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मुलायम की स्वीकारोक्ति

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मुलायम सिंह यादव हमारे देश के वरिष्ठतम राजनेताओं में से हैं. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं तथा राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के प्रमुख हैं. बावजूद इसके, उनकी गिनती विवादित बयान देकर चर्चा में बने रहनेवाले नेताओं में भी होती है. लेकिन, लखनऊ में बुधवार को उन्होंने जो कुछ […]

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मुलायम सिंह यादव हमारे देश के वरिष्ठतम राजनेताओं में से हैं. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं तथा राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के प्रमुख हैं.
बावजूद इसके, उनकी गिनती विवादित बयान देकर चर्चा में बने रहनेवाले नेताओं में भी होती है. लेकिन, लखनऊ में बुधवार को उन्होंने जो कुछ कहा, वह न सिर्फ चौंकानेवाला है, बल्कि उनकी आपराधिक स्वीकारोक्ति भी है. समाजवादी नेता और चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया के नाम पर बने विधि विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस समारोह में उन्होंने कहा कि बतौर रक्षा मंत्री उन्होंने बोफोर्स तोप रिश्वत कांड से संबंधित फाइलें गायब करा दी थी!
उल्लेखनीय है कि मुलायम सिंह 1996 से 98 के दौरान जब रक्षा मंत्री थे, उस समय स्वर्गीय राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में स्वीडन की एबी बोफोर्स कंपनी से 400 हॉविट्जर तोपों की खरीद में कथित घोटाले का मुकदमा अदालत में चल रहा था. केंद्रीय जांच ब्यूरो वर्ष 1990 से ही इस मामले की जांच कर रहा था, जो अंतत: कोई ठोस सबूत नहीं जुटा सका. मुलायम सिंह ने अपनी इस कारस्तानी के पीछे बोफोर्स तोपों के कारगर होने का तर्क दिया है. लेकिन, यहां सवाल तोप की क्षमता का नहीं, बल्कि यह है कि कोई मंत्री या अधिकारी कोई विवादित दस्तावेज गायब कैसे करा सकता है और उसे ऐसा क्यों करना चाहिए?
और फिर मंत्री के रूप में किये गये गोपनीय कार्यों को सार्वजनिक करना पद और गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन भी तो है. जाहिर है, इस बयान के बाद मुलायम सिंह से पूछा जाना चाहिए कि बोफोर्स घोटाले की फाइलें कहां हैं? इसी भाषण में मुलायम सिंह ने यह भी कहा है कि रक्षा मंत्री रहने के दौरान उनके निर्देश पर हैदराबाद के पूर्व सांसद दिवंगत सलाहुद्दीन ओवैसी के मेडिकल कॉलेज के लिए सेना की जमीन उपलब्ध करायी गयी थी और उस कॉलेज में उनकी सिफारिश पर कई छात्रों को दाखिला भी मिला था. अब उनकी शिकायत है कि सलाहुद्दीन ओवैसी के बेटे असदुद्दीन ओवैसी इस ‘अहसान’ के बावजूद उन्हें बुरा-भला कहते फिरते हैं. इन बातों का सीधा संकेत है कि सपा प्रमुख का पूरा बयान मुसलिम वोटों और कांग्रेस के साथ समीकरण साधने के राजनीतिक मकसद से दिया गया है.
इस तरह यह राजनीतिक स्वार्थ के लिए संवैधानिक मर्यादा और कानूनी सीमाओं के उल्लंघन का मामला भी है. इससे फिर रेखांकित हुआ है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे कुछ राजनेता अपने निहित स्वार्थों को साधने की जुगत में मनमानी करते हैं. मुलायम सिंह जैसे वरिष्ठ एवं अनुभवी नेताओं से देश को अपेक्षा तो यह है कि वे अपनी वाणी की मर्यादा के जरिये नयी पीढ़ी के नेताओं के लिए नजीर पेश करेंगे.

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