इन्फ्लुएंजा एक व्यापक रोग है. इसे बोलचाल की भाषा में फ्लू भी कहते है. इस मौसम में इससे संक्रमित होने का खतरा सबसे अधिक होता है. यदि यह संक्रमण प्रेग्नेंसी में हो जाये, तो अत्यधिक खतरनाक हो जाता है. यह इन्फ्लुएंजा वायरस नाक और मुंह द्वारा फेफड़े तक पहुंचता है और उसे संक्रमित कर देता है. इस स्थिति में खांसी और सांस फूलने के लक्षण नजर आते है. साथ ही तेज बुखार, शरीर में दर्द, सिर में दर्द इसके खास लक्षण हैं. इसे साधारण खांसी-जुकाम नहीं समझा जाना चाहिए, जिसमें बुखार हल्का रहता है तथा नाक बंद होना, छींकें आना, गले में दर्द होना आदि समस्याएं होती हैं.
होमियोपैथी में इलाज
जेलसीनियम : अगर रोगी को ठंड लगती हो, बुखार हो, चेहरा तमतमाया हुआ हो, आंखें पानी से भरी हो, सिर दर्द या सिर भारी होना, पीठ में अकड़न या दर्द कंपकंपी और सुस्ती जैसे लक्षण हों, तो इस औषधि के मूल अर्क का पांच बूंद दो-दो घंटे पर पानी में मिला कर लेने से काफी लाभ मिलता है और रोगी जल्द ही स्वस्थ हो जाता है.
आर्सेनिक आयोडेटम : रोगी को छींक, स्वरभंग, शरीर में कंपकंपी, ज्वर हो, सुस्ती, बेचैनी, प्यास, बदन में जलन रहने पर भी रोगी शरीर को ढंक कर रहने की इच्छा करता है, तो इस औषधि को 30 शक्ति में चार बूंद चार-चार घंटे के अंतराल पर देनी चाहिए. यह इन्फ्लुएंजा रोग की सबसे प्रधान दवा है.
यूपेरोरियम पर्फ : रोगी को मालूम पड़ता है कि हड्डियों में बेहद अधिक दर्द हो मानो कि हड्डी टूट गयी हो, बेचैनी, प्यास, जी मिचलाना, सिरदर्द, बुखार, पसीना नहीं आता हो, तो इस औषधि को 30 शक्ति में चार बूंद रोजाना सुबह, दोपहर, शाम, रात लेने से काफी लाभ मिलता है.
बेप्टीशिया : रोगी को आलस्य मालूम होना, आंखों में भारीपन एवं दर्द होना, सिरदर्द, जीभ मैली हो, पूरे शरीर में दर्द और अकड़न हो, खांसी, बेचैनी, बुखार रहने या न रहने पर भी सुस्ती, सांस में बदबू हो, तो इस औषधि को छठी शक्ति में चार बूंद तीन-तीन घंटे के अंतराल पर लेने से काफी लाभ मिलता है.
नोट : दवाएं अनुभव के आधार पर लिखी गयी हैं. होमियोपैथी के अनुसार किसी रोग विशेष की दवा नहीं होती है. लक्षण के आधार पर दवाएं चुनी जाती हैं.
कैसे करें बचाव
प्रेगनेंसी के दौरान भीड़वाले स्थानों पर जाने से बचना चाहिए. मुंह और नाक को ढक कर रखना चाहिए. खाने से पहले हाथ को अच्छी तरह से अवश्य धोना चाहिए. इन्फ्लुएंजा से बचने के लिए होमियोपैथिक औषधि इन्फ्लुएंजिनम 200 शक्ति की एक खुराक सप्ताह में एक बार लेनी चाहिए. औषधि को होमियोपैथी में प्रतिरोधक के रूप में दिया जाता है. इसे इन्फ्लुएंजा के मौसम से पहले या उस दौरान लेना चाहिए. इससे इन्फ्लुएंजा या फ्लू होने की आशंका भी कम हो जाती है.
बरतें सावधानी : यदि इन्फ्लुएंजा प्रेग्नेंसी में हो जाता है, तो काफी जटिल एवं गंभीर हो जाता है. इस कारण रोगी में शुरुआती लक्षण दिखाई देते ही डॉक्टर से संपर्क कर लेना चाहिए, नहीं तो गंभीर स्थिति में समय से पहले प्रसव हो सकता है. कभी-कभी तो आपातकालीन सीजेरियन द्वारा भी डिलिवरी करनी पड़ सकती है. अत: सावधानी बरतनी जरूरी है.