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गर्मी की सौगात

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क्षमा शर्मा , वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com अब ठेलों पर खीरा, ककड़ी, तरबूज दिखायी देने लगे हैं. कहीं- कहीं खरबूज भी दिखते हैं. शुरू में ये बहुत महंगे मिलते हैं. जैसे-जैसे फसल की आवक बढ़ती है, सस्ते हो जाते हैं और आम आदमी भी इनका आनंद ले सकता है. यह इस बात का पता देते हैं […]

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क्षमा शर्मा , वरिष्ठ पत्रकार

kshamasharma1@gmail.com

अब ठेलों पर खीरा, ककड़ी, तरबूज दिखायी देने लगे हैं. कहीं- कहीं खरबूज भी दिखते हैं. शुरू में ये बहुत महंगे मिलते हैं. जैसे-जैसे फसल की आवक बढ़ती है, सस्ते हो जाते हैं और आम आदमी भी इनका आनंद ले सकता है. यह इस बात का पता देते हैं कि सर्दी के दिन गये. अब गर्मी का स्वागत करिये. पता चल रहा है कि गर्मी गाजे-बाजे के साथ आ रही है. एक समय था कि तरबूज की बात आते ही लगता था कि अरे गर्मी कब आयेगी, जिससे कि तरबूज खाने को मिल सकें.

और उंगलियों पर महीनों का हिसाब लगने लगता था कि गर्मी अभी कितनी दूर है. खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज गर्मी की सौगात समझे जाते थे. इन्हें खाकर गर्मी से मुकबला किया जाता था. कहते हैं कि तरबूज खाकर घर के बाहर निकलो तो लू से भी बचा जा सकता है. हां, तरबूज के अलावा बाकियों को खाली पेट खाना मना था. पानी वाले इन फलों को खाली पेट खाने से बीमार पड़ने का खतरा बताया जाता था.

अब ये फल मौसम से जुड़े नहीं रहे. अब तो ये हर मौसम में मिलते हैं. फल की चाट वालों और होटलों में नाश्ते की प्लेट में दिखायी देते हैं. आप जब चाहें तब, किसी भी मौसम में इन्हें खा सकते हैं, सि वाय कक ड़ी के. बेचारी ककड़ी ही एकमात्र ऐसी है, जो सिर्फ गर्मी में ही मि लती है. और कभी-कभार अगर कड़वी ककड़ी खा ली जाये, तो चांद-तारे दिख जाते हैं. इ अगर किसी ने सुना हो, तो पहले पतली ककड़ियों की तुलना महिलाओं की सुंदर उंगलियों से की जाती थी. अगर किसी बच्चे से पूछिये कि तरबूज किस मौसम में होता है, तो शायद वह ठीक-ठीक उत्तर न दे सके. बहुत से नौजवानों को भी पता न हो. पाठ्य पुस्तकों में भी शायद अब इस तरह की जानकारी नहीं दी जाती. जबकि फलों और सब्जियों के बारे में कहा जाता है कि मौसमी फल और सब्जियां खाना स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा होता है.

पहले तो लोग खेतों में जाकर ही तरबूज-खरबूज तोड़कर उसके स्वाद का आनंद लेते थे. कक ड़ी-खीरे को भी तोड़कर यों ही खा लिया जाता था. तब कीटनाशकों का इतना डर नहीं था. लेकिन, अब वह बात नहीं रही. सर्दियों और रात में भी लोग इन्हें खाने से परहेज नहीं करते. जबकि माना जाता है कि हमारी फसलें मौसम के हि साब से जुड़ी हैं और उन्हें उसी तरह से खाने की हमारी आदत भी रही है. घरों में बुजुर्ग मौसम से जुड़े खान-पान पर अधिक जोर देते थे. लेकिन, इस भाग-दौड़ के समय में कौन इन बातों की परवाह करे. भोजन को लेकर एक तरह की लापरवाही भी दिखायी देती है.

तरबूज-खरबूज और खीरे-कक ड़ी की प्रजातियां भी बदल चुकी हैं. तोतई रंग के काले बड़े बीज वाले तरबूज अब देखे नहीं मिलते. कोशिश हो कि मौसम के मिजाज को समझते हुए इन फलों के स्वाद और उनसे मि लनेवाले आनंद के बारे में हम सोचें. मिलकर खायें. और गर्मी का इस बात के लिए धन्यवाद करें कि ये फल सेहत के लिए जरूरी हैं.

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