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राष्ट्रवाद या महज दिखावा!

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आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विश्व की सबसे बड़ी ऑनलाइन खुदरा बिक्री कंपनी को झुका कर राष्ट्रीय गर्व वापस हासिल कर लिया है. इस संदर्भ में जो कुछ भी हुआ, वह इस तरह से है. एक भारतीय महिला ने 11 जनवरी को अमेजन के कनाडा स्थित […]

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आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विश्व की सबसे बड़ी ऑनलाइन खुदरा बिक्री कंपनी को झुका कर राष्ट्रीय गर्व वापस हासिल कर लिया है. इस संदर्भ में जो कुछ भी हुआ, वह इस तरह से है. एक भारतीय महिला ने 11 जनवरी को अमेजन के कनाडा स्थित ऑनलाइन स्टोर की फोटो को ट्विटर पर डाला, जहां भारतीय ध्वज के रंग वाला पायदान (डोरमैट) बेचा जा रहा था.
इस महिला ने स्वराज को लिखा कि ‘मैडम, अमेजन कनाडा को डांट लगाना चाहिए और यह चेतावनी देनी चाहिए कि वह भारतीय ध्वज वाला पायदान न बेचे. कृपया आप कार्रवाई करें. इसके बाद स्वराज ने तीन ट्वीट के जरिये अमेजन के खिलाफ कार्रवाई की. पहला ट्वीट, जो 5:43 बजे सुबह में कनाडा स्थित उच्चायोग को किया गया, इस प्रकार था: ‘यह स्वीकार्य नहीं है. कृपया अमेजन के साथ इस मामले को उच्च स्तर पर उठायें.’ कुछ देर बाद इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में सोचते हुए उन्होंने दूसरा ट्वीट 6:41 बजे सुबह में किया- ‘अमेजन को बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए.
उन्हें राष्ट्रीय ध्वज वाले सभी उत्पादों को तुरंत वापस लेना होगा.’ दो मिनट बाद किये गये अपने अंतिम ट्वीट में स्वराज ने धमकी देते हुए कहा कि ‘अगर अमेजन तत्काल प्रभाव से ऐसा नहीं करता है, तो हम अमेजन के किसी भी अधिकारी को भारतीय वीजा नहीं देंगे. हम अभी निर्गत उनके वीजा समय पूर्व ही निरस्त कर देंगे.’
बेशक पायदान बनानेवाला व्यक्ति भारतीय संस्कृति से परिचित नहीं था. पश्चिमी पायदानों पर वेलकम जैसी चीजें लिखी होती हैं और उस पर पैर रखने में किसी को आपत्ति नहीं होती है, क्योंकि वहां ऐसा करना संस्कृति का अपमान नहीं माना जाता है. वहां किसी भी देश के राष्ट्रीय ध्वज के रंग में रंगे पायदान बेचे जाते हैं और वहां ज्यादातर लोग उसे राष्ट्रीय गर्व प्रदर्शित करने के लिए खरीदते भी हैं.भारत या कुछ हद तक दक्षिण एशिया में पैर को अशुद्ध माना जाता है (संभवत: ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम अपने आस-पास को साफ नहीं रख पाते हैं) और इसलिए हम पायदान को दूसरी नजर से देखते हैं.
स्वराज के ट्वीट पर अमेजन कनाडा ने शीघ्रता से कदम उठाया और उस लिंक को वापस ले लिया, जिसके जरिये पायदान बेचा जा रहा था. वह लिंक किसी दूसरे आपूर्तिकर्ता का था. स्वराज द्वारा उठाये गये इस कदम के पक्ष में ज्यादातर लोगों ने ट्विटर पर कमेंट किया. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि भारत में राष्ट्रीय गर्व की बात बेहद महत्व रखती है. वहीं इस संबंध में कुछ लोगों ने यह महसूस किया कि स्वराज की प्रतिक्रिया अनावश्यक थी. ऐसे लोगों का कहना था कि पहली बात तो यह कि भारत का स्वाभिमान और राष्ट्रीय गर्व इतना कमजोर नहीं है कि वह छोटी-छोटी बातों से ध्वस्त हो जाये. और दूसरी बात, चूंकि अमेजन ने भारत में कई अरब डॉलर का निवेश किया है, तो ऐसे में उसके साथ ज्यादा सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए.
हालांकि, मैं इस बात से असहमत हूं. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ऐसा करनेवाला कौन व्यक्ति या कौन सी संस्था है? भारत सरकार को सबके साथ समान रूप से पेश आना चाहिए.
यहां स्वराज की कार्रवाई से मेरी परेशानी दूसरी है. पहली, स्वराज की धमकी ने भारत के संबंध में ज्यादातर लोगों के उस संदेह की पुष्टि कर दी है कि भारत वह देश नहीं है, जहां नियम और कानून के अाधार पर कार्रवाई की जाती है, बल्कि यह वह देश है, जहां बिना सोच-समझे मनमाने तौर पर निर्णय लिया जाता है. अगर अमेजन के अधिकारियों ने पूरी तरह से कागजी कार्रवाई के साथ वीजा हासिल किया है, तो स्वराज किस नियम या कानून के तहत वीजा निरस्त करने की धमकी दे सकती हैं? अगर उन्हें लगा कि इस मामले में किसी तरह का अपराध हुआ है, तो नियम का पालन करनेवाली नागरिक की तरह उन्हें अमेजन के खिलाफ प्राथमिकी (एफआइआर) या शिकायत दर्ज कराना चाहिए था. लेकिन, ऐसा करने के बजाय उन्होंने एक तानाशाह की तरह ट्विटर के जरिये फतवा जारी कर दिया.
दूसरी बात यह है कि अमेजन एक वैश्विक बाजार बन चुका है, ऐसे में यहां किसी के लिए भी इस बात पर नजर रखना बहुत मुश्किल है कि किस बात से किसी के भगवान, गुरु या पैगंबर का अपमान होता है. मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि पायदान को ऑनलाइन बिक्री से हटा देने से कोई बदलाव नहीं आनेवाला है. इस घटना के दूसरे दिन ही एक और रिपोर्ट आयी, जिसमें कहा गया था कि वहां भारतीय ध्वज वाले जूते भी बेचे गये थे (हमारे लिए यह भी अपमानजनक है). अगली बार अगर किसी ने ऐसा कृत्य किया, तो उसके खिलाफ सुषमा स्वराज क्या करेंगी?
तीसरी बात, हमारे नेताओं के लिए इस तरह से लोगों की राष्ट्रीय भावना को भड़काना बेहद आसान बात है. पिछली बार इसी समय हम सब ने एक बार फिर राष्ट्रवाद की चर्चा की थी. वह 2016 के फरवरी का महीना था, जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में नारे लगाने का मुद्दा गरमाया था. तब दो सप्ताह तक यह मुद्दा मीडिया में प्रमुखता से छाया रहा था, क्योंकि प्रत्यक्ष तौर पर उस नारे ने भारत को अपार क्षति पहुंचायी थी. इस मसले पर लोकसभा में तीन दिन तक बहस हुई थी.
शिक्षा मंत्री इस मामले को लेकर इतने आवेश में थीं कि उन्होंने अपना सिर कलम करने की धमकी तक दे दी. वहीं गृह मंत्री ने कहा था कि इस नारेबाजी के पीछे लश्कर-ए-तैयबा और हाफिज सईद का हाथ है. यहां तक कि इस बहस में प्रधानमंत्री भी शामिल हो गये और उन्होंने इसे लेकर ट्वीट किया और कहा सत्यमेव जयते. मतलब सत्य की हमेशा जीत होती है. इस पूरे मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपने की बात चली थी. इस मामले में देश का अपमान करनेवाले युवाओं को गिरफ्तार किया गया था और उनमें से एक के साथ हिरासत में मार-पीट भी की गयी थी.
आखिर इस नाटक का परिणाम क्या निकला? भाजपा सरकार ने चार्जशीट तक दाखिल नहीं किया है? रात गयी, बात गयी. इस तरह का झूठा और ढोंगी राष्ट्रवाद, दिखावे की नौटंकी, भावनात्मक लेकिन काल्पनिक राष्ट्रवाद को एक बार फिर स्वराज ने प्रदर्शित किया है. ऐसी हरकत राष्ट्रीय समय और ऊर्जा की बरबादी है और मंत्रियों, खासकर वे जिन पर बड़ी जिम्मेवारियां हैं, को इस तरह के तमाशे में शामिल नहीं होना चाहिए.

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