24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

नागालैंड में सियासी संकट

Advertisement

II आलोक कु. गुप्ता II एसोसिएट प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि akgalok@gmail.com बीते 29 जनवरी को नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट सहित 11 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने 27 फरवरी को होनेवाले विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लेने का ऐलान किया है. यह फैसला अप्रत्याशित है जो राजधानी कोहिमा में नागालैंड ट्राइबल होहो और नागरिक […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

II आलोक कु. गुप्ता II

- Advertisement -

एसोसिएट प्रोफेसर,

दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि

akgalok@gmail.com

बीते 29 जनवरी को नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट सहित 11 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने 27 फरवरी को होनेवाले विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लेने का ऐलान किया है.

यह फैसला अप्रत्याशित है जो राजधानी कोहिमा में नागालैंड ट्राइबल होहो और नागरिक संगठनों एवं विभिन्न दलों के बीच हुई बैठक के बाद लिया गया. इससे एक संवैधानिक संकट पैदा हो गया है. इस सर्वदलीय घोषणापत्र में एनपीएफ के अलावा कांग्रेस, यूनाइटेड नागा डेमोक्रेटिक पार्टी (यूएनडीपी), नागालैंड कांग्रेस, आप, भाजपा, नेशनल डेमोक्रेटिक पोलिटिकल पार्टी, एनसीपी, लोक जनशक्ति पार्टी, जद(यू) और नेशनल पीपुल्स पार्टी ने हस्ताक्षर किये. ये पार्टियां न तो टिकट बांटेंगी और न ही चुनाव हेतु परचा दाखिल करेंगी.

इन दलों की पहली मांग है कि पहले नागा समस्या का समाधान हो, उसके बाद ही राज्य में चुनाव कराये जायें. दूसरी मांग है कि केंद्र सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच 2015 में हुए समझौते के मसौदे को सार्वजनिक किया जाये. उन्होंने ‘सोल्यूशन बिफोर इलेक्शन’ का नारा दिया है. इस संकट के पीछे कई कारण हैं. सर्वप्रथम इन मांगों के केंद्र में नगालिम देश है, जिसे मणिपुर और असम के कुछ जिलों के अलावा म्यांमार के कुछ इलाकों को मिलाकर बनाने की कवायद रही है. समय-दर-समय केंद्रीय नेताओं द्वारा वादे करके टालते रहने के कारण उनकी सहनशक्ति शायद अब जवाब दे रही है.

दूसरा कारण-नवंबर 2016 में केंद्र सरकार ने नगालिम की मांग को ठुकरा दिया और साथ ही 2016 के प्रारंभ से लगे अफ्स्पा की अवधि भी जून 2018 तक बढ़ा दी. सरकार और नगा विद्रोहियों के बीच राजनीतिक स्वार्थ-जनित एक-दूसरे के इस्तेमाल का यह परिणाम है कि आज नागालैंड संवैधानिक संकट के दौर से गुजर रहा है.

तीसरा है राजनीतिक अस्थिरता, जो अब नागालैंड का पर्याय बन चुका है. सत्ता का चक्र वहां जेलियांग, सुरहोजेली लिजित्सु एवं नेफ्यू रियो के बीच घूमता रहा है और इसमें भी राष्ट्रीय दलों की बड़ी भूमिका रही है.

केंद्रीय सरकार और विपक्षी दलों ने नागालैंड को शायद जान-बूझकर अस्थिर बना रखा है, जो अब स्थानीय दल समझ रहे हैं. दलों के चुनाव-बहिष्कार से भाजपा के लिए समस्या उत्पन्न हो गयी है. आदिवासी संगठन और नागरिक समाज समूहों के साथ दलों की बैठक में भाजपा के स्थानीय नेता भी थे. फिलहाल इस घोषणा से भाजपा ने स्वयं को अलग कर कहा है कि इस पर केंद्रीय नेतृत्व फैसला करेगा.

वर्तमान में नागालैंड में डेमोक्रेटिक अलायंस ऑफ नागालैंड की सरकार है. साल 2003 में अस्तित्व में आये इस अलायंस के घटक भाजपा और जद(यू) भी हैं. एनपीएफ (नागालैंड पीपुल्स फ्रंट) के मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग इसका नेतृत्व कर रहे हैं.

चौथा कारण है दो पूर्व मुख्यमंत्रियों सुरहोजेली एवं नेफ्यू रियो के बीच बढ़ती दोस्ती. एनपीएफ की कमान सुरहोजेली के पास है, जो जेलियांग व उनके मंत्रियों के लिए चिंता का कारण है.

उन्हें आगामी चुनाव में टिकट नहीं मिलने का भी डर सता रहा है. इसलिए जनवरी के शुरुआत में जेलियांग समूह ने प्रधानमंत्री से मिलकर चुनाव टलवाने का भी प्रयास किया था. उनके इस मुहीम में नागा होहो और नागा मदर्स एसोसिएशन के लोग भी शामिल थे.

पांचवा-हो सकता है कि वहां की जनता सत्तारूढ़ दल की विभाजक नीति और जुमलों की बारिश कर सत्ता हथियाने के क्रूर तरीके से रूबरू हो चुकी है और उन्हें शायद पता है कि आनेवाले वर्षों में भी समस्या का कोई निर्णायक हल नहीं निकाला जायेगा. इसलिए वहां दलों ने यह चाल चली है, क्योंकि उनकी भी जनता के प्रति जवाबदेही है और उनके इस कदम से जनता में उनकी शाख मजबूत होगी. इन सब कारणों के अलावा कई अन्य कारण और भी हैं.

नागालैंड सहित पूर्वोत्तर में राजनीतिक दलों ने साम, दाम, दंड और भेद सब तरह के हथियार का प्रयोग और उपयोग करना प्रारंभ कर दिया है. चुनाव की घोषणा से पहले ही मोदी-शाह की जोड़ी ने इन राज्यों में अपने चुनावी जुमलों की बारिश प्रारंभ कर दी थी. मेघालय और नागालैंड ईसाई बहुल राज्य हैं और इस बाबत यहां बीफ-सेवन को लेकर उनका रुख उदार है, जबकि शेष भारत में कठोर.

इन राज्यों में गाय भाजपा के लिए माता नहीं है. देश के अन्य भागों में गिरिजाघर पर हो रहे हमले का जवाब भी मेघालय और नागालैंड की जनता को देना होगा. पूर्वोत्तर भारत को कांग्रेस-मुक्त बनाने के लिए और चुनाव जीतने के लिए भाजपा क्या-क्या सपने बेचती है और किस स्तर पर जाकर कैसे-कैसे जुमलों का इस्तेमाल करती है, आनेवाले दिनों में यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा.

बहरहाल, नागालैंड के 60-सदस्यीय विधानसभा का कार्यकाल आनेवाले छह मार्च को समाप्त हो रहा है. वहां 27 फरवरी को मतदान होंगे. चुनाव के नतीजे तीन मार्च को आयेंगे.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 20 लाख आबादी वाले इस राज्य में लगभग 88 प्रतिशत लोग ईसाई हैं, जो लगभग 16 आदिवासी समूहों में बंटे हुए हैं और उनकी भाषा एवं धर्म एक है. इन सबके बीच नागालैंड में चुनाव की गतिविधि कब क्या मोड़ लेगी, इसके बारे में अभी कुछ कहना कठिन है और केंद्रीय नेतृत्व के लिए एक जटिल चुनौती भी है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें