16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

अंगदान की कमी से जूझता देश

Advertisement

अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में मांग और पूर्ति के बीच भारी अंतर हमारे देश में अंगदान की कमी से हर साल लाखों लोगों की जान चली जाती है. आंकड़ों की मानें, तो भारत में प्रति 10 लाख लोगों में अंगदान करने वालों की संख्या एक से भी कम है. अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में मांग […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में मांग और पूर्ति के बीच भारी अंतर
हमारे देश में अंगदान की कमी से हर साल लाखों लोगों की जान चली जाती है. आंकड़ों की मानें, तो भारत में प्रति 10 लाख लोगों में अंगदान करने वालों की संख्या एक से भी कम है.
अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में मांग और पूर्ति के बीच कितना अंतर है, यह इसी बात से जाना जा सकता है कि हर साल देशभर में जहां लगभग 1,75,000 लोगों को किडनी की जरूरत होती है, वहीं उपलब्धता मात्र 5000 की है. यहां बात सिर्फ जागरूकता की नहीं है, दान किये गये अंगों का रखरखाव और अन्य बुनियादी ढांचा भी उतना ही जरूरी है. आइए जानें-
हमारे देश में किसी की मौत के बाद उसके अंगाें को दान किये जाने के मामले कम ही देखने को मिलते हैं. यही वजह है कि हर वर्ष लाखों लोग किडनी, लीवर या दिल के खराब होने के कारण अंग प्रत्यारोपण के लिए इंतजार करते-करते जान गंवा देते हैं. दरअसल, इस मामले में हम दुनिया के कई देशों से पिछड़े हुए हैं. आंकड़ों की मानें, तो भारत में प्रति 10 लाख लोगों में अंगदान करने वालों की संख्या एक से भी कम (.34) है. फोर्टिस ऑर्गन रिट्रीवल एंड ट्रांस्प्लांट (फोर्ट) के आंकड़ों की मानें, तो भारत में 1,75,000 लोगों को किडनी के प्रत्यारोपण की जरूरत है, लेकिन यह 5,000 लोगों को ही मिल पाती है.
वहीं, हर वर्ष 50,000 लोगों को दिल के प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है, लेकिन वर्ष 2015 में कुल 110 हृदय ही प्रत्यारोपित हो पाये. बात करें लीवर प्रत्यारोपण की, तो जहां हर साल लगभग 1,00,000 जरूरतमंदों में से महज एक हजार को ही यह मिल पाता है. वहीं, करीब 20,000 फेफड़ों की जरूरत के बदले पिछले वर्ष महज 37 ही पूरे हो पाये.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस कमी की वजह हमारे देश में सरकारी स्तर पर उपेक्षा और लोगों में अंगदान के प्रति जागरूकता का कम होना बताया जाता है.
भारत में अगर अंगदान के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह काफी भयावह है़ अंगदान से जुड़े एक गैर-सरकारी संगठन मोहन फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु में प्रति 10 लाख की आबादी पर 136, केरल में 58, महाराष्ट्र में 52, आंध्रप्रदेश में 52, कर्नाटक में 39, गुजरात में 28, दिल्ली-एनसीआर में 28, उत्तरप्रदेश में 7, चंडीगढ़ में 6, पुडुचेरी में 1.3 लोग अंगदान करते हैं.
वहीं, वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो दुनिया में हर 10 लाख लोगों में भारत में 0.34, अर्जेंटीना में 12, जर्मनी में 16, इटली में 20, ऑस्ट्रिया में 23, अमेरिका में 24, फ्रांस में 25, क्रोएशिया में 33.5 और स्पेन में 34 लोग अंगदान करते हैं.
बहरहाल, हमारे देश में अंग प्रत्यारोपण और जरूरत के बीच भारी अंतर के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि जरूरत के मुताबिक मानव अंग और ऊतक (टिश्यू) उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. इसके अलावा, दान किये गये लगभग 20 प्रतिशत अंग ज्यादा समय लगने, गलत भंडारण या रखरखाव और कानूनी बाधाओं आदि की वजह से खराब हो जाते हैं.
मोहन फाउंडेशन से जुड़े सुनील श्रॉफ के अनुसार सबसे बड़ी बाधा एक मरीज को ब्रेन-डेड घोषित करना है. श्रॉफ कहते हैं, मांग और पूर्ति के बीच भारी अंतर की मुख्य वजह खुद अस्पतालों में ही जागरूकता का अभाव और चुनौतियां हैं. अस्पतालों में दो से चार प्रतिशत मौत मस्तिष्क के मृत होने के कारण होती हैं, लेकिन उन्हें समय से ब्रेन डेड घोषित नहीं किया जाता है.
आमतौर पर दाता के अंगों को मस्तिष्क के मृत होने के 24 से 72 घंटे के अंदर प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. मस्तिष्क के मृत होने के बाद हृदय काम करना बंद कर देता है और अंग खराब होने लगते हैं. फोर्टिस ऑर्गन रिट्रीवल ऐंड ट्रांसप्लांटेशन के निदेशक अवनीश सेठ कहते हैं, अंग कुदरती चीज हैं और इनके खराब होने और संक्रमित होने का जोखिम ज्यादा होता है.
इसलिए बेहतर नतीजों के लिए इन्हें जितना जल्दी हो सके निकाला और प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि अंगदान के मामले में विशेष रूप से सरकारी अस्पताल मृतक को ब्रेन डेड घोषित करने का कदम नहीं उठाते हैं, क्योंकि वहां लॉजिस्टिक, कानूनी कार्यवाही, बुनियादी ढांचा और अन्य वित्तीय मसले शामिल होते हैं.
एक रिपोर्ट में आई-क्यू के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और संस्थापक अजय शर्मा कहते हैं कि आंखों के मामले में कॉर्निया को किसी व्यक्ति की मृत्यु के दो से तीन घंटों में निकाला जाना चाहिए. इसके बाद कोशिकाएं खराब होने लगती हैं.
शर्मा कहते हैं कि इन दिनों लोग नेत्रदान करने आगे आ रहे हैं, लेकिन दुख की बात है कि 50 से 60 फीसदी आंखें इसलिए खराब हो जाती हैं, क्योंकि मृत व्यक्ति का परिवार आई बैंक को सही समय पर कॉल नहीं करता है. इसके अलावा भी लॉजिस्टिक, बुनियादी ढांचा और कानूनी औपचारिकताओं जैसे मुद्दे इसकी राह में बाधा खड़ी रकते हैं, जबकि अंगदान से लेकर प्रत्यारोपण तक इन सबकी अहम भूमिका होती है. उदाहरण के लिए आंखें, हड्डियों और चमड़ी जैसे ऊतक प्रत्यारोपण में नेत्र बैंक या प्रत्यारोपण केंद्र का नजदीक होना बहुत जरूरी है. आंखों, हड्डियों और चमड़ी का प्रत्यारोपण प्राकृतिक कारणों से मौत होने के बाद भी किया जा सकता है.
एक अन्य चुनौती छोटे और मंझोले शहरों में प्रत्यारोपण सुविधाओं का अभाव है. इस वजह से मरीज को ऐन वक्त पर बड़े मेट्रो शहरों का रुख करना पड़ता है. इस बारे में पारस हेल्थकेयर ग्रुप के निदेशक जतिंदर कुमार का कहना है कि दस करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले राज्य बिहार में एक भी सर्व-सुविधा युक्त किडनी प्रत्यारोपण केंद्र नहीं है. इसके लिए मौके-बेमौके परिजनों को मरीज को लेकर दिल्ली, मुंबई और कोलकाता की दौड़ लगानी पड़ती है. विशेषज्ञ बताते हैं कि 90 प्रतिशत अंग प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में किये जाते हैं. चूंकि यहां खर्च ज्यादा है, इसलिए ऐसे अधिकांश मरीज वंचित रह जाते हैं जिनकी पहुंच सरकारी अस्पतालों तक ही होती है.
ऐसे में मोहन फाउंडेशन के सुनील श्रॉफ कहते हैं, अंग प्रत्यारोपण की मांग और पूर्ति में मौजूद अंतर को कम करने का उपाय यह है कि इस क्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप को काम में लाया जाये, जिससे बुनियादी ढांचा सुदृढ़ हो ताकि ज्यादा से ज्यादा आबादी तक यह सुविधा पहुंचे और क्या अमीर-क्या गरीब, हर तबका लाभान्वित हो.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें