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जम्मू-कश्मीर के मुकाबले छत्तीसगढ़ में अधिक शहीद होते हैं पुलिस के जवान

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नयी दिल्ली : केंद्र ने बुधवार सुप्रीम कोर्ट को बताया कि माओवाद की समस्या की वजह सक हर साल छत्तीसगढ़ में आतंकवाद प्रभावित जम्मू-कश्मीर से कहीं ज्यादा पुलिसकर्मी शहीद होते हैं. केंद्र ने कहा कि छत्तीसगढ़ वामपंथी चरमपंथ की समस्या का सामना कर रहा है, जिसने कानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति पैदा हो गयी है. […]

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नयी दिल्ली : केंद्र ने बुधवार सुप्रीम कोर्ट को बताया कि माओवाद की समस्या की वजह सक हर साल छत्तीसगढ़ में आतंकवाद प्रभावित जम्मू-कश्मीर से कहीं ज्यादा पुलिसकर्मी शहीद होते हैं. केंद्र ने कहा कि छत्तीसगढ़ वामपंथी चरमपंथ की समस्या का सामना कर रहा है, जिसने कानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति पैदा हो गयी है.

इसे भी पढ़ेंः सुकमा हमला : नक्सलियों ने रेकी करायी, रॉकेट लॉन्चर दागे, फिर की ताबड़तोड़ फायरिंग

केंद्र ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड की पीठ को बताया कि दो नाबालिग बहनों सुनीता पोत्तम और मुन्नी पोत्तम ने एक रिट याचिका दायर की है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला करने की अनुमति दी जाए.

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की समस्या का सामना कर रहे हैं. राज्य में हर साल जम्मू-कश्मीर से ज्यादा पुलिसकर्मियों की मौत हो रही है. यह कानून व्यवस्था की बहुत गंभीर स्थिति है.

पीठ छत्तीसगढ़ की दो लड़कियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बिलासपुर के हार्इकोर्ट के सामने लंबित उनकी याचिका को स्थानान्तरित करने का अनुरोध किया गया था.

इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने छह न्यायेत्तर हत्याएं कीं और राज्य के बस्तर क्षेत्र के बीजापुर जिले में 10 साल का एक लड़का 2015-16 में लापता हो गया था.

बहनों ने आरोप लगाया कि वर्ष 2015 और 2016 के बीच फर्जी मुठभेड़ में मारे गये लोग साधारण गांव वाले भी शामिल थे. उन्होंने कहा कि मारे जाने वाले लोग माओवादी नहीं थे. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि कार्यकर्ता नंदिनी सुंदर द्वारा दायर इसी तरह की एक याचिका शीर्ष अदालत में लंबित है और याचिका पर इसी के साथ विचार किया जा सकता है. पीठ ने कहा कि वह इस संबंध में पांच फरवरी को विचार करेगी.

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