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भरपेट खा ही लिये होते!

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सुबह छह का वक्त. बंदे को पड़ोसी खैराती लाल के घर से बुलावा आया. खैराती पेट पकड़ कर उकड़ू बैठे थे. ऊपर से उनकी मेमसाब पीठ पर सवार. पार्टी में गये रहे. बहुत समझाये, माने नहीं. बारिश हो गयी. मस्ती चढ़ी रही. डम-डम डिगा-डिगा करने लगे. नतीजा देख लो. नाक बंद. गला बंद. कान भी […]

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सुबह छह का वक्त. बंदे को पड़ोसी खैराती लाल के घर से बुलावा आया. खैराती पेट पकड़ कर उकड़ू बैठे थे. ऊपर से उनकी मेमसाब पीठ पर सवार. पार्टी में गये रहे. बहुत समझाये, माने नहीं. बारिश हो गयी. मस्ती चढ़ी रही. डम-डम डिगा-डिगा करने लगे. नतीजा देख लो. नाक बंद. गला बंद. कान भी बंद. दिमाग ठप्प. सांस में दिक्कत. पेट गड़बड़. बुखार भी है. कोई कल-पुर्जा ठीक चलता नहीं दिखता. और खाओ फ्री की…

बंदे ने पाया कि मामला गंभीर है. खैराती की मेमसाब की बड़बड़ पर क्रमशः लगायी और जैसे-तैसे खैराती को टांग कर नजदीकी निजी अस्पताल पहुंचाया.

डॉक्टर ने पहले हजार रुपये जमा कराये. फिर विधिवत सर से पांव तक खैराती को घूरा. हर अंग की जांच-पड़ताल की. क्षितिज में कुछ टटोला. गंभीर हुए. खैराती की पीठ पर हाथ रखा. हूं…तो कल पार्टी में क्या उड़ाया?

उधर खैराती के चेहरे पर बेचारगी टपक पड़ी. सब उगल दिया. कसम से कुछ भी नहीं. खाना तो एकदम बकवास रहा. बस एक ठो टिक्की खाकर छुट्टी कर दी. फिर गोलगप्पे दिख गये. दो-चार से ज्यादा नहीं खाये. चाट-पकौड़ी तो सिर्फ टेस्ट भर का लिया. कटलेट में तो चार-पांच पीस में ही डकार आ गया. डोसा तो आधा छोड़ दिया. सांभर तो बिलकुल पानी ही पानी. हां, चाऊमिन अच्छी थी. लेकिन, बची ही नहीं. चम्मच भर ही हिस्से में आयी.

डॉक्टर ने याद दिलाया- मट्टन, चिकेन और बिरयानी?

खैराती की आंखें चमक उठीं- कहां खा पाये? बताया न कि भूख ही मर चुकी थी. बस दो पीस मट्टन और चिकेन लेग एक पीस. एक कबाब पराठा. चम्मच भर बिरयानी और वह भी किसी ने जबरदस्ती प्लेट में डाल दी.

डॉक्टर साब ने एक गहरी सांस ली- कुछ और बाकी रहा?

खैराती को जैसे कुछ याद आया. हां, थोड़ा गाजर का हलवा, चमचम, एक गुलाब जामुन, कुल्फी, आइसक्रीम लिया और चलते-चलते केसरिया दूध और बस एक ठो इमरती रबड़ी के साथ. बस इतना ही. मतलब यह कि कुल मिला कर खाया कुछ नहीं. बस स्वाद ही चखते रहे. सरसों का साग और मक्के की रोटी, छोले-भटूरे, मंचूरियन, दही-बड़ा वगैरह आइटम तो छूट ही गये.

डॉक्टर ने खैराती की आंखों में झांका- और ड्रिंक वगैरह?

खैराती ने मुंह बिचका लिया. कंजूसों की पार्टी थी. हिस्से में छोटे-छोटे दो पेग ही आये. हमने चालाकी से तीसरा मार लिया. मगर ठंडक इतनी ज्यादा थी कि पता ही नहीं चला. फिर वापसी पर बरसात. ऐसे में दो छोटे-छोटे और तो बनते ही थे. बढ़िया नींद आयी. बस सवेरे ही सब उल्टा-पुल्टी हो गयी.

डॉक्टर साब मुस्कुराये- पार्टी में तो तुमने कुछ नहीं खाया. अब दवा खाओ पेट भर के. डॉक्टर ने दो इंजेक्शन ठोंक दिये. दर्जन भर गोलियां, सिरप, इनहेलर और खून के टेस्ट लिखे. खाने में मूंग की पतली दाल और गर्म-गर्म लौकी. साथ में यह भी ताकीद दी कि दवा नहीं खायी, तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा. खैराती लाल बड़बड़ा उठे. क्या जमाना आ गया है. नहीं कुछ खाया, तब भी यह सजा!

घर पहुंचे तो मेमसाब चढ़ बैठीं. तबीयत ही खराब करनी थी, तो कम-से-कम भरपेट खा तो लेते. जित्ते का लिफाफा दिये और खाये नहीं, उत्ते से ज्यादे तो डॉक्टर को दे आये… हुंह…

वीर विनोद छाबड़ा

व्यंग्यकार

chhabravirvinod@gmail.com

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