नयी दिल्ली : सीनियर एडवोकेट इंदु मलहोत्रा ने भारत के न्यायिक क्षेत्र में एक इतिहास रचा है. वेभारत में ऐसी पहली महिला बन गयीं हैं जिनके नाम की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट को कॉलेजियम ने भारत के सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए की है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम के इस फैसले पर अब सरकार को अंतिम निर्णय लेना है. 1956 में जन्मी इंदु मलहोत्रा के नाम सिर्फ यही एक रिकॉर्ड नहीं है, बल्कि उनके खाते में कई शानदार उपलब्धियां हैं जो आम लोगों और विशेष तौर पर महिलाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं.
सीनियर एडवोकेट बनने वाली दूसरी महिला
इंदु मलहोत्रा भारत की वैसी दूसरी वकील भी हैं, जिन्हें 2007 में सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया था. दोबारा ऐसा होने में 30 साल का वक्त लगा. उनसे पहले इस पद के लिए लीला सेठ को नियुक्त किया गया था.
प्रख्यात वकील की बेटी हैं इंदु
इंदु मलहोत्रा का जन्म 1956 में बेंगलुरु में सीनियर एडवोकेट ओम प्रकाश मलहोत्रा व सत्या मलहोत्रा की संतान के रूप में हुआ. एडवोकेट पिता के कारण उन्हें बचपन से ही घर में कानून व न्यायिक माहौल मिला.
इंदु मलहोत्रा के पिता ओम प्रकाश मलहोत्रा सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर वकील रहे हैं और एक कानूनी विषयों के एक प्रख्यात लेखक भी हैं. इंदु मलहोत्रा अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान हैं. उन्होंने नयी दिल्ली की कारमेल कान्वेंट स्कूल से स्कूलिंग की.
पढाई के बार लेक्चरर बनीं
स्कूलिंग के बाद इंदु मलहोत्रा ने दिल्ली के प्रसिद्ध लेडी श्रीराम कॉलेज से राजनीति शास्त्र में स्नातक व मास्टर की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने कुछ दिनों तक मिरांडा हाउस कॉलेज व विवेकानंद कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाया भी. इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से 1979 से 1982 के दौरान वकालत की पढाई पूरी की. 1983 में दिल्ली बार काउंसिल की सदस्य बनीं और वे पिछले 30 सालों से सुप्रीम कोर्ट में प्राइक्टिस कर रही हैं.
एक वरिष्ठ वकील के रूप में वे विधि संबंधित सरकार की कुछ समितियों से भी जुड़ी रहीं हैं और अपनी शानदार उपलब्धियों के लिए कई सम्मान भी पा चुकी हैं. उन्होंने पुस्तक भी लिखी है.
सड़क दुर्घटना में मददगार से संबंधित केस से जुड़ी रहीं हैं
इंदु मलहोत्रा सड़क दुर्घटना की स्थिति में पीड़ितों की मदद करने वाले को कानूनी प्रक्रिया से मुक्त रखने की लड़ाई लड़ने वाले एनजीओ सेव लाइफ फाउंडेशन की वकील रह चुकी हैं. उनका तर्क था कि सड़क दुर्घटना में पीड़ित शख्स की मदद करने वाले के साथ पुलिस थाना व कोर्ट जाने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए. उनका तर्क इस मामले में कारगर हुआ. इस संबंध में पुराने नियम बदले गये. दरअसल, एक अध्ययन के मुताबिक भारत में सर्वाधिक असामयिक मौत सड़क दुर्घटना में होती है और इससे जीडीपी को तीन प्रतिशत तक का नुकसान होता है. ज्यादातर मौतें इस वजह से होती रही हैं, क्योंकि उसके बारे में पुलिस व कानूनी पचड़े की वजह से लोग सूचना नहीं देते या मदद नहीं करते. अध्ययन के अनुसार, अगर सड़क दुर्घटना में ससमय मदद मिले तो मौत की संख्या 50 प्रतिशत तक कम हो सकती है.
बहरहाल, इंदु मलहोत्रा अगर सुप्रीम कोर्ट की जज बनती हैं तो अपने न्यायिक फैसलों से भी वे उसी तरह इतिहास बनायेंगी, जैसा उन्होंने वकील के रूप में किया.