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मोदी-शाह के इस दौर में कांग्रेस को फिर से कैसे खड़ा करेंगे राहुल गांधी?

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नयी दिल्ली : कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कुछ ही दिनों के अंदर प्रोन्नत होकर पार्टी अध्यक्ष बना दिये जायेंगे. पार्टी में उनके नेतृत्व को चुनौती देने की खुली इच्छा किसी ने प्रकट नहीं की है, इसलिए उनका अध्यक्ष चुना जाना तय है. आज दस जनपथ पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में पार्टी कार्यसमिति […]

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नयी दिल्ली : कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कुछ ही दिनों के अंदर प्रोन्नत होकर पार्टी अध्यक्ष बना दिये जायेंगे. पार्टी में उनके नेतृत्व को चुनौती देने की खुली इच्छा किसी ने प्रकट नहीं की है, इसलिए उनका अध्यक्ष चुना जाना तय है. आज दस जनपथ पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में पार्टी कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी को कांग्रेसअध्यक्ष बनाने पर मुहर लगा दी गयी. राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी से ऐसे समय में कांग्रेस की बागडोर अपने हाथ ले रहे हैं, जब 132 साल पुरानी यह पार्टी अपने सबसे मुश्किल दौर में है और प्रचंड उभार के साथ केंद्र व देश के लगभग आधे राज्यों पर शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को बुलंद करते हुए कांग्रेस के खत्म होने की भविष्यवाणी कर रही है.

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राहुल गांधी जब से पार्टी के उपाध्यक्ष बने तब से वही कार्यकारी रूप में पार्टी का काम देख रहे हैं. उन्हें 19 जनवरी 2013 को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था, जब यूपीए सत्ता में थी. इस फैसले के बाद और फिर यूपीए शासन खत्म होने के बाद उनकी मां व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्वयं को नीतिगत एवं बड़े निर्णयों तक सीमित कर लिया. इस दौर में प्रदेश अध्यक्षों का चयन, मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार या विपक्ष के नेता का चयन, गंठबंधन सहित अहम फैसले राहुल गांधी ही लेते दिखे. अमरिंदर को उन्होंने पंजाब कांग्रेस की बागडोर सौंपी और नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी से जोड़ा, जिससे उसकी राह वहां आसान हुई.

राहुल गांधी के विरोधी उन पर आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस का पराभव उनकी कार्यनीति के कारण हुआ है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 44 सीटों पर तक सीमित हो गयी और पार्टी ने राजस्थान, केरल, आंध्र सहित कई राज्यों में अपनी सत्ता भी गंवायी. तो क्या राहुल गांधी सिर्फ पार्टी को हाशिये पर ले जाने की तोहमत झेलने के काबिल हैं या उनके खाते में कुछ उपलब्धियां भी हैं?


महासचिव के रूप में अपने काम को उपाध्यक्ष के रूप में दोहरा नहीं सके राहुल

राहुल गांधी यूपीए शासन के दौरान ही कांग्रेस के एक सांसद से महासचिव के पद पर प्रोन्नत किये गये थे. सोनिया गांधी ने जब राहुल गांधी को महासचिव बनाया तो उन्हें पार्टी की युवा इकाई और छात्र इकाई एनएसयूआइ का प्रभार दिया गया.सितंबर2007 में यह जिम्मेवारी उन्हें दी गयीथी. राहुल गांधी ने दोनों संगठनों में जोरदार सुधार किये. उन्होंने टैलेंट हंट चलाया. इन संगठनों में आये ठहराव को दूर करने के लिए सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया शुरू करायी, ताकि नीचे से लोग ऊपर की ओर आ सकें. राहुल गांधी के इस कामकाज का लाभ पार्टी संगठन को हुआ. उस दौर में कांग्रेस की युवा इकाई में काफी सक्रियता आयी थी,युवा कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर था और सबको चौंकाते हुए पार्टी ने 2009 के चुनाव में जीत दर्ज करायी. पर, 2012 के यूपी चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से राहुल गांधी के प्रदर्शन में एक तरह से ठहराव या गिरावट आ गयी.इसमेंकांग्रेसमात्र 28 सीट जीत सकी, तो इससे पूर्व के चुनाव सेमात्र छह अधिक थी. यूपी में कांग्रेस ने वह विधानसभा चुनाव एक तरह से राहुल गांधी के नेतृत्व में ही लड़ा था.इससे पहले2009में यूपी में लोकसभामेंराहुलगांधी पार्टी को हाशिये से मुख्यधारा में लाते हुए 21 लोकसभा सीट दिलवा चुके थे, जिससे उनका करिश्मा कायम हुआ था.

गुजरात और कर्नाटक को अवसर के रूप में देख रहे हैं राहुल

राहुल गांधी अपनी बहुचर्चित अमेरिका यात्रा के बाद बदले-बदले दिख रहे हैं. वे सोशल मीडिया पर अधिक आक्रामक हैं, लोकप्रिय हुए हैं. भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनके हमले के तरीके भी बदले हुए हैं. राहुल गांधी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और इसके बाद वे कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए सक्रिय होंगे, जहां अगले साल मार्च-अप्रैल में चुनाव है. गुजरात में राहुल गांधी जातीय समीकरणों, साॅफ्ट हिंदुत्व, एंटी इन्कमबेंसी को हथियार बना रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि नयी पीढ़ी अपने असंतोष को प्रकट करने उनके साथ आयेगी. ऐसे में गुजरात में अगर राहुल गांधी कोई करिश्मा कर पाते हैं तो उनका एक आभामंडल तैयार होगा, जो चुनावी राजनीति के लिए अहम होता है. चुनावी राजनीति में कुछ ऐसी चीजें चाहिए होती है, जो आपके व्यक्तित्व को चमकदार बनाये. राहुल को बस इसके लिए एक मौके की तलाश है.ऐसे मौकेअगलेसाल उन्हेंमध्यप्रदेश, राजस्थानऔर छत्तीसगढ़ में भी मिलने जा रहे हैं.

टीम गठन की चुनौती

जाहिर है जब राहुल गांधी कांग्रेस की बागडोर संभालेंगे तो टीम भी बदलेगी. राहुल गांधी को छोड़कर पार्टी के ज्यादातर अहम सांगठनिक पदों पर65प्लस के लोग बैठे हैं. जबकि प्रतिद्वंद्वी भाजपाने सत्ता में आते देखतेहीदेखते पूरेसांगठनिक ताने-बानेकोबदलदिया. वाजपेयी-आडवाणी के बाद पार्टी की दूसरी पीढ़ी के कद्दावर नेता सरकार के बड़े पदों पर चले गये और टीम शाह युवा व नये चेहरों से युक्त हो गयी. राहुल गांधी को भी ऐसा ही करना होगा. उनके पास युवा नेताओं की कमी नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, जितेंद्र सिंह जैसे युवा नेता हैं, जो क्षमतावान हैं. लेकिन, कांग्रेस के ऐसे युवाओं में ज्यादातर की पारिवारिक पृष्ठभूमि है, जबकि भाजपा में पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले कम नेता हैं, स्वयं आगे बढ़े चेहरे अधिक हैं. राहुल स्वयं भले ही पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हों, लेकिन उन्हें संगठन को खड़ा करने के लिए बिना किसी पृष्ठभूमि वाले चेहरों को आगे बढ़ाना ही होगा.

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