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आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम से दिल दहलाने वाली खबर आयी. दिनदहाड़े सड़क के फुटपाथ पर चल रही एक महिला के साथ रेप किया गया. इस घटना का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि महिला का सरेआम रेप होता रहा और लोग तमाशबीन बने रहे. मदद के लिए […]

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आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम से दिल दहलाने वाली खबर आयी. दिनदहाड़े सड़क के फुटपाथ पर चल रही एक महिला के साथ रेप किया गया. इस घटना का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि महिला का सरेआम रेप होता रहा और लोग तमाशबीन बने रहे. मदद के लिए एक भी व्यक्ति सामने नहीं आया.
और तो और एक महोदय पुलिस को खबर करने अथवा मदद की बजाय इसका वीडियो बनाते रहे और जैसा कि आजकल होता है, यह वीडियो वायरल हो गया. यह जरूर है कि इस वीडियो के आधार पर अभियुक्त की गिरफ्तारी भी हुई. लेकिन, इससे घटनास्थल पर मौजूद लोगों की जिम्मेदारी कम नहीं होती है.
यह घटना हमें आईना दिखाती है कि हम अपने आसपास घटित हो रही घटनाओं के प्रति कितने संवेदनहीन हैं. दिल दहलानेवाली घटनाओं तक से समाज का कोई सरोकार नहीं रहा. दूसरे, घटना इस बात को भी दर्शाती है कि महिलाएं शहरों में भी सुरक्षित नहीं हैं. वे पुरुषों से बहुत उम्मीद न करें, उन्हें खुद मजबूत होना होगा. इससे एक बात और स्पष्ट होती है कि लोगों का पुलिस पर भरोसा बिल्कुल नहीं है और वे हृदयविदारक घटनाओं तक में पुलिस को सूचित करने से कतराते हैं.
बाद में वीडियो पुलिस तक पहुंचा और अभियुक्त की गिरफ्तारी हुई. लेकिन, उन्हें पुलिस पर भरोसा नहीं था कि कहीं वह उन्हें बेवजह परेशान न करे. मोबाइल होते हुए भी उन्होंने पुलिस को सूचित नहीं किया. मीडिया के मुताबिक वीडियो से पता चला कि उस स्थान से कई लोग गुजरे, लेकिन उन्होंने इस घटना की अनदेखी की. यहां तक कि एक सज्जन ने तो रास्ता ही बदल लिया.
चिंता का विषय है कि देश के विभिन्न हिस्सों से रेप की खबरें अक्सर सामने आ रही हैं. दिल्ली के निर्भया कांड ने तो पूरे देश को हिला कर रख दिया था. उसके बाद कई नये दिशा-निर्देश जारी किये गये थे. नाबालिग अपराधी से निबटने को लेकर बहस चली थी.
कानून में संशोधन भी किया गया. राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2015 में महिलाओं के साथ रेप के 34651 मामले सामने आये थे. 2015 में ही रेप के प्रयास के 4434 मामले दर्ज हुए, जबकि 2014 में ऐसे 4232 मामले सामने आये थे. चिंता की बात है कि ऐसे मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. छेड़खानी के मामलों में तो काफी वृद्धि हुई है. वर्ष 2015 में महिलाओं से छेड़खानी के 82,422 मामले दर्ज हुए जबकि वर्ष 2011 में इनकी संख्या 42,968 मामलों तक ही सीमित थी.
हालांकि इस घटना से नाबालिग का ताल्लुक नहीं है, लेकिन पिछले कुछ समय से रेप की घटनाओं में नाबालिगों के शामिल होने के अनेक मामले सामने आये हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर चार घंटे में बलात्कार और हर दो घंटे में छेड़खानी के आरोप में कोई न कोई नाबालिग गिरफ्तार होता है. 2016 में जनवरी से दिसंबर के बीच 2054 नाबालिगों को रेप और 1624 नाबालिगों को छेड़खानी के मामले में गिरफ्तार किया गया.
कहने का आशय यह कि महिलाओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं जो समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाये हैं. अदालत ने फैसला सुनाया है कि 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को भी रेप माना जायेगा.
फैसला बाल विवाह कानून पर आधारित है जिसके अनुसार शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल होनी चाहिए. लेकिन आंकड़े कहते हैं कि भारत की शादीशुदा महिलाओं में से 2.4 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही हो गयी थी.
पिछले दिनों एक और मामला सुर्खियों में आया. झारखंड हाइकोर्ट ने दुष्कर्म की शिकार 12 साल की बच्ची को गर्भपात की इजाजत देने का उल्लेखनीय फैसला सुनाया. 20 सप्ताह से अधिक के गर्भपात की अनुमति देने का झारखंड में यह पहला आदेश है. इसी साल अक्तूबर में मामला तब प्रकाश में आया जब जमशेदपुर की एक बच्ची ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की कि वह 24 सप्ताह की गर्भवती है. उसके साथ पड़ोसी ने बलात्कार किया था.
लड़की और उसके परिजन गर्भपात कराना चाहते थे. लेकिन, जमशेदपुर के अस्पतालों ने कानून का हवाला देते हुए गर्भपात से इनकार कर दिया था. जस्टिस मुखोपाध्याय ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि इसमें थोड़ा भी विलंब नहीं होना चाहिए. रिम्स मेडिकल बोर्ड ने बच्ची की जांच की.
तत्काल सुनवाई के लिए कोर्ट बैठी और मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने गर्भपात की इजाजत दे दी. लेकिन बच्ची को स्वस्थ होने में लंबा समय लगेगा. कोर्ट ने राज्य सरकार को गर्भपात से लेकर बच्ची के पूर्ण स्वस्थ होने तक का पूरा खर्च वहन करने का आदेश भी दिया. हाल के दिनों में चंडीगढ़, मुंबई और कई अन्य शहरों से ऐसे मामले सामने आये हैं. ये एक और गंभीर पहलू की ओर इशारा करते हैं. बच्चियों से दुष्कर्म करनेवाले अधिकतर मामलों में परिचित और रिश्तेदार दोषी पाये गये. आंकड़ों के अनुसार, बच्चों का शोषण करने वाले मामलों में 50 फीसदी अपराधी भरोसेमंद लोग होते हैं.
इसका एक और महत्वपूर्ण पहलू है. पुलिस पर लोगों का भरोसा न होना जैसा गंभीर सवाल भी इससे जुड़े हैं, जिस पर विचार किया जाना जरूरी है. सड़क दुर्घटनाओं में यह बात बार-बार सामने आयी है कि पुलिस के झमेले में न पड़ने के कारण घायलों को लोग अस्पताल नहीं पहुंचाते हैं. इस वजह से करीब 50 फीसदी दुर्घटनाग्रस्त लोगों की मौत हो जाती है. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश और आश्वासन के बावजूद लोगों का भरोसा पुलिस पर नहीं बना है.
अविश्वास की यह धारणा यूं ही नहीं, लोगों के अनुभव के आधार पर बनी है. यही वजह है कि बड़ी-बड़ी आपराधिक घटनाओ्ं में पुलिस को गवाह नहीं मिलते हैं. पुलिस सुधार की लंबे अरसे से बात की जा रही है लेकिन इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है. खासकर लोगों का भरोसा जीतने की दिशा में तत्काल काम करने की जरूरत है. दूसरे, समाज को हम किस दिशा में ले जा रहे हैं.
किसी महिला पर खुलेआम अत्याचार हो और लोग मूकदर्शक बने रहें. उनकी ओर से कोई हस्तक्षेप न हो, अन्याय के खिलाफ कोई आवाज न उठे, यह स्थिति किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं की जा सकती. कानून को छोड़ दें, यह समाज की नैतिक और सामाजिक जिम्मेदार भी बनती है कि ऐसे कृत्य के खिलाफ आवाज उठाये, उसमें हस्तक्षेप करे. जागरूक समाज से इतनी अपेक्षा तो की ही जाती है.

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