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बैंकों के लिए मुश्किल भरे होंगे आने वाले साल, एनपीए से आगे बढ़कर सोचने की जरूरत

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नयी दिल्ली : देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने कहा कि आने वाले वर्ष बैंकों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होंगे और बैंकों को डूबे कर्ज की समस्या से आगे बढ़कर धोखाधड़ी, साइबर सुरक्षा और कारोबारी प्रशासन जैसे अन्य दिक्कतों पर ध्यान देना चाहिए. बैंक ने 2017-18 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में […]

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नयी दिल्ली : देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने कहा कि आने वाले वर्ष बैंकों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होंगे और बैंकों को डूबे कर्ज की समस्या से आगे बढ़कर धोखाधड़ी, साइबर सुरक्षा और कारोबारी प्रशासन जैसे अन्य दिक्कतों पर ध्यान देना चाहिए. बैंक ने 2017-18 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि परिचालन माहौल जटील हो रहा है.

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इसे भी पढ़ें : सार्वजनिक बैंकों का NPA सितंबर अंत तक 7.34 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचा

एसबीआई ने कहा कि फंसी परिसंपत्तियों की समाधान प्रक्रिया संतोषजनक रूप से आगे बढ़ रही है और इसके नतीजे लाभ एवं घाटे में दिखने में कुछ और समय लगेगा. उन्होंने कहा कि इस काम में देरी इसलिए हो रही है, क्योंकि नये कानून को परिपक्व होने में कुछ समय लग रहा है. बैंक ने कहा कि आगामी वर्ष पूरे बैंकिंग क्षेत्र के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा. बैंकों के ढांचागत बदलाव को एनपीए समाधान से आगे बढ़कर देखा जाना चाहिए और धोखाधड़ी, मानव संसाधन, साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों मुद्दों पर गौर किया जाना चाहिए.

गौरतलब है कि 21 में से 19 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 2017-18 में कुल मिलाकर 85,370 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ. सबसे ज्यादा घाटा घोटाले की मार झेल रहे पंजाब नेशनल बैंक (करीब 12,283 करोड़ रुपये) को हुआ. सिर्फ दो बैंकों इंडियन बैंक और विजया बैंक ने मुनाफा दर्ज किया. एसबीआई ने कहा कि पिछले चार वर्षों में नीतिगत पहलों में तेजी देखी गयी. साथ ही, सभी क्षेत्रों में संचरनात्मक बदलाव देखे गये. बैंकों के इन परिवर्तनों से अछूते रहने की संभावना है.

एसबीआई ने रिपोर्ट में कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी निवेश बैंकों के लिए एक अवसर होगा. यह उन पर निर्भर होगा कि वह किस तरह अवसर का लाभ उठाते हैं और इसका इस्तेमाल इन समस्याओं को दूर करने में प्रौद्योगिकी तैनात करने में किया जा सकेगा. बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि शुद्ध लाभ के लिहाज से 2017-18 मुश्किल भरा वर्ष रहा. इसके पीछे प्रमुख कारक डूबे कर्ज के लिए प्रावधान बढ़ाने, सरकारी प्रतिभूतियों में बाजार घाटा और कर्मचारियों का वेतन है.

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