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पाकिस्तान को सबक

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जियो और जीने दो- भारतीय चिंतन परंपरा का यह बुनियादी उसूल है. इसी के अनुरूप भारत किसी भी समस्या, चाहे वह आंतरिक हो या बाहरी, के शांतिपूर्ण समाधान में ही यकीन रखता रहा है. लेकिन, उड़ी में आर्मी कैंप पर पाकिस्तान की शह पर हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने यदि पहली बार […]

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जियो और जीने दो- भारतीय चिंतन परंपरा का यह बुनियादी उसूल है. इसी के अनुरूप भारत किसी भी समस्या, चाहे वह आंतरिक हो या बाहरी, के शांतिपूर्ण समाधान में ही यकीन रखता रहा है. लेकिन, उड़ी में आर्मी कैंप पर पाकिस्तान की शह पर हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सेना ने यदि पहली बार नियंत्रण रेखा के पार जाकर आतंकियों के खिलाफ सीमित कार्रवाई की है, या फिर पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर अलग-थलग करने के लिए भारत सरकार की ओर से कुछ कूटनीतिक कोशिशें पहली बार हो रही हैं, तो इसकी पृष्ठभूमि पर जरा ठहर कर गौर करना जरूरी है.

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उड़ी में 18 जवानों की शहादत से भारत में पसरे गम और गुस्से के माहौल में भी पाकिस्तानी सेना ने संयम बरतना जरूरी नहीं समझा. पाकिस्तान की ओर से नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष विराम का उल्लंघन कर भारतीय चौकियों पर फायरिंग की घटनाएं और बढ़ गयीं. इसकी आड़ में आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिशें भी जारी रहीं और भारतीय सेना ने सीमा पार से आये कई आतंकियों को मार गिराया. बात यहीं तक सीमित नहीं रही. पाक हुक्मरानों ने मीडिया के जरिये परमाणु हमले की धमकियां भी दीं. कुल मिला कर, यह भारत के धैर्य और संयम का यह एक कड़ा इम्तिहान था. तनाव का एक ऐसा क्षण, जिसमें दोस्ती की भारतीय कोशिशों को पाकिस्तान हमेशा ही हमारी कायरता समझता रहा है.

इस साल की घटनाओं पर ही नजर डालें, तो हम उन्हें आतंकियों से जुड़े दस्तावेज सौंपते रहे, वे उनको नकारते रहे. हम उनसे दोस्ती बढ़ाने कोशिशें करते रहे, बदले में वे हमें पठानकोट और उड़ी जैसे जख्म देते रहे.

ऐसे में उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान को एक सबक देना निहायत जरूरी हो गया था. आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की भारतीय प्रतिबद्धता के लिहाज से भी, भारतीय सेना का मनोबल बनाये रखने के लिहाज से भी और एक जिम्मेवार राष्ट्र के अपने नागरिकों के प्रति कर्तव्य के लिहाज से भी.

भारतीय रक्षा मंत्री ने इस जरूरत को समझा, लेकिन हड़बड़ी में कोई जवाबी कार्रवाई न करते हुए ऐलान किया कि उड़ी हमले का जवाब दिया जायेगा- दिन और स्थान हम तय करेंगे. फिर केरल में हुई उड़ी हमले के बाद की अपनी पहली सार्वजनिक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दो टूक कहा कि पाकिस्तान के हुक्मरान और चरमपंथी कान खोल कर सुन लें, उड़ी में हमारे 18 जवानों का बलिदान बेकार नहीं जायेगा.

हालांकि दो टूक जवाब देने की इन घोषणाओं के बाद भी भारत संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों के जरिये इस कूटनीतिक प्रयास में ही जुटा रहा कि पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा कर उसे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मजबूर किया जाये. भारत शुरू से कहता रहा है कि पाकिस्तान सिर्फ भारत में आतंकवाद का निर्यात नहीं कर रहा है, बल्कि दक्षिण एशिया के कई देश पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों की नापाक हरकतों से त्रस्त हैं. भारत के बाद, सार्क शिखर सम्मेलन में शामिल होने से इनकार करते हुए बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भूटान ने भी जो कारण बताये हैं, वे भारत के इस दावे की पुष्टि करते हैं कि पाकिस्तान आतंकियों को पाल रहा है. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र में किरकिरी के बाद इसलामाबाद में सार्क समिट रद होने का भी पाकिस्तान पर कोई असर नहीं हुआ. बीते सात दशकों का इतिहास गवाह है कि आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान से जब भी कोई सकारात्मक उम्मीद पाली गयी है, हमेशा निराशा ही हाथ लगी है.

ऐसे में भारतीय सेना ने यदि पहली बार नियंत्रण रेखा के पार जाकर आतंकियों के कुछ कैंपों को ध्वस्त किया है, कई आतंकियों को मार गिराया है, तो यह माना जाना चाहिए कि भारत अब सीमा पार से मिल रहे जख्मों को चुपचाप सहते रहने के लिए तैयार नहीं है.

हमारे पैरा कमांडोज ने जिस चतुराई के साथ इस ऑपरेशन को अंजाम दिया और बिना किसी नुकसान के वापस लौटे, वह हमारी सेना की दक्षता और कुशलता का परिचायक है. भारत ने पाकिस्तान की तरह छद्म युद्ध या चोरी-छुपे हमला न करके, खुद ही पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया को इस ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की जानकारी दे दी है, जिसका मकसद था घुसपैठ की तैयारी कर रहे आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करना. अब पाकिस्तान का सत्ता प्रतिष्ठान अपनी लाज बचाने के लिए भले ही इस ऑपरेशन को सिरे से नकार रहा हो, यह आशंका बनी रहेगी कि पाकिस्तानी सेना ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ की तर्ज पर कोई नापाक कार्रवाई कर सकती है.

इसलिए भारतीय सेना और सरकार को आसन्न खतरों और हर तरह के हालात से निपटने के लिए अधिक चौकस रहने की जरूरत है. सरकार ने गुरुवार को सर्वदलीय और रणनीतिक बैठकों के जरिये यह संदेश दिया है कि वह अपनी ओर से चौकसी में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रहने देगी. पाकिस्तान के साथ लगती सीमा और नियंत्रण रेखा के आसपास के इलाकों में पसरे तनाव की इस घड़ी में आम नागरिकों को भी अफवाहों और आतंकी खतरों के प्रति अधिक सावधान रहना चाहिए.

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