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मनोरंजन है यार!

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संतोष उत्सुक व्यंग्यकार आजकल भाभीजी घर पर छायी हुई हैं और जीजाजी छत पर आ चुके हैं. भाभीजी घर में… सरेआम एक-दूसरे की बीवियों और जीजाजी छत… पर में जीजा-साली की रोमांटिक चुहलबाजी है. दूसरे की पत्नी या पत्नी की बहन या सहेली से या फिर किसी का भी किसी से भी आंख-मटक्का करना, इश्क […]

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संतोष उत्सुक

व्यंग्यकार

आजकल भाभीजी घर पर छायी हुई हैं और जीजाजी छत पर आ चुके हैं. भाभीजी घर में… सरेआम एक-दूसरे की बीवियों और जीजाजी छत… पर में जीजा-साली की रोमांटिक चुहलबाजी है.

दूसरे की पत्नी या पत्नी की बहन या सहेली से या फिर किसी का भी किसी से भी आंख-मटक्का करना, इश्क लड़ाने का फाॅर्मूला हमेशा हिट रहा है. साली को तो भारतीय पारिवारिक परंपरा में आधी घरवाली भी कहा गया है, मगर इधर अनेक बार पत्नी अपने ही पति के प्रेम से महरूम रह जाती है.

कभी छोटे परदे की महारानी ने एक ही सीरियल में एक ही पति की अनेक पत्नियां दिखायी थीं और दर्शकों की मनोरंजक मांग भरने के लिए एक मृत चरित्र को पुनर्जीवित तक कर दिया था. ऐतिहासिक सीरियल्स में मंत्रियों व राजाओं को भी दूसरों का प्रेमी दिखाया जा रहा है. यह भी हमारा ही इतिहास है, माफ करें हर सीरियल के शुरू में डिसक्लेमर नाम का सुरक्षा कवच होता है न.

मनोरंजन के नाम पर जिंदगी में रोमांस की आग लगी रहती है. क्योंकि हर उम्र में मोहब्बत बड़े काम की चीज है.

प्रेम का अंकुर तो कहीं भी फूट जाता है. दरअसल , यह सब कुछ डिमांड और सप्लाई आधारित है. विकास में लगातार व्यस्त समाज का मनोरंजन जरूरी है. चूंकि सेहत के लिए हंसना जरूरी है, इसलिए कुछ भी बोलकर, मजाक उड़ाकर, जो मर्जी दिखाकर हंसाने का फाॅर्मूला सही पकड़े हैं. माना जाता है कि इसका कोई गलत असर नहीं पड़ता.

हालांकि, यह मेडिकली प्रमाणित है कि पढ़ने और सुनने से ज्यादा, दिमाग पर देखने का सबसे ज्यादा असर होता है. संभव है कि उन कार्यक्रमों का असर बिलकुल नहीं पड़ता होगा, जिनको हम मनोरंजन मानकर देखते हैं. हम जिनका जैसा असर चाहेंगे, उनका वैसा ही पड़ेगा. जैसे रियल्टी शो की आदत कब से डाली हुई है और अब तक चली हुई है. लोग रियल्टी शो में इतना आनंद लेने लगते हैं कि कभी-कभी लगता है कि साहित्यिक समारोह में घटती उपस्थिति देखते हुए वहां भी लघु रियल्टी शो करवा दिया जाये.

समय के साथ परिवर्तन स्वत: आता है, नहीं तो बाजार बदलाव ले आता है. देखिए न, कितने ही धारावाहिक इतिहास में जाकर डिजाइनर वस्त्रों, स्टाइलिश बालों, काॅमेडी, नफरत व दिलचस्पियों के नये अंदाज रच रहे हैं. इसका फायदा भी है. दर्शकों का टेस्ट ऐतिहासिक होता जा रहा है. इधर ‘न्यू इंडिया’ में ‘वैरी ओल्ड इंडिया’ का इतिहास संशोधित करने की आतुरता है.

ऐसा हो जाने पर परिवर्तन एक नया इतिहास रचेगा.

पढ़ने में आया है कि कई बुद्धिमान लोग देश के संविधान को बदलने के लिए ही बने हैं. छोटे परदे पर तो सब मनोरंजन ही है, मगर संविधान बदलना मनोरंजन नहीं है. क्या संविधान को पढ़ने-समझने के लिए लोकतंत्र के चुने हुए नुमाइंदे बाध्य नहीं? कभी-कभी लगता है मनोरंजन कुछ ज्यादा हो रहा है. पत्नी से कहता हूं, तो हंसकर कहती है, मनोरंजन है यार!

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