुसार एफडीआई नीति को उदार एवं सरलीकृत बनाने तथा देश में कारोबार सुगमता माहौल उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सुधार की दिशा में कई कदम उठाये हैं. एफडीआई प्रवाह कंप्यूटर साफ्टवेयर तथा हार्डवेयर, सेवा, ट्रेडिंग, वाहन उद्योग, निर्माण गतिविधियों, रसायन एवं दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बढे हैं.
समीक्षा के अनुसार, ‘‘वित्त वर्ष 2015-16 :अप्रैल-नवंबर: में आये 24.8 अरब डालर के एफडीआई प्रवाह में से 60 प्रतिशत से अधिक दो देशों सिंगापुर तथा मारीशस से आयें.’ इसमें यह भी कहा गया है कि सितंबर 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान शुरू होने के बाद अक्तूबर 2014 से जून 2015 के बीच एफडीआई प्रवाह में इससे पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है
सड़कों पर होंगे 2.67 लाख करोड़ रुपये खर्च
सुदूर क्षेत्रों, सीमावर्ती एवं तटवर्ती क्षेत्रों में सड़क निर्माण को गति देने के लिए सरकार ने अपनी महत्वकांक्षी भारतमाला परियोजना के तहत 2.67 लाख करोड रुपये के खर्च करने का प्रस्ताव किया है. कार्यक्रम को 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में आज पेश 2015-15 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार, ‘‘भारतमाला व्यापक योजना है और इस पर 2,67,200 करोड़रुपये का खर्च अनुमानित है.’ समीक्षा के अनुसार सरकार तटवर्ती क्षेत्रों या सीमावर्ती इलाकों से लगे 7,000 किलोमीटर राज्य सडकों के विकास पर 80,520 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे.
इसके अलावा पिछडे क्षेत्रों, धार्मिक एवं पर्यटक स्थलों को जोडने वाली 7,000 किलोमीटर सडकों के निर्माण पर 85,250 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव है. समीक्षा के अनुसार सेतुभारतम परियोजना पर 30,000 करोड रुपये खर्च करने का प्रस्ताव किया है. इस परियोजना के तहत करीब 1,500 बडे पुल, 200 सडकों के उपर पुल : पुलों के नीचे सडक का निर्माण किया जाएगा.
भारतमाला के अलावा सरकार ने कहा है कि नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में 1,177 किलोमीटर राजमार्ग तथा 4,276 किलोमीटर राज्य सड़कों का विकास किया जाएगा. इस पर 7,300 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है.
कृषि में बड़े बदलावों की जरूरत
भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था को अपनी ही सफलता का ‘शिकार’ करार देते हुए आर्थिक समीक्षा में इस क्षेत्र में बडे बदलाव लाने के लिए संकर और जीमए बीजों के इस्तेमाल, कृषि उपजों का समर्थन मूल्य बढाने, सिंचाई और राष्ट्रीय बाजार सुविधाओं के विस्तार की सिफारिश की गयी है. समीक्षा में कहा गया है कि संकर और आनुवंशिक रूप से परिवर्द्धित (जीएम) बीजों को लेकर चिंताओं पर विचार-विमर्श और परीक्षण की जरूरत है ताकि उन्हें अगले छह महीने में जीएम फसलों को प्रस्तुत किया जा सके. इसमें यह भी कहा गया कि जीएम फसलों से जुड़ी चिंताओं के समाधान के लिए नियामकीय प्रक्रिया विकसित करने की जरूरत है.
आज संसद में पेश वित्त वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया कि दलहन और तिलहन का उत्पादन बढाने के लिए नीतियों में प्रोत्साहन का प्रावधान हो जिसके लिए देश आयात पर निर्भर है. इनके लिए देश भारी मात्रा में आयात पर निर्भर है.
सर्वेक्षण में कहा गया, ‘‘भारतीय कृषि एक तरह से अपने अतीत की सफलताओं – विशेष तौर पर हरित क्रांति – की शिकार है. यह अनाज केंद्रित हो गयीहै. इसका परिणाम है कि यह क्षेत्रीय रूप से भेदभाव पैदा करने वाली और अधिक साधन आश्रित हो गयी है. तीव्र औद्योगीकरण और जलवायु परिवर्तन से भूमि और जल महंगा हो गया है.

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