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महंगाई पर भी नजर रहे

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विधानसभा चुनाव के दिलचस्प नतीजों के तुरंत बाद आर्थिक मोर्चे से दो महत्वपूर्ण खबर आयी हैं. एक तो यह कि भाजपा की जीत के बाद शेयर बाजार का आत्मविश्वास बढ़ा है, और दूसरी खबर यह है कि फरवरी महीने में थोक महंगाई बीते 39 महीनों की तुलना में उच्चतम स्तर (6.55 फीसदी) पर पहुंच चुकी […]

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विधानसभा चुनाव के दिलचस्प नतीजों के तुरंत बाद आर्थिक मोर्चे से दो महत्वपूर्ण खबर आयी हैं. एक तो यह कि भाजपा की जीत के बाद शेयर बाजार का आत्मविश्वास बढ़ा है, और दूसरी खबर यह है कि फरवरी महीने में थोक महंगाई बीते 39 महीनों की तुलना में उच्चतम स्तर (6.55 फीसदी) पर पहुंच चुकी है.
सेंसेक्स की बढ़त तात्कालिक तौर पर उन लोगों के आर्थिक हित पर असर डालती है, जो अर्थव्यवस्था में निवेश कर सकने की स्थिति में हैं, लेकिन महंगाई का असर अमीर-गरीब सभी पर पड़ता है. सो, इन दो खबरों को आमने-सामने रख कर भी चुनावी नतीजों को देखा जाना चाहिए, क्योंकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने समाज के गरीब तबके का भरोसा जीता है. एक माह के भीतर महंगाई दर में तकरीबन डेढ़ फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. जनवरी में थोक महंगाई दर 5.25 फीसदी थी.
रोजमर्रा की जरूरत की तमाम चीजों- खाने-पीने के सामान से लेकर ईंधन और बिजली तक- की महंगाई दर बढ़ी है. सब्जियों और प्याज की महंगाई दर भले अब भी शून्य से नीचे है, लेकिन जनवरी में यह शून्य से 32.32 फीसदी नीचे थी, तो फरवरी में – 8.05 पर. मोटे अनाज, चावल, फल, मछली, अंडा और मांस की कीमतें बढ़ी हैं. ईंधन और बिजली की महंगाई दर 18.14 फीसदी से 21.02 फीसदी पर जा पहुंची है. बेशक देश की 20 फीसद आबादी के रोजमर्रा के जमा-खर्च पर इस महंगाई से खास फर्क नहीं पड़नेवाला है, क्योंकि ये लोग पूंजी के निवेश के जरिये पूंजी बढ़ाने की स्थिति में हैं.
देश की 20 फीसदी यानी करीब-करीब 25 करोड़ आबादी ही शब्द के सटीक अर्थों में अभी मध्यवर्गीय उपभोग के स्तर तक पहुंच पायी है. यह तबका जमीन, मकान, बैंक, शेयर बाजार आदि में पैसे लगा कर उससे कुछ और रकम बना सकता है. इसके उलट महंगाई के दंश को सबको झेलना पड़ता है- उन 35 करोड़ लोगों पर भी जिनकी रोजाना की आमदनी देश में दो डॉलर से कम है और उन 60 करोड़ लोगों पर भी जिनकी सालाना आमदनी साढ़े तीन लाख रुपये से ज्यादा नहीं है. चाहे जिन कारणों से भी हो, लेकिन महंगाई का बढ़ना देश के 95 करोड़ लोगों की रोजमर्रा की क्रय-क्षमता पर असर डालता है और उन्हें अपने खर्चों में तालमेल बैठाना पड़ता है.
ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि मुद्रास्फीति के उतार-चढ़ाव को नियंत्रण की हद में रखने के प्रयास किये जायें. क्रय-क्षमता कम होने से उपभोग और मांग पर नकारात्मक असर होता है, जिसका सीधा परिणाम उत्पादन में गिरावट के रूप में दिखायी देता है. अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने के लिए सरकार को महंगाई पर लगाम लगाने की पूरजोर कोशिश करनी चाहिए.

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