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मानवतावाद का दर्शन हैं लालन शाह फकीर के गीत

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लालन शाह फकीर भारतीय संत-कवि परंपरा के एक महान व्यक्तित्व थे. वे एक उत्कृष्ट साधक, चिंतक, समाज सुधारक, कवि एवं संगीतकार थे. बंगाल के बाउल साधकों में लालन सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. वे एक असाधारण प्रतिभासंपन्न कवि थे. लालन शाह ने अपने जीवन के करीब 100 वर्षों के दरम्यान लगभग 10 हजार गीतों की रचना […]

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लालन शाह फकीर भारतीय संत-कवि परंपरा के एक महान व्यक्तित्व थे. वे एक उत्कृष्ट साधक, चिंतक, समाज सुधारक, कवि एवं संगीतकार थे. बंगाल के बाउल साधकों में लालन सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. वे एक असाधारण प्रतिभासंपन्न कवि थे. लालन शाह ने अपने जीवन के करीब 100 वर्षों के दरम्यान लगभग 10 हजार गीतों की रचना की. उनके गीत साधना के माध्यम और वाहक दोनों थे. जाने-माने राजनयिक और पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दूबे ने लालन शाह फकीर के प्रमुख धाराओं के चयनित गीतों का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद किया है. प्रस्तुत है, लालन शाह फकीर के जीवन, विचार एवं उनके गीतों के अनुवाद की रचना प्रक्रिया पर मुचकुंद दूबे से विनय तिवारी की बातचीत …

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– लालन शाह फकीर की बांग्ला रचनाओं का हिंदी में अनुवाद करने की प्रेरणा कैसे मिली और लालन शाह को लेकर अापकी खास जिज्ञासा की वजह क्या है?

इसकी खास वजह है कि लालन शाह भारतीय संत-कवि परंपरा के महान व्यक्तित्व थे अौर साहित्य के धरोहर हैं. उनके विचार सिर्फ बांग्लाभाषी लोगों तक सीमित न रहे, इसलिए मौजूदा समय में उनके विचारों को समग्रता प्रदान करने के लिए हिंदी में इसका अनुवाद करने की प्रेरणा मिली, ताकि उनके विचारों का प्रचार-प्रसार अधिक-से-अधिक लोगों तक हो सके. उनकी काव्यशैली और संदेश आधुनिक युग के लिए काफी मायने रखते हैं.

– उनके विचारों की प्रासंगिकता क्या है आपकी नजर में?

भारत की मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में उनके विचार काफी प्रासंगिक हैं. लालन शाह धर्म के आधार पर भेदभाव और तर्कहीन अंधविश्वासों के सख्त खिलाफ थे. उनका पूरा दर्शन मानवतावादी है. वे मानते हैं कि मनुष्य ही भगवान का रूप होता है. ईश्वर ने अनेक सृष्टि की है, लेकिन मनुष्य का विकल्प कोई नहीं है. मुनष्य को केंद्र में रख कर ही उन्होंने कविताओं की रचना की है. उन्होंने संगीत के जरिये मानव कल्याण का संदेश दिया है. इतिहास गवाह है कि संत-कवियों की वाणी का तत्कालीन और आनेवाले समाज पर असर पड़ता है.

– अपने समय से उनके संवाद को आप कैसे

देखते हैं?

लालन शाह के समय भारतीय समाज में अनेक विकृतियां मौजूद थीं. हिंदू-मुसलमान के बीच भेदभाव की समस्या थी. इन विकृतियों पर कुठाराघात करने के लिए उन्होंने अपने गीतों को माध्यम बनाया और कुरीतियों को अनैतिक ठहराने की कोशिश की. उन्होंने धर्म को लेकर दुराग्रह, शोषण और अंधविश्वासों का घोर विरोध किया. बांग्लादेश में उच्चायुक्त रहते हुए मैं कई संगोष्ठियों में उनके विचारों को सुन कर प्रभावित हुआ. इसी से मुझे इनकी रचनाओं को अनुवाद करने की प्रेरणा मिली. बचपन से ही मुझे जो किताबें अच्छी लगती थीं, मैं उनका अनुवाद करता आया हूं. मैंने 10वीं कक्षा में ही ‘गीतांजलि’ का अनुवाद किया था.

– बांग्ला से हिंदी में अनुवाद करने में कितनी परेशानियां आयीं और इससे पार पाने के लिए क्या किया आपने?

किसी किताब या रचना के अनुवाद में सबसे बड़ी समस्या भाषा की होती है. भाषा की समझ होना बेहद जरूरी होता है. अच्छी बात यह है कि मुझे बांग्ला भाषा अच्छी तरह से आती है. हालांकि, लेखों का अनुवाद करना आसान होता है, लेकिन कविता का अनुवाद बिना उसकी मूल भावना को समझे नहीं किया जा सकता है. यही वजह है कि भाषा की समझ होने के बावजूद भाषागत और विचार के तौर पर अनुवाद करने में थोड़ी परेशानी आयी. लालन शाह की रचना शुद्ध बांग्ला में नहीं है, बल्कि इसमें लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है.

– शाह की भाषा और भावों को समझने के लिए क्या खास काम करना पड़ा आपको?

इसे समझने के लिए मैं बांग्लादेश गया और वहां लालन शाह फकीर को समझनेवालों से उनकी रचनाओं पर खूब चरचा की. वहां उनकी काव्य की प्रामाणिकता को लेकर काफी शोध हो रहा है. कहने का अर्थ है कि जैसे कबीर की रचना को समझने के लिए एक अलग प्रकार की भाषाई क्षमता की जरूरत होती है, उसी तरह लालन शाह के गीत के भाव को समझने के लिए भी उसकी गहराई में उतरना जरूरी था. उनके गीत में कई शब्दों के गूढ़ शब्दों के अर्थ को समझना कठिन था. वे रहस्यवादी कवि थे. ऐसे कवि दर्शन के मूल स्रोत से शब्दों का चयन करते हैं. उन्होंने उपनिषद, कुरान जैसे धर्मग्रंथों से शब्दों का चयन किया है. कई शब्द इसलामिक कविताओं के थे. इन शब्दों को समझने में परेशानी हुई. संत-साहित्य लक्षणात्मक होता है. वे दूसरी बात करते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ हम कुछ और ही समझते हैं. इसीलिए इसे समझना आसान नहीं होता है.

– मौजूदा समय में लालन शाह फकीर की कविताओं से क्या सीख लेने की जरूरत है?

मौजूदा समय में धर्म के नाम पर बढ़ रही नफरत से पार पाने में उनकी कविताओं में दर्ज विचार काफी प्रासंगिक हैं. यह सही है कि भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के प्रयास से समाज में विभाजन की स्थिति पैदा नहीं हो पायी. लेकिन, आज धर्म के नाम पर हत्या और घृणा फैलायी जा रही है. मानवता के ऊंचे गुण गौण होते जा रहे हैं. ऐसे माहौल में लालन शाह के मानवता के विचार काफी प्रासंगिक हैं. उन्होंने मानवतावादी संदेश को गीत के जरिये जनमानस तक पहुंचाया.

19वीं शताब्दी में ग्रामीण क्षेत्र में नवजगारण का अभियान चलाने में बाउल की भूमिका प्रमुख रही है और इसके सर्वमान्य पुरोधा लालन शाह फकीर ही थे. रबींद्र नाथ टैगोर ने भी कहा था कि हिंदू-मुसलमान के बीच मेलजोल और विश्वास बहाली में बाउल फकीर की भूमिका महत्वपूर्ण थी. समाज में भेदभाव मिटाने का जो काम नानक, कबीर और दादू ने किया उसे लालन शाह ने आगे बढ़ाने का काम किया. वे 116 साल जिंदा रहे और इस दौरान कविता और विचारों का महानतम स्तर हासिल किया. उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म माना और इसके जरिये समाज को एकजुट करने का संदेश दिया.

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