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एच-1बी वीजा तो बस बहाना है

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पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक सरकार आग लगने पर कुआं खोदने का उपक्रम कर रही है. अमेरिकी सांसदों का 26 सदस्यीय समूह मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला. फोटो सत्र के बाद प्रधानमंत्री ने अमेरिकी सांसदों से निवेदन किया कि एच-1बी वीजा पर ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे कि हमारे देश […]

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पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
सरकार आग लगने पर कुआं खोदने का उपक्रम कर रही है. अमेरिकी सांसदों का 26 सदस्यीय समूह मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला. फोटो सत्र के बाद प्रधानमंत्री ने अमेरिकी सांसदों से निवेदन किया कि एच-1बी वीजा पर ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे कि हमारे देश में आइटी उद्योग के लोग प्रभावित हों.
इसके प्रकारांतर विधायी समिति के अध्यक्ष बॉब गुडलेट के नेतृत्व में आठ अमेरिकी सांसदों का एक दल आइटी मंत्री रविशंकर प्रसाद और उद्योग-वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण से मिला. इस मुलाकात में विमर्श का बिंदु एच-1बी वीजा ही था, जिसमें बीच का रास्ता ढूंढा जा रहा था.
चिंता इतनी कि मंगलवार को पूरे दिन भारतीय उद्योग जगत के लोग पता करते रहे कि सरकार इस पर क्या कर रही है.माइक्रोसॉफ्ट के सीइओ सत्या नडेला की रविशंकर प्रसाद से मुलाकात से इस बेचैनी का पता चलता है. अभी सिलिकॉन वैली या अमेरिका के दूसरे इलाकों में स्थित कंपनियों के सीइओ ने अपने कर्मियों को सलाह दी है कि जो लोग एच-1बी वीजा के आधार पर यहां नौकरी कर रहे हैं, वे फिलहाल देश से बाहर न जायें. उन्हें डर है कि ऐसे लोगों के लौट आने की मुश्किलें ट्रंप प्रशासन खड़ी कर सकता है.
एच-1बी वीजा एक ऐसी सुविधा है, जिसके अंतर्गत अमेरिकी नियोक्ता अस्थायी तौर पर आइटी एक्सपर्ट, डाॅक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, पत्रकार, मॉडल, स्पोर्ट्स कोच, जू-कीपर जैसों को काम के वास्ते बुलाते रहे हैं.
अमेरिका हर साल ‘हाइ स्कील्ड’ लोगों के लिए 85 हजार ‘एच-1बी’ वीजा जारी करता है. 21 अक्तूबर, 1998 को इनकी वार्षिक वेतन सीमा साठ हजार डॉलर तय की गयी थी. 19 साल बाद, अमेरिकी संसद में एक प्रस्ताव (लोफग्रेन बिल) के जरिये इस सीमा को दोगुने से अधिक, एक लाख 30 हजार डॉलर करने और मास्टर डिग्री में छूट को समाप्त किये जाने की बात की गयी है. अमेरिकी संसद में एच-1बी वीजा पर समीक्षा का सवाल पिछले कई वर्षों से उठ रहा है. जब पहली बार बराक ओबामा सत्ता में आये, तो यह प्रस्ताव 17 फरवरी, 2009 को अमेरिकी संसद में रखा गया. मगर, उनके पूर्ववर्ती जाॅर्ज बुश ने 6 दिसंबर, 2004 को जो संशोधन किया था, उसे ओबामा ने ज्यों-का-त्यों रहने दिया.
अमेरिकी संसद में ‘एच-1बी वीजा’ पर विशेष सत्र होना है. पहली अप्रैल से ट्रंप सरकार ने इससे सरोकार रखनेवालों से सुझाव मांगा है. 26 सदस्यीय अमेरिकी सांसदों का समूह लौट कर ट्रंप प्रशासन को अवगत करायेगा कि भारत में ‘एच-1बी वीजा’ को लेकर किस तरह की हलचल मची हुई है.
इंडियन आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री 110 अरब डॉलर की है. यदि अमेरिका से तामझाम हटाने की जरूरत पड़ी और किसी अन्य देश में पूरा सेटअप लगाना पड़ा, तो यह सचमुच हाहाकार की स्थिति होगी. मसलन, जापान इसमें दिलचस्पी ले रहा है कि भारतीय कंपनियां यहां आयें. मगर, समस्या भाषा की है. अमेरिका 62 फीसदी आउटसोर्स आइटी से कर रहा था. यूरोपीय संघ दूसरा गंतव्य है, जहां भारतीय आइटी सेवा का 28 प्रतिशत निर्यात किया जा रहा है. मारीशस, यूएइ, नीदरलैंड में भारतीय आइटी उद्योग, और आउटसोर्सिंग का अच्छा विस्तार है.
देश का जीडीपी बढ़ाने में भारतीय आइटी सेक्टर का योगदान 9.3 प्रतिशत रहा है. भारतीय आइटी उद्योग निजी क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार के अवसर दे रहा है, जिसमें लगभग 37 लाख लोग निश्चिंत होकर अपना काम कर रहे थे.
मोदी सरकार के अर्थशास्त्री अब तक इस पर चुप हैं कि यदि ‘एच-1बी वीजा’ की शर्तों में ट्रंप सरकार संशोधन करती है, तो उसका असर भारतीय जीडीपी पर कितना पड़नेवाला है. बात सिर्फ आइटी वर्करों तक सीमित नहीं है. स्वास्थ्य, फार्मास्यूटिकल्स, होटल इंडस्ट्री, अधोसंरचना जैसे क्षेत्रों में योगदान दे रहे भारतीय प्रवासियों की संख्या अमेरिका में बढ़ती गयी है. 2014 में खबर मिली कि अमेरिका में भारत से गये 1 लाख 47 हजार नये अप्रवासी, चीन और मैक्सिको से आनेवालों की लकीर छोटी कर गये.
यह ठीक है कि एच-1बी वीजा की वजह से भारतीय आइटी कर्मियों को रोजगार के अवसर अमेरिका में मिलते रहे हैं. मगर, साठ हजार डॉलर सालाना वेतन सीमा के बहाने उनका शोषण भी जम कर हुआ है.
कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली में एक बेडरूम के कमरे का किराया बारह सौ डॉलर है. परिवार के साथ बसना है, तो दो से ढाई हजार डॉलर तक का कमरा चाहिए होता है. यही सूरतेहाल न्यूयार्क का उपनगर न्यूजर्सी का है, जहां दो बार मैंने आइटी में काम कर रहे मित्र का आतिथ्य ग्रहण किया था. उसी समय अंदाजा लग गया था कि अमेरिका में सिर्फ काम करने का ग्लैमर है.
पेट काट कर और इच्छाओं को मार कर महीने में पचास हजार, लाख रुपये बचा लिया, तो कौन सा कमाल कर दिया? अमेरिका में वेतन बढ़ाने की शर्तें निस्बतन छोटी भारतीय आइटी कंपनियों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप एक व्यापारी हैं और वीजा के इस पूरे खेल को अपने हक में बदलना चाहते हैं!

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