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अर्थव्यवस्था का हाल : बिल्ली के गले में घंटी बांध गये यशवंत सिन्हा

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बीजेपी के भीतर नीचे से ऊपर तक नेताओं में डर का माहौल है. लेकिन, जिस ताकतवर बिल्ली से ख़तरा है उसके गले में घंटी बांधे कौन? मगर, अब ये काम अटल बिहारी वाजपेयी के वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने कर दिखाया है. मोदी सरकार के गले में उन्होंने घंटी डाल दी है.अब जब-जब मोदी सरकार […]

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बीजेपी के भीतर नीचे से ऊपर तक नेताओं में डर का माहौल है. लेकिन, जिस ताकतवर बिल्ली से ख़तरा है उसके गले में घंटी बांधे कौन? मगर, अब ये काम अटल बिहारी वाजपेयी के वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने कर दिखाया है. मोदी सरकार के गले में उन्होंने घंटी डाल दी है.
अब जब-जब मोदी सरकार आक्रामक होकर बीजेपी के भीतर या अपनी सरकार में या फिर विपक्ष के बीच भी सामने आएगी, ये घंटियां बजने लगेंगी. एक और पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम, जो अब तक सीबीआइव बेटे से पूछताछ को लेकर चिंता में थे, उनमें भी जान लौट आयी है. प्रेस कान्फ्रेंस कर कांग्रेस नेता चिदंबरम ने दावा किया है कि इन घंटियों के वास्तविक उत्पादक वही हैं. दावा येभी किया कि इन घंटियों को वे बिल्ली के गले में बांधते भी रहे हैं लेकिन श्रेय यशवंत सिन्हा को जा रहा है.

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पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा शुरुआत में यह कहतेहैं कि चुप रहकर वे देश के साथ अन्याय नहीं कर सकते. यही साहस तो दूसरे नेता नहीं कर पाते हैं.

बीजेपी का बड़ा हिस्सा डर से है चुप!

यशवंत सिन्हा ने अपने साथियों की ज़मीर जगाते हुए उनके डर को दिलों से बाहर निकालने की पहल कर दी है. इस जरूरत का अहसास कराया है कि तोड़ो बेड़ियां, चढ़ाओ त्योरियां; जो डरे, बिन मौत मरे. एक सवाल खड़ा हो गया है कि क्या बीजेपी के भीतर इतना अधिक ख़ौफ़ है कि लोग सच बोलने से डरते हैं? न सिर्फ सच बोलने से डरते हैं बल्कि झूठ बोलने की प्रतियोगिता करते हैं! कहीं देश में जो खुशफहमी का माहौल बनाया गया है, उसके पीछे यही झूठ बोलने वाले दरबारी तो नहीं हैं. वक्त है. इस पर जरा सोचिए, लेकिन तब तक यह भी पढ़ लीजिए कि यशवंत सिन्हाकीयेपंक्तियां उन्हीं की ज़ुबानी- “मुझे इस बात का भी विश्वास है कि जो मैं कहने जा रहा हूं वो बीजेपी के बड़े हिस्से और बहुत सारे दूसरे लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है जो डर या भय की वजह से नहीं बोल पा रहे हैं.”

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जिन्हें जनता ने ठुकराया, उनको वित्तमंत्री बनाया!

लोकप्रिय फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा की फ़िल्म ‘राजनीति’ का संवाद है – ‘राजनीति में मुर्दे गाड़े नहीं जाते’. वाकई राजनीति में ये वक्त ही होता है, जो किसी भी गड़े मुर्दे को ज़िंदा कर देता है. जब अरुण जेटली ने धुरंधर क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की सुनिश्चित जीत को हार में बदल कर अमृतसर सीट मोदी लहर में गंवा दी थी, तो आश्चर्य सबको हुआ था. पर, इससे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब उन्हें इस जीत के बदले वित्त मंत्रालय समेत कई और मंत्रालय भी सौंप दिए गये. आखिरकार सवा तीन साल बाद यशवंत सिन्हा नेइसमुद्दे को उठाया. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के राज को याद करते हुए मोदी के फैसले और पसंद के रूप में जेटलीपर इन शब्दों मेंसवालउठाया :

“कोई भी इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर सकता है जब उन्होंने अपने दो घनिष्ठ सहयोगियों जसवंत सिंह और प्रमोद महाजन को 1998 के मंत्रिमंडल में लेने से इनकार कर दिया था, क्योंकि दोनों अपना चुनाव हार गए थे.”

बर्बाद कर डाला कच्चे तेल का उपहार

वित्तमंत्री बनने की पृष्ठभूमि बताने के बाद जेटली को भाग्यशाली बताना तंज तो है ही, लेकिन ऐसा कहते हुए उन्होंने नये तथ्यों के साथ इस बात को नयी ऊंचाई दे दी. पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि कच्चे तेल की गिरती अंतरराष्ट्रीय कीमत ने उनकी झोली में लाखों करोड़ रुपये डाल दिए थे. इससे लंबित प्रॉजेक्ट और एनपीए जैसी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता था, लेकिन सरकार ने मौके गंवा दिए. संभवत: सिन्हा के जेहन में वाजपेयी सरकार के समय झोली खाली रहने कीकशक भी इसमें झलकती है, “लेकिन ये उपहार पूरी तरह से बेकार गया और विरासत में मिली समस्याएं न केवल बनी रहीं, बल्कि उनका हाल और बुरा हो गया.”

अर्थव्यवस्था का हाल

अब यशवंत सिन्हा ने देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी जनता की चिंता को सामने रखते हुए वो कर दिखाया जो अब तक विपक्ष भी नहीं कर पाया. उद्योग चौपट, कृषि उत्पादन चौपट, निवेश रुके, निर्यात घटे, नोटबंदी से छिनी रोटी, छिन गयी रोजी, जीएसटी का बढ़ा बोझ, उद्यमी रोए रोज. यह सब सवा तीन साल से बर्दाश्त करते रहे यशवंत सिन्हा. सिन्हा के अनुसार, “सरकार के प्रवक्ता कह रहे हैं कि इस गिरावट के लिए नोटबंदी जिम्मेदार नहीं है. वो सही बोल रहे हैं. गिरावट बहुत पहले ही शुरू हो गयी थी. नोटबंदी ने केवल आग में घी डालने का काम किया है.“


जीडीपी ने गोता लगाया, तब भी नहीं होश ठिकाने आया

जीडीपी को लेकर बढ़-चढ़कर दावे किए जाते रहे हैं.इसपर यशवंतसिन्हा चुपरहे, चुप रहे बीजेपी में नेता भी.उन दावों पर चुप रहना मजबूरी थी, वरना पार्टी लाइन के खिलाफ कहलाते. मोदी से ईर्ष्या करने वाले कहलाते. मगर, चुप रहना कभी समस्याओं का समाधान नहीं होता. इससे समस्याएं बढ़ जाती हैं. नोटबंदी से अर्थव्यवस्था मजबूत होने का दावा, फिर गिरती जीडीपी को तकनीकी बताना. आखिरकार यशवंत ने ठानाकिसच बोलना है. उन्होंने कहा कि यह जीडीपी 5.7 प्रतिशत भी फर्जी है. 2015 में पैमाना बदल देने से 200 प्वाइंट का जो फायदा हुआ है, उसको हटा दें तो यह जीडीपी 3.7 बचती है. यशवंत सिन्हा कहते हैं, “पुराने तरीके से गणना के मुताबिक 5.7 फीसदी की विकास दर वास्तव में 3.7 फीसदी या फिर उससे भी कम रह गयी है.”

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना

यशवंत सिन्हा ने जेटली के बाद बीजेपी के कद्दावर अध्यक्ष अमित शाह को भी नहीं बख्शा. शाह पर हमला कोई आसान काम नहीं. इसलिए सिन्हा ने एसबीआई की ‘निर्भीकता’ का सहारा लिया और कहा कि मंदी न क्षणिक है, न तकनीकी. यह बनी रहने वाली है. इस तथ्य को बीजेपी अध्यक्ष के बयान के खिलाफ बताते हुए शाह को उन्होंने चुनौती दे डाली कि आखिरी तिमाही में गिरावट के पीछे कारण ‘तकनीकी’ है. इंडियन एक्सप्रेस में छपे यशवंत सिन्हा के आलेख का अंश पढ़िए, “यह खुले तौर पर बीजेपी अध्यक्ष के उस बयान के खिलाफ जाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि आखिरी तिमाही में गिरावट के पीछे ‘तकनीकी’ कारण रहा है और उसे बहुत जल्द ही दुरुस्त कर लिया जाएगा.”


मेहनत से दुरुस्त हुई थी अर्थव्यवस्था

बर्बाद कर दी गयी अर्थव्यवस्था को बनाने में सालों साल लगते हैं. यशवंत सिंह अपने जमाने को याद करते हैं कि जब कांग्रेस से विरासत में मिली अर्थव्यवस्था को ठीक करने में उन्हें चार साल लग गये थे. मगर, वे कहते हैं कि इसे बर्बाद करना बहुत आसान होता है. जब वे ऐसा कह रहे होते हैं तो निश्चित रूप से निशाने पर जेटली-शाह हैं औरकेंद्र में खुद नरेंद्र मोदी, लेकिन उनका नाम लेने से अभी यशवंत सिन्हा बच रहे हैं.

इंस्पेक्टर राज या रेड राज?
वाजपेयी शासन में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा याद तो खुद करते हैं लेकिन दरअसल वो बीजेपी को याद दिलाते हैं कि किस तरह वह इंस्पेक्टर राज, रेड राजकीबात करते हैं. व्यापारियों, कारोबारियों को रिश्वतखोर अफसरों से बचाने की बात करती थी. लेकिन अब उन बातों को भुला दिया गया है. इनकम टैक्स अधिकारी पर लाखों लोगों की निगरानी का काम है कि किस तरह टैक्स की चोरी हुईवहयह देखे. व्यापारियों और आम लोगों में जितना डर आज है, उतना कभी नहीं था. कारोबार बंद हो रहे हैं, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार इस रेड राज की वजह से बढ़ रहा है. यशवंत सिन्हा की यह पंक्ति पढ़िए, “जब हम विपक्ष में थे तब हमने रेड राज का विरोध किया था. लेकिन आज यह पूरी व्यवस्था का हिस्सा हो गया है.”


गढ़े पांच पांडव

आधुनिक महाभारत जीतने के लिए गढ़े पांच पांडव! यशवंत सिन्हा याद दिलाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद अब वह बैठकलंबे समय के लिए रोक चुके हैं जो उन्होंने वित्तमंत्री और दूसरे अधिकारियों के साथ बुलायी थी. इस बैठक के लिए वित्त मंत्री ने विकास को पुनर्जीवित करने के लिए एक पैकेज प्रस्तावित कर रखा है. पूर्व वित्तमंत्री सिन्हा कहते हैं कि प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार के पुनर्गठन के रूप में ही कुछ नया हुआ है, बाकी सबकुछ जैसे को तैसा है. आगे वे घंटी बजाते हुए जो तंज कस रहे हैं उन्हें पढ़िए, “पांच पांडवों के तर्ज पर उनसे नये महाभारत के युद्ध को जीतने की उम्मीद की जा रही है”

यशवंत सिन्हा की इस पंक्ति के निहितार्थ आप खुद ही समझिए : “चुनावी मंचों पर झूठ और धोखा ठीक है, लेकिन जब इसका सच्चाई से सामना होता है तो ये भाप साबित होती है.”

भारतीयों को गरीबी से दर्शन कराने में जुटे हैं वित्तमंत्री

यशवंत सिन्हा नरेंद्र मोदी का नाम लेते हुए भले ही कुछ गलत बोलते न दिखने की कोशिश करें, लेकिन जो कुछ बोल रहे हैं उसके साथ पीएम मोदी का नाम जोड़ने मात्र से ही उनका मकसद पूरा होने लगता है. वे कहते हैं कि हमारे पीएम ने गरीबी को नजदीक से देखा है, ऐसा वे कहते हैं. लेकिन (उनके) वित्तमंत्री तो पूरी भारतीय जनता को ही गरीबी के दर्शन करा देने में जुटी है. यशवंतसिन्हा के शब्दों को पढ़ें, तो बात ज्यादा समझ में आएगी, “प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने गरीबी को बहुत नजदीक से देखा है. उनके वित्तमंत्री इस बात को सुनिश्चित करने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं कि कैसे सभी भारतीयों को भी उसका नजदीक से दर्शन करा दिया जाए.”

बीजेपी और बीजेपी सरकार को अब यशवंत सिन्हा की बांधी हुई घंटियों के साथ ही चलना होगा.

(लेखक आइएमएस, नोएडा में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. आप दो दशक से प्रिंट व टीवी पत्रकारिता में सक्रिय हैं औरविभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते रहते हैं. mail : prempu.kumar@gmail.com, Twitter Handle:
@KumarPrempu )

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