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आर्थिक सुधारों की अगली कड़ी

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डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कहा कि देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं का एकमात्र हल विकास है. युवाओं को स्किल प्रदान किये जायें, तो वे अपने जीवन-स्तर में सुधार ला सकते हैं. वर्तमान सरकार का ध्यान गरीब की उन्नति पर है. देश में युवाओं की बड़ी संख्या है. उन्हें अवसर […]

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डॉ भरत झुनझुनवाला

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अर्थशास्त्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कहा कि देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं का एकमात्र हल विकास है. युवाओं को स्किल प्रदान किये जायें, तो वे अपने जीवन-स्तर में सुधार ला सकते हैं. वर्तमान सरकार का ध्यान गरीब की उन्नति पर है. देश में युवाओं की बड़ी संख्या है.

उन्हें अवसर मिले, तो वे दुनिया को बदल सकते हैं. प्रधानमंत्री के इस मंतव्य का स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन, प्रश्न विकास के माॅडल का है. विचार करना है कि वर्तमान माॅडल से हम अपने लक्ष्य को पहुंच पायेंगे या नहीं. 25 वर्ष पूर्व मनमोहन सिंह द्वारा लागू किये गये आर्थिक सुधारों से आम आदमी को तीन लाभ हुए हैं. आयात के सरल होने से सस्ता विदेशी माल उपलब्ध हुआ. देश में उत्पादित माल की गुणवत्ता में अप्रत्याशित सुधार आया है. दूसरा लाभ सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों से मिला है. बड़ी कंपनियों के लाभ में वृद्धि हुई है. इनके द्वारा भारी मात्रा में टैक्स अदा किया गया है. इस राजस्व के एक अंश का उपयोग आम आदमी के लिए कल्याणकारी योजनाओं को चलाने के लिए किया गया है.

मनरेगा में 100 दिन का रोजगार मिला है. किसानों के ऋण माफ हुए हैं. इंदिरा आवास कार्यक्रमों से राहत मिली है. तीसरा लाभ ट्रिकल डाउन से मिला है. हमारे सर्विस सेक्टर ने दुनिया में महारत हासिल की है. बड़े शहरों में बड़ी संख्या में ऊंची इमारतें बनी हैं. युवा इंजीनियरों ने इनमें फ्लैट खरीदे हैं.इन उपलब्धियों के सामने संकट भी गहरा रहा है, जो अभी नहीं दिख रहा है. दूसरे देशों में यह समस्या स्पष्ट दिख रही है.

अमेरिका में पुलिस अधिकारियों की हत्याएं हो रही हैं. यूरोप में आतंकी गतिविधियां निरंतर बढ़ रही हैं. इंगलैंड ने यूरोपीय यूनियन से बाहर आने का निर्णय लिया है. इन गतिविधियों की जड़ें आम आदमी के लिए कमाई के सिकुड़ते अवसर और बढ़ती असमानता में है. मिडिल क्लास इंजीनियर की आय पांचगुना बढ़ गयी है, जबकि उसके घर काम करनेवाली सहायिका की आय आधी रह गयी है. भारत में यह गहराता असंतोष तत्काल नहीं दिख रहा है, चूंकि चंपारण से आनेवाली सहायिका एक बार दिल्ली की चकाचौंध में रम जाती है. परंतु, समय क्रम में चकाचौंध बढ़ने के बाद धीरे-धीरे असमानता का आक्रोश विकराल होता जायेगा. सस्ते विदेशी माल की उपलब्धता, मनरेगा और ट्रिकल के शोर में यह दर्द फिलहाल छिप गया है.

आम आदमी के जीवन-स्तर में पिछले 25 वर्षों में सुधार अवश्य हुआ है, लेकिन यह अपेक्षा से बहुत कम है. छात्र सेकेंड डिवीजन से पास हो, तो भी खुश होता है, यद्यपि रोजगार नहीं मिलता है.

मूल समस्या अच्छे वेतन के रोजगारों की कमी की है. यदि मिडिल क्लास का तेजी से विकास हुआ, तो ट्रिकल की धारा कुछ मोटी हो जायेगी और आम आदमी को भी विकास का लाभ मिलेगा. यदि मिडिल क्लास का विस्तार वर्तमान गति से हुआ, तो अमेरिका की तरह हमारा आम आदमी भी उद्विग्न हो जायेगा.

देश की सरकार द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण होने का उत्सव मनाने में व्यस्त है. मेक इन इंडिया से आम आदमी को कोई सरोकार नहीं है. देश में मैन्यूफैक्चरिंग का विस्तार हो जाये, तो भी रोजगार कम ही उत्पन्न होंगे. पिछले 25 वर्षों में जीडीपी की विकास दर लगभग 7 प्रतिशत रही है, लेकिन रोजगार की विकास दर मात्र 2 प्रतिशत रही है. अब मैन्यूफैक्चरिंग का चरित्र पूंजी प्रधान होता जा रहा है.

1992 में अपने निर्यातों में पूंजी सघन माल का हिस्सा 41 प्रतिशत था, जो 2010 में बढ़ कर 65 प्रतिशत हो गया है. नया उद्योग लगाने से यदि 1,000 रोजगार उत्पन्न होते हैं, तो उससे बने सस्ते माल के बिकने से 20,000 कुटीर उद्योग बंद हो जाते हैं. स्किल इंडिया के कामयाब होने में भी संशय है. सही है कि युवाओं को स्किल देने से वे स्वरोजगार कर सकते हैं, परंतु यह महज एक संभावना है.

इस दिशा में अब तक का रिकाॅर्ड कमजोर ही है. सरकार का ध्यान मेक इन इंडिया की छत्रछाया में मैन्यूफैक्चरिंग के विस्तार को हासिल करने का है.

द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण विद्यार्थी को यदि प्रथम श्रेणी में पास करना हो, तो अपनी कमियों को दूर करना होता है. इस हेतु सरकार को आगे कदम उठाने होंगे. सेवा क्षेत्र को गति दी जाये. नयी सेवाओं जैसे कस्टम मूवी, डिजाइनर कपड़े, मनोवांछित आकार के फल और सब्जी का उत्पादन, कंप्यूटर गेम्स आदि को बढ़ावा देने की महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की जायें. इससे मिडिल क्लास का विस्तार होगा. सरकार को चाहिए कि आइआइटी तथा आइआइएम की तर्ज पर इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ सर्विसेज स्थापित करे. तमाम देशों में स्थित भारत के दूतावासों में मेजबान देशों को सेवाओं के विस्तार के लिए अधिकारी नियुक्त किये जायें.

सेवा क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए, परंतु तत्काल कुछ श्रम सघन क्षेत्रों को चिह्नित करके रोजगार सृजन के लिए तत्काल आरक्षित कर देना चाहिए. जैसे पावरलूम बंद करके हैंडलूम को बढ़वा देने से रोजगार सृजन होगा. आम आदमी के दैनिक वेतनमान बढ़ेंगे. रोजगार न बढ़ा पाने की स्थित में द्वितीय श्रेणी में पास हुए आर्थिक सुधार अगली परीक्षा में असफल होंगे.

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