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पढ़ें राजनीतिक विश्लेषक शम्सुल इस्लाम का लेख: संघ की रणनीति का हिस्सा है राजनीतिक हिंसा

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!!शम्सुल इस्लाम, राजनीतिक विश्लेषक!! हिंसा बहुत ही बुरी चीज होती है. किसी की जान लेने को किसी भी प्रकार से समर्थन नहीं किया जा सकता, चाहे भले ही हिंसा का शिकार व्यक्ति ने बड़ा से बड़ा जुर्म किया हो. हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है. लेकिन, केरल में राजनीतिक हत्याओं को […]

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!!शम्सुल इस्लाम, राजनीतिक विश्लेषक!!

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हिंसा बहुत ही बुरी चीज होती है. किसी की जान लेने को किसी भी प्रकार से समर्थन नहीं किया जा सकता, चाहे भले ही हिंसा का शिकार व्यक्ति ने बड़ा से बड़ा जुर्म किया हो. हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है. लेकिन, केरल में राजनीतिक हत्याओं को लेकर यह कहना कि भाजपा-संघ के लोग वामपंथी हिंसा का शिकार हो रहे हैं, तो यह तथ्य पूरी तरह से सही नहीं है. क्योंकि भाजपा-संघ के लोग तो अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. और यह बात खुद उनसे ही साबित है. संघ के नेताओं और प्रचारकों-कार्यकर्ताओं के लिए एक पवित्र पुस्तक है- ‘विचार नवनीत’. विचार नवनीत संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर की अंगरेजी पुस्तक ‘बंच ऑफ थॉट्स’ का हिंदी अनुवाद है. इस पुस्तक के अध्याय 16 (शीर्षक- आंतरिक संकट) में गोलवलकर ने स्पष्ट लिखा है कि, ‘देश के तीन सबसे बड़े दुश्मन हैं- मुसलमान, ईसाई और वामपंथी.’ गोलवलकर ने साफ लिखा है कि ‘जब देश इन तीनों दुश्मनों से मुक्ति नहीं पाता, तब तक देश में आंतरिक संकट रहेगा. क्योंकि बाहरी संकटों से ज्यादा घातक है आंतरिक संकट.’ गोलवलकर के इस महान विचार को पढ़ कर क्या यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि संघ किस तरह की राजनीति करता है? संघ के इन दस्तावेज और पुस्तकों से यह साबित होता है कि किस तरह से संघ के लोग मुसलमानों, ईसाइयों और वामपंथियों को खत्म करने की बात सोचते हैं. जबकि ठीक इसके उलट सीपीएम की राजनीति है, जो हिंसा को बढ़ावा देने की बात नहीं करती और न ही उसके किसी दस्तावेज में ऐसी बातें लिखी हैं. अगर ऐसा होता, तो बंगाल में सीपीएम ने संघ के किसी कार्यकर्ता को क्यों नहीं मारा? बंगाल में तो वामपंथ करीब पच्चीस साल तक था, क्या कोई बता सकता है कि इतने वर्षों में वहां कितने संघ के लोग मारे गये?

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केरल में जिन राजनीतिक हत्याओं की बात हो रही है, उसमें बीते चालिस साल में करीब डेढ़ दर्जन भाजपा-संघ के लोग ही मारे गये हैं. जबकि इसी अवधि में पचास से ज्यादा सीपीएम-सीपीआइ के लोग भाजपा-संघ की साजिश का शिकार होकर अपनी जान गंवा चुके हैं. संघ के नेता एक अरसे से यह कहते आ रहे हैं कि अब गुजरात के बाद केरल ही हिंदुत्व की लेबोरेट्री है. इसलिए केरल में हिंदू-मुसलमान को बांटने के लिए जो भी किया जा सकता है, वे कर रहे हैं. लेकिन, उन्हें मुश्किल यह हो रही है कि केरल में ज्यादातर लोग सेक्युलर हैं और समझदार हैं. वहां दोनों बीफ खाते हैं, लेकिन वे वहां बीफ बैन की बात नहीं कर सकते, क्योंकि वहां यह मुद्दा नहीं बन सकता. दरअसल, केरल में ये लोग बीफ के आधार राजनीति नहीं कर सकते, जाति के आधार पर राजनीति नहीं कर सकते, इसलिए सीपीएम की राजनीति को इन्होंने एक मुद्दा बना लिया है. अगर राजनीतिक हत्या वहां मुद्दा बन सकता है, तो भाजपा-संघ के लिए पूरे देश में क्यों नहीं बन रहा है, जब देशभर से मोब लिंचिंग की खबरें आ रही हैं. क्या केरल के बाहर किसी की हत्या हत्या नहीं है? झारखंड और हरियाणा में होनेवाली हिंसाओं पर बहस क्यों नहीं होती? संसद में भाजपा सांसद सिर्फ केरल की घटना को ही क्यों मुद्दा बनाये हुए हैं, जबकि देश के बाकी हिस्सों में भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं. बिहार जैसा राज्य अभी तक गौरक्षा के नाम पर हिंसा से बचा हुआ था, लेकिन वहां भी एक घटना हो गयी. इस भाजपा नेता क्यों मौन हैं?

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दूसरी ओर, केरल में सीपीएम को अपनी लड़ाई राजनीतिक तौर-तरीकों से लड़नी चाहिए. लेकिन, वे भाजपा-संघ की हिंसात्मक राजनीतिक लड़ाई का जवाब हिंसा से दे रहे हैं, यही सीपीएम के लोगों की गलती है. यह ठीक नहीं है. गुरु गोलवलकर ने 1964 में गुजरात के एक विश्वविद्यालय में एक भाषण दिया कि ‘हमने केरल के हिंदुओं की नस्ल सुधारने के लिए उत्तर भारत से नंबूरी ब्राह्मण भेजे.’ यानी वहां हर हिंदू औरत का फर्ज था कि वह नंबूरी ब्राह्मण से बच्चे को जन्म दे. इस तरह की महिला-विरोधी राजनीति को संघ के लोग कैसे छुपायेंगे? यह समझनेवाली बात है कि केरल में संघ के लिए गाय मुद्दा नहीं है, राममंदिर मुद्दा नहीं है. ऐसा इसलिए, क्योंकि वहां का समाज इसको स्वीकार नहीं करेगा. इसलिए वहां राजनीतिक हिंसा को मुद्दे को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है, ताकि हिंदू राष्ट्र पर बहस न हो और मनुस्मृति पर बहस न हो.

दरअसल, इस वक्त भाजपा का सीधा-सीधा खेल है केरल में राष्ट्रपति शासन लगाना. जोड़-तोड़ की राजनीति जिस तरह से भाजपा कर रही है, वह केरल में कामयाब नहीं हो सकती. सीपीएम चाहती तो बंगाल और त्रिपुरा में भी ऐसी ही राजनीति करती, लेकिन चूंकि उसके पास विचार नवनीत जैसी पुस्तक नहीं है और न ही सीपीएम हिंसा में यकीन करती है. सीपीएम का कहीं कोई दस्तावेज नहीं है कि संघ को खत्म करना है, लेकिन संघ का यह दस्तावेज है कि सीपीएम को खत्म करना है. अब आप खुद ही समझिये कि हिंसा की राजनीति कौन कर रहा है.

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