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किशोराव्यस्था में खान-पान का एेसे रखें खास ख्याल

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किशोरावस्था में वजन एवं ऊंचाई तेजी से बढ़ता है. इसलिए इस उम्र में उनके खान-पान पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इसी उम्र में उनकी हड्डियां भी बनती और मजबूत होती हैं, जो उनके आगे की जिंदगी के लिए मायने रखता है. श्वेता जायसवाल कंसल्टेंट डायटिशियन नगरमल मोदी सेवा सदन बरियातु, रांची हार्मोनल बदलाव के […]

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किशोरावस्था में वजन एवं ऊंचाई तेजी से बढ़ता है. इसलिए इस उम्र में उनके खान-पान पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इसी उम्र में उनकी हड्डियां भी बनती और मजबूत होती हैं, जो उनके आगे की जिंदगी के लिए मायने रखता है.

श्वेता जायसवाल

कंसल्टेंट डायटिशियन नगरमल मोदी सेवा सदन बरियातु, रांची

हार्मोनल बदलाव के कारण लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का विकास ज्यादा तेज गति से होता है. लड़कियों में कई तरह के शारीरिक बदलाव भी आते हैं, जैसे- असमय स्तन का विकास होना, प्यूबिक एवं शरीर में बाल का बढ़ना एवं मासिक चक्र की शुरुआत आदि. वहीं, लड़कों में सेक्सुअल ऑर्गन का विकास, शरीर के आकार एवं ऊंचाई में परिवर्तन, दाढ़ी और मूंछ का आना, आवाज में भारीपन आदि देखने को मिलते हैं.

किशोरावस्था में ऊर्जा की आवश्यकता उसके बीएमआर (Basal Metabolic Rate) पर निर्भर करता है. इस उम्र में मेटाबॉलिक डिमांड के कारण ऊर्जा की आवश्यकता अधिक होती है. लड़कों को 2750-3020kcal कैलोरी और लड़कियों को 2330-2440 kcal कैलोरी उर्जा की आवश्यकता होती है. इस ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए उन्हें साबुत अनाज, फल, सब्जी, प्रोटीनवाला खाना एवं दूध कम वसावाला पदार्थ लेना चाहिए. हालांकि, जानकारी के अभाव में अधिकांश किशोरवय जंक फूड और अनियमित खान-पान के शिकार हो जाते हैं. ज्यादातर मामलों में पैरेंट ही जिम्मेवार होते हैं.शुरू में बच्चों पर ध्यान नहीं देते. खुद भी खाते हैं और उन्हें भी खिलाते हैं. बड़े होने पर यही आदत उनमें रह जाती है.

प्रोटीन की मात्रा किशोरों के लीन बॉडी मास पर निर्भर करता है, जो 45-60gm तक प्रतिदिन होनी चाहिए, जो चिकन, मछली, अंडा, दूध एवं दूध से बनी चीजों से मिल सकती है. शाकाहार में टोफू, सोयाबीन, बीन्स, नट्स आदि से इसकी पूर्ति की जा सकती है. इसकी कमी से उनके विकास पर प्रभाव पड़ता है. लड़कियों का मासिक चक्र भी देरी से आता है.

वसा ऊर्जा का मुख्य स्रोत है.

कुल ऊर्जा का 25 प्रतिशत वसा से लेना चाहिए, जिसमें 10 प्रतिशत ऊर्जा सैचुरेटेड फूड से होना चाहिए. तीन प्रतिशत आवश्यक फैटी एसिड से होना चाहिए. यह लड़कियों के यूट्रस के रक्त वाहिकाओं एवं मांसपेशियों को आराम देने में मदद करता है. इससे मासिक चक्र के पहले और बाद में पेट दर्द कम होता है.

कैल्शियम : किशोरावस्था में हड्डियों का निर्माण भी तेजी से होता है, साथ ही वे मजबूत भी बनती हैं. कैल्शियम हड्डियों के निर्माण के लिए अति आवश्यक है और उसके शरीर में अवशोषण के लिए विटामिन डी की भी जरूरत होती है. कैल्शियम की पूर्ति भविष्य में ऑस्टियोपोरोसिस से ही नहीं बचाती, बल्कि मनुष्य के कंकाल के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 800 एमजी कैल्शियम लेने के लिए 3-4 बार कैल्शियम से भरपूर खाना जैसे दूध, चीज, आइसक्रीम, दही आदि का सेवन करना चाहिए.

ऑस्ट्रेलिया में 1995 में हुए नेशनल न्यूट्रिशन सर्वे के अनुसार यह साबित हुआ था कि लड़कियां दूध में वसा की उपस्थिति के कारण लेना नहीं चाहती हैं. भारत में भी ऐसे मामले काफी देखने को मिलते हैं, जिसके कारण लड़कियों की हड्डियां कमजोर होती हैं और उनमें कैल्शियम की डिफिसिएंसी भी पायी जाती है.

साइज जीराे की चाहत घातक

किशोरावस्था में लड़के एवं लड़कियों के शारीरिक एवं मानसिक बदलाव को उनका खान-पान प्रभावित करता है.कई बार लड़कियां साइज जीरो के चक्कर में जरूरी पौष्टिक आहार नहीं लेती हैं. इससे उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- शरीर का कमजोर होना, नींद नहीं आना, किसी काम में मन नहीं लगना आदि.

इस उम्र में लड़कों से ज्यादा लड़कियों की फूड हैबिट खराब होती है. वे अक्सर सुबह का नाश्ता नहीं करतीं और भूख लगने पर जंक फूड का सेवन करती हैं. इसमें पोषक तत्व नहीं पाये जाते है, उल्टा यह शरीर के लिए हानिकारक होता है.

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