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डॉक्टरों को सुरक्षा मिले

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बीते कई दिनों से देश के अलग-अलग हिस्सों से डॉक्टरों के साथ मार-पीट और बदसलूकी की अनेक घटनाएं सामने आ रही हैं. किसी भी सभ्य समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. डॉक्टर का काम उपचार करना होता है. अगर उसके खिलाफ कोई शिकायत है, तो उसकी सुनवाई के समुचित प्रावधान हैं. लेकिन […]

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बीते कई दिनों से देश के अलग-अलग हिस्सों से डॉक्टरों के साथ मार-पीट और बदसलूकी की अनेक घटनाएं सामने आ रही हैं. किसी भी सभ्य समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. डॉक्टर का काम उपचार करना होता है. अगर उसके खिलाफ कोई शिकायत है, तो उसकी सुनवाई के समुचित प्रावधान हैं. लेकिन मरीजों के सगे-संबंधियों द्वारा कानून हाथ में लेना न सिर्फ आपराधिक कृत्य है, बल्कि अस्पताल के अन्य रोगियों के लिए भी जानलेवा है.

दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से जुड़े दो अस्पतालों- लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल और जीबी पंत अस्पताल- के 169 डॉक्टरों के सर्वेक्षण में पाया गया है कि हर दो में से एक डॉक्टर को अभद्रता और आक्रामकता का सामना करना पड़ता है. वर्ष 2015 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्ययन में बताया गया था कि देशभर में 75 फीसदी से अधिक डॉक्टरों को हिंसक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. दुर्भाग्य की बात यह भी है कि करीब आधे मामले गंभीर सर्जरी और आपात सेवाओं के मरीजों से जुड़े हैं.

इस रिपोर्ट के अनुसार, पांच सालों में 68.33 फीसदी घटनाओं में मरीज के साथ आये लोग शामिल थे. यह बहुत चिंताजनक है कि वर्ष 2007 के बाद से 18 राज्यों में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए कानून पारित किये जाने के बावजूद ऐसे मामलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. इस संकट से निपटने के लिए कुछ जरूरी पहलों की जरूरत है. हमारे देश में सकल घरेलू उत्पादन का करीब एक फीसदी ही सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है. स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है तथा डॉक्टरों और अस्पतालों की कमी के कारण दबाव बहुत अधिक है. निजी क्षेत्र में नियमन की कमी से अव्यवस्था है. संसाधनों और सुविधाओं को व्यापक करना बड़ी आवश्यकता है. मरीजों के रिश्तेदारों की बेचैनी के प्रति डॉक्टरों और अस्पतालों को अधिक संवेदनशील होना चाहिए.

लोगों को परेशानी में धैर्य रखना चाहिए तथा किसी भी ऐसे व्यवहार से परहेज करना चाहिए जिससे अस्पताल और अन्य मरीजों का नुकसान हो. स्वास्थ्य सेवा देने में लापरवाही या गलती के लिए कानून का सहारा लिया जाना चाहिए. कई मामलों में देखा गया है कि कुछ लोग अपने रसूख, रुतबे और बाहुबल का ताव दिखा कर अपने मरीज को पहले दिखाना चाहते हैं और उसके लिए विशेष सुविधाओं का दूराग्रह करते हैं. इन प्रवृत्तियों पर अंकुश लगना चाहिए. शांतिपूर्ण माहौल में ही डॉक्टर बेहतर सेवा दे सकते हैं. ऐसा माहौल बनाने की जिम्मेवारी हम सबकी है.

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