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जुनून : कथा एक प्रवासी भारतीय जेम्स की मेलबोर्न से अशोक बंसल 117 साल पहले भारत में यूपी के जिला बस्ती के पास एक गांव रघुनाथपुर से रामपाल मजदूरी करके पेट की आग बुझाने फिजी पहुंचे थे. जेम्स इनके ही वंशज हैं. अभी ऑस्ट्रेलिया मे बसे हैं. अपने पूर्वजों की तलाश में पिछले वर्ष भारत […]

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जुनून : कथा एक प्रवासी भारतीय जेम्स की
मेलबोर्न से अशोक बंसल
117 साल पहले भारत में यूपी के जिला बस्ती के पास एक गांव रघुनाथपुर से रामपाल मजदूरी करके पेट की आग बुझाने फिजी पहुंचे थे. जेम्स इनके ही वंशज हैं. अभी ऑस्ट्रेलिया मे बसे हैं. अपने पूर्वजों की तलाश में पिछले वर्ष भारत आये थे. उन्हें ऑस्ट्रेलिया की सरकार से बड़ी जिम्मेवारी मिली है- ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच सांस्कृतिक और औद्योगिक संबंधों को गति देने की. पढ़िए एक प्रवासी भारतीय के भारत प्रेम की रोचक दास्तान.
150 वर्ष पहले ब्रिटिश कॉलोनी फिजी में गन्ने की खेती के लिए मजदूरों का टोटा था. फिजी के गोरे फार्म मालिकों ने भारत की गोरी हुकूमत पर हिंदुस्तान से मजदूर भेजने का दबाव बनाया और इस प्रकार भारत से मजदूरों का विधिवत निर्यात शुरू हुआ. मद्रास और कलकत्ता के बंदरगाहों से फिजी के लिए ये मजदूर भेड़ बकरियों की तरह लादे जाते थे. वर्ष 1879 से वर्ष 1916 तक मजदूरों के लदान का सिलसिला अनवरत जारी रहा.
इन 37 सालों में 42 जहाजों ने फिजी के 87 चक्कर लगाये और 60 हजार से ज्यादा दाने-दाने को मोहताज भारतीयों को गुलामी से बदतर जिंदगी जीने के लिए फिजी पहुंचाया. इतिहास के जानकार जानते हैं कि गांधीजी के प्रेरणा पर पत्रकार शिरोमणि बनारसी दास चतुर्वेदी ने सीएफ एंड्रयूज के साथ मिल कर फिजी के प्रवासी भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों का खुलासा सर्वप्रथम अपनी लेखनी से किया था. इसके बाद भारत से मजदूरों का निर्यात बंद किया गया. इन्‍हीं बेबस लोगों में जेम्स के पूर्वज रामपाल थे, जो पेट की आग बुझाने वर्ष 1900 में फिजी आये थे. जेम्स को इन सब ऐतिहासिक बारीकियों का इल्म है.
जेम्स से मेरी मुलाकात अचानक यहां के एक पार्क में हुई. वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ पतंगबाजी का लुत्‍फ ले रहा था. मेलबर्न में मैंने पतंगें उड़ती न देखी और न सुनी, पर जेम्स के पतंग-प्रेम ने मेरी उत्सुकता में इजाफा कर दिया. मेरे कदम बरबस ही जेम्स की तरफ मुड़ गये. जैसे ही मैंने अपने भारतीय होने की बात कही, उसने बिजली की गति से मेरी ओर हाथ बढ़ाया. जेम्स के व्यवहार में आत्मीयता टपकने लगी. उसने बिना किसी हिचकिचाहट के बताया कि उसके पूर्वज बस्ती के थे. पिछले 10 वर्षों से वह मेलबर्न में बसा है.
गोरे लोग अजनबियों से जल्द ही घुलने-मिलने में परहेज रखते हैं. लेकिन जेम्स की रुचि मुझमें उतनी ही दिखाई दी, जितनी मेरी उसमें.
जेम्स ने पार्क के सामने स्थित अपने मकान में कॉफी पीने का न्योता दिया. जेम्स ने बतायाकि 117 वर्ष पूर्व रामपाल नाम के उसके पूर्वज फिजी आये थे. उन पर और उनकी दो-तीन पीढ़ियों पर क्या गुजरी, उसे अच्छी तरह मालूम है.
जेम्स के बाबा इंगलैंड गये, अंगरेज महिला से शादी की और वहीं बस गये. जेम्स कंप्‍यूटर में महारत हासिल कर नौकरी की तलाश में ऑस्ट्रेलिया आ गया. उसके पिता अक्सर भारत से अपने पूर्वजों के फिजी आने की और बस्ती में अपने खानदानियों के होने की चर्चा करते थे. इन्‍हीं चर्चाओं से जेम्स के खून में अपनेपन का उबाल आया.
पिछले साल वह पहली बार भारत आया. उसका मकसद अपने पूर्वजों को तलाशना था. संयोग से बस्ती के एक थाने में रखे जर्जर रिकार्ड में रामपाल का नाम फिजी जाने वाले मजदूरों की लिस्ट में मिल गया. बड़ी मेहनत-मशक्‍कत के बाद गांव में रिश्तेदारों की पहचान हो गयी. जेम्स उनकी निर्धनता देख दंग रह गया. मेलबर्न वापस आकर वह काफी दिनों तक बेचैन रहा. उसने प्रण किया कि वह उनकी आर्थिक मदद करेगा. अगस्त, 2011 में फिर से जेम्स भारत आकर बस्ती के अपने गांव रघुनाथपुर (बस्ती से सिर्फ छ: किलोमीटर) गया. रिश्ते का चाचा किसी अापराधिक मामले में जेल में था. वह चाची को कुछ रकम देकर मेलबर्न चला गया.
यह सब बताते हुए जेम्स कई बार भावुक हुआ, उसके नयनों को नम होते मैंने कई बार देखा. मुझे तनिक देर को आत्मग्लानि हुई कि हम आसपास बिखरे अपने बेहद करीब के विपन्न रिश्तेदारों से मुख मोड़ते रहते हैं. लेकिन जेम्स 117 वर्षों बाद भी अपने खून की पहचान के लिए बार-बार समंदर लांघ रहा है. मानवीय संवेदनाओं में इतना बड़ा अंतर देख मेरी पलकें जमीन में गड़ गयीं, मेरा सर कई बार घूमा.
इतना ही नहीं, जेम्स अपने पूर्वजों का दिया नाम संकर अपने नाम के साथ जोड़ने में गर्व महसूस करता है. गूगल पर जेम्स संकर को दुनिया देख सकती है. वह कंप्यूटर की एक विशिष्ट तकनीक का बेताज बादशाह जो है. इंगलैंड में पैदा हुए जेम्स शंकर परिवार ने पूरी तरह हिंदू धर्म अपना रखा है.
घर में बने मंदिर में अनेक देवी-देवता प्रतिष्ठित हैं. रामभक्त हनुमान की प्रतिमा के सामने हनुमान चालीसा रखा है. जेम्स हिंदी न के बराबर जनता है, पर हिंदी का हनुमान चालीसा सुनना उसे पसंद है. उसके घर में दीवाली-होली, जन्माष्टमी सभी त्‍योहार मनाये जाते हैं. वह देवी-देवताओं और तीज-त्योहारों को अपने पूर्वजों के देश की सांस्कृतिक विरासत मान कर कलेजे से लगाये हुए हैं. जेम्स को ऑस्ट्रेलिया की सरकार से बड़ी जिम्मेदारी मिली है, अ़ॉस्ट्रेलिया और भारत के मध्य सांस्कृतिक और औद्योगिक संबंधों को गति देने की.
जेम्स स्वीकार करता है कि 117 वर्ष पूर्व फिजी की जो भूमि उसके पूर्वजों के लिए अभिशाप थी, वही भूमि उनके वंशजों के लिए वरदान साबित हुई है. हैरत की बात यह है कि भारत के रघुनाथपुर में 117 वर्षों में किसानों की न तकदीर बदली न गांव की तसवीर.

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