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सतलुज-यमुना लिंक नहर: 1955 में पहले समझौते के 61 साल बाद भी कायम है विवाद

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चंडीगढ : उत्तरी राज्यों के बीच छह दशक से भी पुराने जल विवाद ने आज नया मोड ले लिया. उच्चतम न्यायालय ने पंजाब की ओर से 2004 में पारित वह कानून असंवैधानिक करार दे दिया जिसके जरिए पडोसी राज्यों के साथ हुए सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर जल बंटवारा समझौते को रद्द कर दिया गया था. […]

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चंडीगढ : उत्तरी राज्यों के बीच छह दशक से भी पुराने जल विवाद ने आज नया मोड ले लिया. उच्चतम न्यायालय ने पंजाब की ओर से 2004 में पारित वह कानून असंवैधानिक करार दे दिया जिसके जरिए पडोसी राज्यों के साथ हुए सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर जल बंटवारा समझौते को रद्द कर दिया गया था.

न्यायमूर्ति ए आर दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों वाली पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘सारे सवालों के जवाब निगेटिव दिए गए हैं.” राष्ट्रपति ने शीर्ष अदालत से कुछ सवालों पर राय मांगी थी, जिसपर पीठ ने यह फैसला सुनाया. फैसले में स्पष्ट कर दिया गया है कि पंजाब समझौते की समाप्ति कानून, 2004 ‘‘असंवैधानिक” है और पंजाब को हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और चंडीगढ के साथ जल बंटवारा समझौता खत्म करने का ‘‘एकतरफा” फैसला नहीं करना चाहिए था.
न्यायमूर्ति पी सी घोष, न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह, न्यायमूर्ति ए के गोयल और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की सदस्यता वाली पीठ ने एकमत से कहा कि प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के सभी पांच सवालों के जवाब निगेटिव दिए गए हैं. आज के फैसले का मतलब है कि 2004 में पारित कानून 2003 के उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार नहीं था जिसमें एसवाईएल नहर के निर्माण का निर्देश दिया गया था.
गौरतलब है कि अभी नहर के निर्माण का कार्य ठप पडा है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ओर से 2004 में पारित कानून के जरिए राज्य सरकार ने एसवाईएल नहर के शेष हिस्से के निर्माण कार्य को रोक कर शीर्ष अदालत के आदेश को निष्प्रभावी करने की कोशिश की थी.
साल 1955 में हुए पहले समझौते के 61 साल बाद भी उत्तरी राज्यों के बीच जल विवाद बना हुआ है. पहले समझौते के बाद और भी कई समझौते हुए जिनमें 1960 की सिंधु जल संधि, 1966 का पंजाब पुनर्गठन कानून, 1981 का इंदिरा गांधी अवॉर्ड और 1985 का राजीव-लोंगोवाल समझौता शामिल है. इसके अलावा उच्चतम न्यायालय में कई मुकदमे हुए. इनमें पहला 1976 का था जिसमें पंजाब ने शीर्ष न्यायालय का रुख किया था.

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