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ब्रेस्ट कैंसर पैदा करनेवाले खास प्रोटीन की पहचान से बढ़ी इलाज की उम्मीद !

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बढ़ी इलाज की उम्मीद! कैंसर डिटेक्शन वैज्ञानिकों ने कैंसर कोशिकाओं के पनपने के लिए जिम्मेवार प्रोटीन की खोज की है. इससे कैंसर की दवा को विकसित करने की दिशा में एक बड़ी उम्मीद जगी है. हालांकि, इस संबंध में किया गया हालिया शोध और उसके नतीजे आरंभिक चरण में हैं, लेकिन विशेषज्ञों ने इसे कैंसर […]

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बढ़ी इलाज की उम्मीद!
कैंसर डिटेक्शन
वैज्ञानिकों ने कैंसर कोशिकाओं के पनपने के लिए जिम्मेवार प्रोटीन की खोज की है. इससे कैंसर की दवा को विकसित करने की दिशा में एक बड़ी उम्मीद जगी है. हालांकि, इस संबंध में किया गया हालिया शोध और उसके नतीजे आरंभिक चरण में हैं, लेकिन विशेषज्ञों ने इसे कैंसर से निपटने की दिशा में बड़ी कामयाबी बतायी है. क्या है यह नयी खोज और कैंसर के आरंभिक लक्षणों को समझने के लिए मौजूदा परीक्षण विधियों और इससे संबंधित अन्य पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का मेडिकल हेल्थ पेज …
महिलाओं में कैंसर के घातक स्वरूप ब्रेस्ट कैंसर से निपटने की दिशा में वैज्ञानिकों को एक बड़ी आरंभिक कामयाबी मिली है. एक नये शोध में यह दर्शाया गया है कि ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाओं को पनपने और फैलने से रोका जा सकता है. ‘एक्सप्रेस डॉट यूके’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने अपने किस्म की इस खास दवा के पहले जेनरेशन का सृजन किया है, जो ब्रेस्ट कैंसर से निबटने और संभवत: उसे खत्म करने में कारगर साबित हो सकती है. शोधकर्ताओं ने लाइसिल ऑक्सीडेज (जिसे एलओएक्स के नाम से भी जाना जाता है) नामक एक प्रोटीन की खोज की है, जिसे कैंसर कोशिकाओं के पनपने और उसे फैलाने के लिए जिम्मेवार माना गया है. इस खास प्रोटीन पर प्रोटोटाइप दवाओं से हमला करके इसे खत्म किया जा सकता है.
लंदन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च और कैंसर रिसर्च यूके मैनचेस्टर इंस्टीट्यूट की टीम द्वारा किये गये अध्ययन में दर्शाया गया है कि एलओएक्स को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है. साथ ही उन्होंने यह भी जानने का प्रयास किया है कि इसकी गतिविधियों को कैसे धीमे किया जा सकता है, ताकि कैंसर कोशिकाओं को पनपने में देरी हो और इस बीच दवाओं के जरिये उसे खत्म किया जा सके.
ब्रेस्ट कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के सीनियर रिसर्च कम्युनिकेशन मैनेजर डाॅक्टर रिचर्ड बर्स्क का कहना है, मौजूदा समय में ब्रेस्ट कैंसर के फैल जाने की दशा में दुखद रूप से उसका इलाज नहीं हो पाता है. ऐसे में कैंसर को फैलने से रोकने या उसे धीमा करने के लिए इलाज का विकास करना निश्चित रूप से जरूरी है, क्योंकि ऐसा नहीं होने की दशा में मरीज को मौत के मुंह में जाने से नहीं रोका जा सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के कैंसर रिसर्च यूके मैनचेस्टर इंस्टीट्यूट के ज्वॉइंट सीनियर ऑथर व डायरेक्टर प्रोफेसर रिचर्ड मैरिस ने इस अध्ययन से हासिल नतीजों से उम्मीद जतायी है कि इससे कैंसर बायोलॉजी के बारे में विस्तार से जाना जा सकेगा. इससे कैंसर की रोकथाम के लिए दवा विकसित करने में मदद मिलेगी.
मौजूदा प्रचलित तरीकों में प्रभावी है ब्रेस्ट थर्मोग्राफी
हालांकि, दुनियाभर के कैंसर विशेषज्ञ इसके लिए दवाओं को विकसित करने में जुटे हैं, लेकिन फिलहाल मौजूदा उपलब्ध तकनीकों के जरिये ही इसके आरंभिक लक्षणों को समझने की कोशिश की जाती है, ताकि उसे फैलने से रोका जा सके और मरीज ज्यादा-से-ज्यादा दिनों तक जीवित रह सके. जानते हैं इन्हीं मौजूदा तकनीकों और उसके विभिन्न पहलुओं के बारे में :
ब्रेस्ट थर्मोग्राफी जांच की ऐसी गैर-आक्रामक पद्धति है, जिसमें न तो किसी प्रकार का रेडिएशन होता है और न ही मरीज को दर्द होता है. यह ब्रेस्ट कैंसर के आरंभिक चेतावनी देने वाले लक्षणों की पहचान और निगरानी कर सकता है. इस प्रकार का ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग खास तौर पर 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के लिए कारगर होता है. मैमोग्राफी के कारण इस उम्र समूह की महिलाओं में स्क्रीनिंग के अन्य तरीके कम प्रभावी हो सकते हैं. हालांकि, थर्मोग्राफी किसी तरह से मैमोग्राफी का विकल्प नहीं है. ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों को समझने और एक्स-किरणों के न्यूनतम इस्तेमाल के संदर्भ में मैमोग्राफी अब भी स्क्रीनिंग का प्रमुख तरीका है.
थर्मोग्राफी या थर्मल इमेजिंग क्या है
थर्मोग्राफी या थर्मल इमेजिंग के तहत मूल रूप से यह जानने का प्रयास किया जाता है कि कैंसर कोशिकाओं की उत्पत्ति कैसे होती है. शरीर के किसी अंग के खास हिस्से में जब कैंसर कोशिकाएं पैदा हो रही होती हैं और वे ट्यूमर का आकार ले रही होती हैं, उस दौरान उस हिस्से में रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है. रक्त के प्रवाह में वृद्धि होने से त्वचा का तापमान बढ जाता है. त्वचा के तापमान में हुई इस बढ़ोतरी की पहचान करते हुए ही ब्रेस्ट थर्मोग्राफी की जांच को अंजाम दिया जाता है.
हालांकि, मेडिकल विशेषज्ञों के बीच पिछले कई वर्षों से यह बहस जारी है कि ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के संदर्भ में थर्मोग्राफी कितना कारगर साबित हो चुका है. ‘मेडिकल न्यूज टूडे’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकन कैंसर सोसायटी का मानना है कि मौजूदा जांच के तरीके से यह बेहतर है या उसी के समान है, इसे समझने में अभी समय लगेगा.
क्या है थर्मोग्राफ की प्रक्रिया
ब्रेस्ट थर्मोग्राफी जांच की नॉन-इनवेसिव शारीरिक प्रक्रिया है यानी इससे शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है और इसे महज 15 मिनट में अंजाम दिया जा सकता है. साथ ही यह नॉन-कंप्रेसिव भी है, जिसका मतलब यह है कि इसमें जांचे जाने वाले शरीर के खास हिस्से पर किसी तरह का बल आरोपित नहीं किया जाता है या दबाया नहीं जाता, जैसा कि ब्रेस्ट मैमोग्राफी परीक्षण के तहत किया जाता है.
मैमोग्राम के दौरान ब्रेस्ट पर किये गये आघात से कई महिलाओं को तकलीफ झेलनी होती है. इस लिहाज से थर्मोग्राफ का विचार बेहतर है. हालांकि, महिलाओं को मैमोग्राफ द्वारा इस जांच के विकल्प को खत्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि ब्रेस्ट कैंसर स्क्रिनिंग के लिहाज से मौजूदा समय में यह सर्वाधिक सटीक माना जाता है.
डिजिटल इंफ्रारेड इमेजिंग का इस्तेमाल
थर्मोग्राफी के तहत ब्रेस्ट में पायी जानेवाली किसी तरह की गड़बड़ी या बदलाव को पहचानने के लिए डिजिटल इंफ्रारेड इमेजिंग का इस्तेमाल किया जाता है. यह दोनों स्तनों का आपस में तुलनात्मक अध्ययन करता है और उनमें से किसी में भी होने वाली स्पष्ट असामान्यता को समझता है. इसलिए इसके जरिये इसे उन लोगों में समझने में थोडी दिक्कत होती है, जिनके दोनों ही स्तनों में असामान्यता पैदा हो गयी हो. यह प्रक्रिया ज्यादा मुश्किल नहीं है और इसे किसी क्लिनीक में अंजाम दिया जा सकता है. थर्मोग्राफ की प्रक्रिया के दौरान मरीज को कैमरे से छह से आठ फीट की दूरी पर खड़े रहने के लिए कहा जाता है.
क्या डिटेक्ट करता है थर्मोग्राफ
थर्मोग्राफ को समझने के लिए सामान्य स्तन ऊतकों के मुकाबले कैंसरकारी ऊतकों के बारे में दो चीजों को जानना जरूरी है. ये इस प्रकार हैं :
4ज्यादा मेटाबोलिक सक्रियता यानी बायोकेमिकल प्रतिक्रियाएं और 4रक्त प्रवाह में आयी तेजी.
कैंसर कोशिकाओं से हासिल ब्रेस्ट कैंसर ऊतकों के इन आयामों के नतीजों से इसे पनपने से रोका जा सकता है. इसका दूसरा बड़ा साइड इफेक्ट यह भी है कि इससे त्वचा का तापमान बढ़ जाता है. तापमान में हुई इस वृद्धि को अल्ट्रा सेंसिटिव कैमरों और कंप्यूटर्स से समझा जा सकता है. ये कैमरे हाइ-रिजोलुशन इमेज तैयार करते हैं.
अन्य परीक्षणों के साथ थर्मोग्राफी का इस्तेमाल
थर्मोग्राफी का इस्तेमाल मैमोग्राफी स्क्रिनिंग जैसे जांच के अन्य तरीकों के साथ भी किया जा सकता है. सामान्य तौर पर यदि थर्मोग्राफ का इस्तेमाल अकेले ही किया जाता है, तो लिये गये इमेज को भविष्य में व्यापक मूल्यांकन के लिए रिकॉर्ड के तौर पर रखा जा सकता है. 18 वर्ष की उम्र की महिलाओं में आरंभिक ब्रेस्ट थर्मोग्राफी का विचार उनके लिए बेसलाइन के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा सकता है.
इसके जरिये शरीर में पनप रही किसी तरह की असामान्यता या बदलाव को समझा जा सकता है. यह एक तरह से वार्षिक तौर पर किये जाने वाले शारीरिक परीक्षण का एक हिस्सा भी हो सकता है.
फॉलो अप परीक्षण
यदि अनियमितताओं की पहचान हो जाती है, तो आगे की जाने वाली परीक्षण प्रक्रियाओं को अपनाया जा सकता है. इसमें मेमोग्राम को भी शामिल किया जा सकता है. चूंकि इस तरीके से हासिल किये गये इमेज से स्तन की अन्य बीमारियों को भी जाना जा सकता है, लिहाजा इस फॉलो-अप से कैंसर की आशंका को समय रहते समझा जा सकता है. स्तन में किसी प्रकार की असामान्यता होने पर ये आशंकाएं हो सकती हैं :
4कैंसर 4फाइब्रोसिस्टिक बीमारी 4 संक्रमण 4वैस्कुलर डिजीज.
ऐसे में एक डाॅक्टर इसके इलाज और मॉनीटरिंग के लिए सावधानीपूर्वक प्रोग्राम की योजना बनाने के लिए सक्षम हो पायेगा. वे यह भी जान पायेंगे कि क्या मरीज को इलाज की जरूरत है.
प्रभावशीलता
आम तौर पर लोग ब्रेस्ट थर्मोग्राफी या मैमोग्राफी के बीच फर्क को समझ नहीं पाते, और कई बार दोनों ही का प्रयोग करते हैं. हालांकि, इन दोनाें ही का साथ प्रयोग करने की दशा में इसे ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकता है.
ब्रेस्ट टिस्सूज यानी स्तन के ऊतकों में कैंसर के आरंभिक लक्षणों की पहचान के लिए ब्रेस्ट थर्मोग्राफी कम प्रभावी है. थर्मोग्राफी, मैमोग्राफी और क्लिनीकल परीक्षण के इस्तेमाल को समग्र तौर पर मल्टीमोडल एप्रोच के रूप में जाना जाता है. इस एप्रोच के जरिये कैंसर के पनपने के आरंभिक चरण को 95 फीसदी तक सटीकता से पहचानने में मदद मिल सकती है.
तकनीक
सोफिस्टिकेटेड इंफ्रारेड कैमरा और कंप्यूटर्स के कॉॅम्बिनेशन के प्रयोग से थर्मोग्राफी की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है. इन तकनीकों के जरिये थर्मल इमेजिंग तकनीकी विशेषज्ञ स्तन की इंफ्रारेड फोटोग्राफ या हीट इमेज हासिल करते हैं. फिर इसे हाइ-रिजोलुशन में प्रिंट किया जा सकता है, ताकि कोई विशेषज्ञ डॉक्टर इसका अध्ययन कर सके या उसे किसी अन्य विशेषज्ञ के पास इलेक्ट्रॉनिक मॉड में उसे भेज सकता है.
इन परीक्षणों का इतिहास
थर्मोग्राफी का प्रयोग मेडिकल साइंस में सैकडों वर्षों से किया जा रहा है. हालांकि, वर्ष 1972 में डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ, एजुकेशन एंड वेलफेयर की ओर से यह घोषणा की गयी थी कि यह प्रयोगात्मकता से परे है. कई क्षेत्रों के लिए इस तकनीक के इस्तेमाल को लागू किया गया, जिसमें स्तन का संबंधित मूल्यांकन भी शामिल था. उसके बाद से तकनीक में आयी उन्नति के कारण थर्मोग्राफी का इस्तेमाल स्तन संबंधी बीमारियों के इलाज में बढता गया.
हीट पैटर्न
ब्रेस्ट थर्मोग्राफी में कैमरे के इस्तेमाल से अल्ट्रा-सेंसिटिव, हाइ-रिजोलुशन इंफ्रारेड इमेज तैयार की जाती है. ये इमेज हीट पैटर्न दर्शाते हैं और त्वचा के तापमान में होनेवाले बदलाव को बताते हैं. कई तकनीकों से इसकी जांच की जाती है, जिनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं :
4मैमोग्राफी
4अल्ट्रासाउंड
4एमआरआइ स्कैन
4एक्स-रे

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