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क्षेत्रीय दलों के भरोसे भाजपा

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II रविशंकर रवि II संपादक, दैनिक पूर्वाेदय ravighy@gmail.com अनुभव बताते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के लिए अकेले सत्ता तक पहुंचना संभव नहीं है, लेकिन क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चलना लाभदायक है. तीन राज्यों-त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में भाजपा का क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल करना लाभदायक रहा है. इससे पहले […]

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II रविशंकर रवि II

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संपादक, दैनिक पूर्वाेदय

ravighy@gmail.com

अनुभव बताते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के लिए अकेले सत्ता तक पहुंचना संभव नहीं है, लेकिन क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर चलना लाभदायक है. तीन राज्यों-त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में भाजपा का क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल करना लाभदायक रहा है.

इससे पहले असम में भाजपा ने असम गण परिषद् और बोडोलैंड पीपुल्स पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस विरोधी मतों के एकजुट कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया था.

त्रिपुरा में भाजपा ने इंडिजेनियस पीपुल्स पार्टी आॅफ त्रिपुरा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और अभूतपूर्व जीत हासिल की. भाजपा ने नागालैंड में नेफ्यू रियो की पार्टी एनडीपीपी के साथ चुना लड़ा और सत्ता की दहलीज तक पहुंच गयी. भाजपा को भी बारह सीटें मिलीं. लेकिन, उसने मेघालय में अकेले चुनाव लड़ा और मात्र दो सीट जीत पायी. जबकि ईसाई बहुल इस राज्य में जीत के लिए उसने केंद्रीय मंत्री अल्फोस कन्नानथनम को इसलिए शिलोंग में बैठाकर रखा कि वे ईसाई हैं.

लेकिन, भाजपा की यह चाल सफल नहीं हो पायी और उसे दो सीटों से संतोष करना पड़ा. अब भाजपा कर्नाड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने की जुगत में लगी है. हालांकि, कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. लेकिन, मुश्किल यह है कि उसके पास पर्याप्त बहुमत नहीं है.

भाजपा की कोशिश पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अपने मित्रदलों के साथ मिलकर सरकार बनाना है. अरुणाचल प्रदेश में पहले से भाजपा की सरकार है. यह सरकार उसे सौगात में मिली, क्योंकि अरुणाचल प्रदेश पीपुल्स पार्टी के ज्यादातर विधायक भाजपा में शामिल हो गये.

अब उसकी नजर मिजोरम के विधानसभा चुनाव पर है. मिजोरम में भाजपा अपना जनाधार बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसकी नजर जोरामथांगा नेतृत्व वाली मिजोरम मिजो नेशनल फ्रंट के साथ मिलकर चुनावी तालमेल करने की है.

कहने को भाजपा पूर्वोत्तर के ईसाई बहुल राज्यों में प्रवेश कर चुकी है, लेकिन इसके पीछे भाजपा की नहीं, स्थानीय उम्मीदवार का चेहरा है.

कांग्रेस इस बात में सफल रही है कि भाजपा ईसाई विरोधी पार्टी है. मेघालय चुनाव में कांग्रेस ने इस बात को भुनाया है. पूर्वोत्तर के ईसाई बहुल राज्यों में भाजपा फिलहाल सीधा मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है. उसे क्षेत्रीय दल को आगे रखना होगा और तभी वह सत्ता में शामिल हो सकती है.

जिस एनपीपी के साथ मिलकर भाजपा मेघालय में सरकार बनाने में लगी है, चुनाव में दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारा था. त्रिपुरा की जीत के दूरगामी असर पश्चिम बंगाल पर पड़ेगा, ऐसा भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं.

त्रिपुरा में इंडिजेनियस पीपुल्स पार्टी आॅफ त्रिपुरा (आइपीपीटी) के साथ दोस्ती भाजपा की रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहा. इससे उसे अपना जनाधार बढ़ाने और माकपा पर हमला करने का आधार मिल गया.

वैसे भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव के बाद ही त्रिपुरा पर विशेष रणनीति बनाना आरंभ कर दिया था. इसलिए अगरतला से राजधानी एक्सप्रेस चलायी गयी और कोलकाता के लिए सीधी ट्रेन सेवा जल्दीबाजी में आरंभ हुई. क्योंकि त्रिपुरा के लोगों के लिए यातायात एक बड़ी समस्या है. असम में मिली भारी जीत के बाद नार्थ इस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) का गठन उसी रणनीति का हिस्सा था.

जिसमें पूर्वोत्तर की अधिकांश क्षेत्रीय दलों को शामिल कर लिया गया था. हालांकि, आइपीपीटी उसमें शामिल नहीं थी. आरंभ में भाजपा को लगता था कि अलगाववादी आइपीपीटी के साथ दोस्ती करने का बंगाली मतदाताओं पर उल्टा असर पड़ सकता था. लेकिन, भाजपा के रणनीतिककार डाॅ हिमंत बिस्व शर्मा की सलाह पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आइपीपीटी के साथ गठबंधन को तैयार हो गये.

त्रिपुरा में भाजपा के लिए मैदान तैयार करना आसान नहीं था. उसके पास अपने कैडर ज्यादा नहीं थे, जो थे उन्हें माकपा कैडरों के आक्रमण का सामना करना पड़ा रहा था. इसलिए भाजपा ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के विधायकों को अपने साथ कर लिया. इससे उन विधायकों के समर्थकों की ताकत भी भाजपा को मिली. इसके बाद विकास और बेरोजगारी के सवाल पर भाजपा ने अपनी गति पकड़ी.

दरअसल, सिक्किम समेत संपूर्ण पूर्वोत्तर राज्यों पर कब्जा करके एनडीए 25 सांसदों को लोकसभा तक पहुंचाना चाहता है, ताकि भाजपा शासित प्रदेशों में एनडीए के सांसदों की कमी को पूर्वोत्तर से पूरा कर लिया जाये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आसियान देशों के साथ बेहतर व्यापारिक संबंध बनाना चाहते हैं. उसमें पूर्वोत्तर मुख्य भूमिका निभायेगा.

ऐसा तभी होगा, जब सभी पूर्वोत्तर राज्यों में समान विचारधारा की सरकार हो. ऐसे में ये चुनाव उत्तर पूर्व की तस्वीर बदलने में अहम साबित हो सकते हैं. लेकिन, नगा समस्या के समाधान पर बहुत कुछ निर्भर है. यदि यह समझौता वास्तविक धरातल पर आ गया, तो पूर्वोत्तर में शांति की नयी कहानी बन जायेगी.

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