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लाइलाज रोग से ग्रसित लोगों को इच्छामृत्यु देने का ऐसे बढ़ा क्रम, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला

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नयी दिल्ली: असाध्य रोग से ग्रसित लोगों को इच्छा मृत्यु की मंजूरी देने का सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया. इच्छा मृत्यु को कुछ शर्तोंकेसाथ सुप्रीमकोर्ट ने आज वैध करार दे दिया.इसमामले का घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है. 11 मई, 2005 : उच्चतम न्यायालय ने असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में इच्छा […]

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नयी दिल्ली: असाध्य रोग से ग्रसित लोगों को इच्छा मृत्यु की मंजूरी देने का सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया. इच्छा मृत्यु को कुछ शर्तोंकेसाथ सुप्रीमकोर्ट ने आज वैध करार दे दिया.इसमामले का घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है.

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11 मई, 2005 : उच्चतम न्यायालय ने असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु की अनुमति देने संबंधी गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका को मंजूरी दी. न्यायालय ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका परकेंद्र से जवाब मांगा.

16 जनवरी, 2006 : न्यायालय ने दिल्ली चिकित्सा परिषद( डीएमसी) को हस्तक्षेप करने की अनुमति दी और निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर दस्तावेज दायर करने का निर्देश दिया.

28 अप्रैल, 2006 : विधि आयोग ने निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर एक विधेयक का मसौदा तैयार करने की सलाह दी और कहा कि उच्च न्यायालय में दायर ऐसी याचिकाओं पर विशेषज्ञों की राय लेने के बाद ही फैसला हो.

31 जनवरी, 2007 : न्यायालय का सभी पक्षों से दस्तावेज दायर करने का निर्देश.

7 मार्च, 2011 : अरुणा शानबाग की ओर से दायर अन्य याचिका पर न्यायालय ने मुंबई के एक अस्पताल में पूर्णतया निष्क्रिय अवस्था में पड़ीं नर्स को इच्छा मृत्यु की अनुमति दी.

23 जनवरी, 2014 : भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पी. सताशिवम की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले पर अंतिम सुनवाई शुरू की.

11 फरवरी, 2014 : डीएमसी ने भारत में निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर नीतिगत बयान संबंधी अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला की कार्यवाही से जुड़े दस्तावेजों की प्रति न्यायालय को सौंपी, न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा.

25 फरवरी, 2014 : न्यायालय ने शानबाग मामले में दिये गये फैसले सहित निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर दिये गए विभिन्न फैसलों में समरूपता नहीं होने की बात कहते हुए जनहित याचिका को संविधान पीठ के पास भेजा.

15 जुलाई, 2014 : पांच न्यायाधीशों की पीठ ने याचिका पर सुनवाई शुरू की, सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को नोटिस भेजे, वरिष्ठ अधिवक्ता टी. आर. अंद्यार्जुना को न्याय मित्र नियुक्त किया. मामला लंबित रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी.

15 फरवरी, 2016 : केंद्र ने कहा कि वह मामले पर विचार कर रही हैृ

11 अक्तूबर, 2017 : भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दलीलें सुनी और फैसला सुरक्षित रखा.

नौ मार्च, 2018 : न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसले में इस तथ्य को मान्यता दे दी कि असाध्य रोग से ग्रस्त मरीज इच्छा पत्र लिख सकता है जो चिकित्सकों को उसके जीवन रक्षक उपकरण हटाने की अनुमति देता है. न्यायालय ने कहा कि जीने की इच्छा नहीं रखने वाले व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में शारीरिक पीड़ा सहने नहीं देना चाहिए. पीठ ने निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु और अग्रिम इच्छा पत्र लिखने की अनुमति है. संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून बनने तक फैसले में प्रतिपादित दिशा-निर्देश प्रभावी रहेंगे.

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